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एक नाव प्यार की

एक प्रेमी और प्रेमिका एक नाव में सवार और समुन्द्र था बड़ा विशाल।

प्रेमी खवैया उस नाव का और प्रेमिका उसे देख मुस्काती थी।

प्रेमी ने कहा, “सुनो मेरी प्रिय, दुनियाँ में कोई तुमसा नहीं, तुम ही हो मेरे दिल की मल्लिका”।

प्रेमिका बोली, “न..न मैं नहीं मानती तुम्हारी कोई बात, तुम बस बातें बनाते हो और बार-बार मुझे छोड़ कर कहीं चले जाते हो, कैसे करुं यकीन तुम्हारा कि तुम प्यार बस मुझसे ही फरमाते हो”।

इस पर प्रेमी ने कहा, “प्रिय न हो यकीन, तो देखो, मैं कसम अपने बाबा की खाता हूँ, एक वही थे प्रिय मुझे और मेरी माँ को.. अब नहीं इस दुनिया में वो। अब तो मान लो कि मैं बस प्यार तुम्ही से करता हूँ”।

प्रेमिका की आँखों में आंसु थे, उसे अपने ऊपर आया था गुस्सा कि कैसे मान लिया कि प्रेमी प्यार नहीं है करता।

वो बोली, “आगे से कभी ऐसी बात न करुंगी क्योंकि मैं जान गई हूँ कि तुम मुझसे ही मुहब्बत करते हो, मेरी जान, तुम बस मुझी पर मरते हो”।

नाव चलती थी यहाँ-वहाँ गोते खाती थी, कभी-कभी तुफान सा ले आती थी।

चलते-चलते प्रेमिका ने प्रेमी से कहा कि प्रिय लोग कहते हैं कि एक दिन दुनिया में ‘कयामत’ आयेगी और सारी दुनिया उसमें बह जायेगी। मुझे ड़र है कयामत से कहीं वो हमारा साथ न तोड़ जाए।

इस पर प्रेमी ने कहा, “प्रिय जिस दिन कयामत आएगी उस दिन हम फिर मिलेंगे वहाँ, जहाँ जमीन और आसमान मिलते हैं। तुम मेरे करीब होगी और कयामत रुक जायेगी क्योंकि कयामत सी खूबसूरत तो तुम खुद हो… तुम्हारे होते कयामत क्या आयेगी”।

इस पर प्रेमिका फिर मुस्करा कर बोली, “तुम बहुत बदमाश हो, प्यारी-प्यारी बातें करके फिर कहीं मुझे छोड़ के चले तो नही जाओगे”।

प्रेमी बोला, “प्रिय जब आया हूँ तो कभी नहीं जाऊंगा, पहले थोड़ा ड़रता था मैं इस बैरी समाज से, थोड़ा नादान था मैं। तेरी मुहब्बत ने मेरे दिल को धड़कना सिखाया है, तुझे छोड़ मुझे जीना कहां आया है”।

प्रेमिका अब और दीवानी हो चली थी। वो प्रेमी को गुल और खुद को बुलबुल समझ बठी थी। प्यार यूं परवान चढ़ता गया।

प्यार की वो नाव चलती गई….।

यहाँ-वहाँ गोते खाती हुई….।

पिया मिलन की घड़ी नज़दीक आती हुई।

नीले आसमान से मानो फूलों की बरसात होने लगी… प्यार की मंज़िल अब साफ दिखने लगी।

प्रेमिका अब और दीवानी हो चली थी। उसने तय किया कि अब वो उसी को अपना जीवन साथी बनाएगी, क्या उससे अच्छा वर कभी वो ढ़ूंढ़ पाएगी?

