स्वार्थ अपना-अपना

‘अमृता-अमृता’ हर वक्त यही नाम गूंजता रहता रागिनी के मन में। ऐसा क्या है इस नाम में कि सारे रिश्तेदार, दोस्त या परिवार का नाम भूल कर, यहां तक कि भगवान

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वैलनटाईन – Valentine is more than a friend

शालिनी ने हमेशा से अपने आप को समझाया था कि प्यार-मुहोब्बत-इश्क वगैराह सब व्यर्थ हैं। न तो कोई किसी से मुहोब्बत करता है और अगर करता है तो कितना निभाता

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चमत्कारी कुर्सी – Mystery of the magical chair

एक बार बहुत बड़े यशस्वी व तपोबल वाले महात्मा अपने शिष्यों को लेकर घूम रहे थे। भ्रमण करते-करते शाम का समय घिर आया। दूर गांव नज़र तो आया, परंतु वहां तक

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मूर्ख पंड़ित

एक पंड़ित जरा अक्ल का मोटा था। कुछ रटे-रटाए श्राद्ध के मंत्रों के अलावा उसे कुछ नहीं आता था। एक बार वह अपने किसान यजमान के पास पहुंचा। यजमान के पिता

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पहेलीबाज भिखारी

बहुत पुराने समय में एक राजा था। वह बड़ा दानी और उदार था। बुद्धिमानों का बड़ा आदर करता था। एक दिन महल के द्वार पर एक बूढ़ा फटेहाल भिखारी आया। वह द्वार

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एक नाव प्यार की

एक प्रेमी और प्रेमिका एक नाव में सवार और समुन्द्र था बड़ा विशाल। प्रेमी खवैया उस नाव का और प्रेमिका उसे देख मुस्काती थी। प्रेमी ने कहा, “सुनो म

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भाग्य का खेल

एक गांव में पारो नामक एक गरीब विधवा रहती थी। उसका एक पुत्र था। वह इतनी गरीब थी कि घर में चार बर्तन भी ढ़ंग के नहीं थी। लड़का अभी छोटा था। पारो ने बड़े प्

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चालाक बन्दर

एक जंगल में एक पेड़ पर बन्दर रहता था। वह पेड़ मीठे फलों से लदा हुआ था। बन्दर वह मीठे फल खा कर खुश रहता था। एक बार की बात है, एक मगर खाने की तलाश मे जंग

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मामला निबट गया

खड़बड़ाते पत्तों की आवाज़, पूस की सनसनाती पछुआ हवा, धड़धड़ाती रेल की पटरी और कान के पर्दों को दहलाती रेलगाड़ी की लम्बी सीटी। इन सब के आदी हो चुके कान आज कुछ

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मां का आचंल

रोहित ने जब आँखें खोली तो सूरज चढ़ चुका था। “भैया, आज आप को फिर देर हो गयी है,” कहते हुये श्यामा दोडी-दोडी रोहित के पास आयी और रोहित की चादर खींच ली।

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