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मूर्ख पंड़ित

एक पंड़ित जरा अक्ल का मोटा था। कुछ रटे-रटाए श्राद्ध के मंत्रों के अलावा उसे कुछ नहीं आता था। एक बार वह अपने किसान यजमान के पास पहुंचा। यजमान के पिता का श्राद्ध होना था। अपने पुरोहित को देख किसान ने नमस्कार किया व हाल पूछा—“कहो पंड़ित जी, क्या हाल हैं? दुबले हो गए हो”।

पंड़ित ठंड़ी आह भरकर बोला—“मैं क्या बताऊं यजमान! पेट में बिमारी हो गई है। वैद्ध ने दवाई दी है और कहा है कि दवा के साथ बकरी का दूध पीना। अब मुझे बकरी का दूध कहां मिलेगा?”

किसान ने सुझाव दिया—“पंड़ित जी मैं श्राद्ध में आपको गाय की जगह दूध देने वाली बकरी दूंगा। मेमना तो मर गया। पर बकरी के दूध आता है” किसान अपने फायदे की सोच रहा था। बीस रुपये की बकरी देकर सौ रुपये की गाय बच जायेगी। पंड़ित भी खुश कि एक तो बकरी मिली। गाय की देखभाल के झंझट से बचे सो अलग।

श्राद्ध करके पंड़ित बकरी को लेकर चला। बकरी के चलते समय बकरी के थन से दूध गिरता था। इसलिए पंड़ित जी ने उसे उठा कर कंधे पर लादा। उसी समय झाड़ियों में छिपे तीन ठग पंड़ित को देख रहे थे। उसे देखते ही वे ताड़ गए कि पंड़ित मोटी अक्ल का है। बकरी को कंधे पर लादने पर तो वह बिल्कुल मूर्ख नजर आ रहा था। तीनो पंड़ित से बकरी ठगने की योजना बनाने लगे। योजना बना कर वे अलग हुए। दौड़ कर सड़क पर आगे जा कर कुछ-कुछ दूरी पर अलग-अलग खड़े हो गए।

पहले ठग ने पंड़ित जी को नमस्कार किया और बोला—“पंड़ित जी, आप यह क्या अनर्थ कर रहे हैं? एक पंड़ित होकर अपने कंधे पर सूअर के बच्चे को लादे हो। छी: छी: छी:”।

पंड़ित ने क्रोध से कहा—“क्या बक रहा है? मेरे कंधे पर बकरी है। तुझे नज़र कम आता है क्या?”

ठग ने सिर झटका—“एक पंड़ित सुअर को बकरी बता रहा है। घोर कलयुग”।

पंड़ित क्रोध से बड़बड़ाता हुआ आगे चला। आगे दूसरा ठग पंड़ित का इंतजार कर रहा था। वह बोला—“राम, राम, राम, मैं यह क्या देख रहा हूं”।

पंड़ित चोंका और बोला—“तुम्हारा मतलब क्या है?” “तुम एक पंडित हो कर अपने कंधे पर मरा हुआ बछड़ा लादे जा रहे हो। यह तो शुद्रों का काम है। धर्म रहा ही नही”। ठग ने कहा।

पंड़ित झल्लाया—“एक पीछे अंधा मिला था। अब यह एक और मिला है जो बकरी को मरा हुआ बछड़ा कह रहा है”। आज पता नहीं कैसा दिन है”।

ठग ने थूकते हुए कहा, हे-पंड़ित, तूं कितने लोगों को बछड़े को बकरी कह कर बेवकूफ बनायेगा? मैने जो देखा वह कह दिया। मुझे तो तुम्हे यह नीच काम करते देखकर बड़ा दुख हुआ था, इसलिए कह दिया। वर्ना मुझे क्या लेना? जा मरे हुए बछड़े को लादे”।

पंड़ित कुढ़ता और भुनभुनाता हुआ आगे चल दिया। पर उसका दिल अशांत हो गया था। उसके जाते ही ठग मुस्करा कर झाड़ियों में ओझल हो गया।

कुछ दूर जाते ही तीसरा ठग मिला। उसने पंड़ित को नमस्कार करने के बाद कहा—“अरे पंड़ित जी, मैं तो आपका बहुत आदर करता हूं। मुझे पता नहीं था कि आप ऐसे काम भी करते हो”।

पंड़ित ने घबरा कर पूछा—“कैसा काम?”

ठग ने तीर मारा—“इतना बड़ा अनर्थ कर रहे हो फिर भोले बनने का नाटक कर रहे हो, पंड़ित? तुम जो गधे को कंधे पर लादे हो, यह तुम्हें शोभा देता है?”

पंड़ित चीखा—“यह गधा नहीं है, यह बकरी है। तुम्हे ठीक से नज़र नहीं आता क्या?”

ठग बोला—“पंड़ित, मुझे तो ठीक नज़र आता है, पर लगता है, तुम्हारी आँखों और अक्ल दोनों पर पर्दा पड़ गया है। तुम्हें एक गधा एक बकरी नज़र आ रहा है? खैर, मेरे पास सिर फोड़ने का समय नहीं है, तुम जो मर्जी आये  करो”? यह कह कर तीसरा ठग भी एक ओर हो लिया।

अब पंड़ित सोच में पड़ गया। वह बोला कि तीनों आदमी झूठ कैसे कह सकते हैं। क्या बात है कि यह बकरी किसी को बछड़ा नज़र आती है, किसी को गधा और किसी को सूअर का बच्चा और मुझे बकरी नज़र आ रही है।

उसने बकरी को कंधे पर से उतार कर नीचे रखा। उसे शक हुआ कि बकरी जरूर राक्षस है। राक्षस भी ऐसे मायावी होते हैं जो कईं रूप बदलते हैं। अच्छा हुआ कि ठीक समय पर इसकी असलियत का पता लग गया। वर्ना शायद यह अजगर का रूप धारण कर मुझे खा जाती। ऐसा कहते हुए वह बकरी को छोड़ कर वहां से तेज कदमों से भागा।

तीनों ठग आदमी पीछे से यह सब देख रहे थे। वे पंड़ित की मूर्खता पर खूब हंसे। उन्होंने बकरी पकड़ ली और खूब दावत उड़ाई।

सीख: दूसरों की बातों पर आँखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। अपनी अक्ल पर भरोसा रखें।