समन्दर के पार थे दोनों के घर…

एक गली का फांसला ही था…

बस इतनी सी थी ड़गर…

प्रेमिका मन के मंदिर में उसे अपना पति मान बैठी।

उसके नाम की माला वो अपने गले सजा बैठी।

प्यार की वो नाव चलती गई….।

यहाँ-वहाँ गोते खाती हुई….।

पिया मिलन की घड़ी नज़दीक आती हुई।

प्रेमी मन ही मन मुस्करा रहा था और प्रेमिका के करीब और करीब आ रहा था।

तभी कुछ ऐसा हुआ कि एक पल में सब कुछ बदल गया…एक हवा का झोंका आया था, एक तुफान आया था।

प्रेमी ने आँखें मलते देखा एक सुंदर विशाल जहाज़ उसे दिखाई दिया, उसके अगले छोर पर खड़ी थी एक सुंदर परी अपने पंख फैलाए हुए….।

प्रेमी ने देखा उस परी की ओर, बस हो गया निढ़ाल।

हाथ छूटे उसके अपनी प्रेमिका से और बढ़ने लगा वो उस परी की ओर….।

प्रेमिका कुछ समझ पाती इससे पहले नाव में देखे उसने बड़े दो सुराख।

वो प्रेमी को बोली, “मत जाओ मुझे अकेला मरते छोड़ कर….।

पर प्रेमी के हाथ जब देखी उसने एक लम्बी छुरी, मालुम हुआ कि उसने ही किए थी छेद नाव में।

प्रेमिका बोली प्रेमी से, “मुझे यकीन नहीं कि तुम कुछ ऐसा …… तुम तो मेरे प्रेमी हो, नहीं कर सकते जुल्म तुम मुझ पर ऐसा।

पर प्रेमी ने अपनी सुध-बुध खोई थी। परी को देख उसकी नीयत ड़ोल गई थी। परी की तरफ वो खिचा चला जा रहा था।

प्रेमिका ने देखा कि नाव उसकी ड़ूब रही है और प्रेमी उससे दूर जा रहा है।

हाथ छूटे…. साथ छूटे….. टूटे सारे सपने थे, रूठी सी अब तकदीर भी थी।

प्रेमी उस जहाज़ में खड़ा था उस परी के साथ । प्रेमिका यह देख बोली, “”क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम, वो इरादा…. भूलेगा दिल जिस दिन तुम्हे, वो दिन जिंदगी का आखिरी दिन होगा।

इस पर प्रेमी हंसा और बोला, “प्यार ..मैं तो बस इस परी से करता हूँ, तुमसे तो बस छलावा था प्यार का..”।

देखो इस परी को यह कितनी सुंदर है, इसका कुछ रुतबा है, कुछ दर्जा है। तुम अपने आप को देखो, एक टूटी नाव पर बैठी हो, अपनी औकात तो देखो, तुम हो कैसी।

“क्यूं न मैं तुम्हे छोड़कर इस परी का हो जाउं, अब तक तुम्हारी तरह रंक था, क्यु न रंक से राजा बन जाउं”।

प्रेमी का यह दूसरा रूप देख प्रेमिका अपने होश गवा बैठी….।

उसका दिल टूटा….।

उसका विश्वास टूटा….।

टूट रहे थे ख्वाब उसके प्यार के….।

उसकी रुह अंदर तक कांपती थी….।

जिस रुह से उसने प्यार किया….।

वो झूठी निकली थी….।

प्रेमी उस परी के साथ चल दिया….।

उनका बड़ा विशाल जहाज़ रवाना हो लिया….।

प्रेमिका वहीं उसी टूटी नाव में रह गई….।

निशब्द सी होकर रह गई….।

प्रेमी और परी का जहाज़ अब काफी दूर चला गया था…. और प्रेमीका की आँखों से बस आँसु बहते थे….।

प्रेमिका की नाव भी अब ड़ूबने लगी थी।

वो सुध-बुध भी अपनी खो बैठी थी।

तभी एक सुंदर नाव पर एक खवैया आया, देखा जब उसने प्रेमिका को डूबते हुए…. उसने उसे बचाया।

ले गया पार वो उसको समुन्द्र किनारे….।

प्रेमिका ने जब आँखें खोली उसको तब भी न होश आया, उसे लगा न वो जिंदों में अब है, मर गई उसकी काया….।

खवैया बोला बुलबुल से, “कि बोल, कुछ तो बोल, क्यूं तू चुप-चाप सी है?

जिंदो में है तू, मुर्दों में नहीं है।

प्रेमिका बोली, “तुम्हे नहीं मालुम, मेरे साथ हुआ क्या है। न पूछो कुछ भी, मुझे रोना है, बस रोने दो।

खवैया बोला, मैं सब जानता हूँ….।

मुझसे कुछ नहीं छुपा है….।

दुनिया में जो होता है, वो मेरी ही मर्जी से तो होता है। (खवैया जो कि भगवान थे‌)

प्रेमिका बोली, “मेरा प्यार जो था, उसने किए थे वादे मुझसे, खाई थी कसम की न छोड़ेगा मेरा साथ कभी….।

पर उसने अपना वादा है तोड़ा,

उसने साबित किया कि उसने खाई थी झूठी कसम अपने बाबा की।

क्यूं करते है लोग ऐसा?

क्या बता सकते हो तुम?

तुम तो खवैया हो, सब जानते हो ना।

खवैया बोला, “प्रिय, वो न था तुम्हारे प्यार के लायक…. उसे न थी तुम्हारी कद्र, फिर क्यूं रोती हो उसके लिए तुम बार-बार इस कदर। तुम अगर न चुप होगी तो देखो मैं क्या करता हूँ, ठहरो उसके जहाज़ को मैं देखो कैसे ड़ुबोता हूँ….”।

प्रेमिका चिल्लाई…. न ऐसी कयामत कभी है आई…।

वो बोली रो-रोकर, वो मुझसे दूर ही सही…मैं फिर भी खुश हूँ।

वो न कर सका वफा मुझसे…

गम तो है….।

पर फिर भी मैं खुश हूँ….।

मेरे जीने की वजह था वो, मेरे जीने की वजह है वो।

कहते है प्यार में दो लोगों के दिल एक हो जाते हैं…. फिर कैसे देख पाऊंगी…. मैं अपने ही दिल को ड़ूबते हुए।

मेरा कातिल ही सही, मेरा प्यार था वो….।

“खुदा उसे हर खुशी दे”

“खुदा उसे हर खुशी दे”

यह थे आखिरी शब्द उस बुलबुल के… “मेरे कातिल को मेरी भी उम्र लग जाए…और ऐसी कयामत कभी न आए, कभी न आए”॥

दोस्तो, जीवन में हमें कई लोग मिलते हैं।

हम किसी से सच में प्यार भी कर बैठते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो इंसान आपसे सच में प्यार करता ही हो।

कईं बार लोग प्यार का छलावा और दिखावा भी करते हैं। प्यार में पड़ना अच्छी बात है, दोस्ती में किसी पर अंधा विश्वास करके अपने आपको तकलीफ में ड़ालना सही नही। आज के दौर में कईं लोग प्यार के पीछे गलत काम करने लगते हैं धोखा देना या गुमराह करना या कुछ भी गलत करना। यह प्यार नहीं यह तो मतलबी प्यार है। जो अपने मतलब के लिए लोग करते हैं। आजकल लोग आत्महत्या या कोई भी गुनाह करने पर मजबूर होते हैं जब उन्हे अपने प्यार की मंजिल नहीं मिलती।

दोस्तों प्यार करें, पर ऐसा भी नही कि किसी चीज़ के लिए किसी को धोखा दे, झूठ बोलें, ऐसा करके आप न सिर्फ दूसरों को तकलीफ देते हैं बल्कि अपने आपको भी तकलीफ में ड़ाल सकते हैं।

प्यार बिना किसी मतलब के हो तो वो अच्छा।

प्यार के किस्से जैसे राधा-कृष्णा से करती थी, मीरा बाई मोहन से करती थी और बहुत से किस्से कहानियों में कहीं भी धोखा और झूठ शामिल नहीं था इसलिए शायद आज भी हम उन्हें पूजते हैं।

प्यार करें पर शुरुआत अपने आप से करे।

अर्पना अत्री