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वैलनटाईन – Valentine is more than a friend

शालिनी ने हमेशा से अपने आप को समझाया था कि प्यार-मुहोब्बत-इश्क वगैराह सब व्यर्थ हैं। न तो कोई किसी से मुहोब्बत करता है और अगर करता है तो कितना निभाता है। हाँ, शादी में ज़रूर एक समझोता होता है। शालिनी ने ऐसे बहुत शादी-शुदा जोडे देखे थे जो बस अपना वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे थे जैसे कोई समझोता निभा रहें हों। वो ही एक सी दिन चर्या, सपाट सा जीवन … जिसमें कहीं भी कोई उत्साह नहीं। उसके ऊपर से बाल-ब्च्चों का पालन-पोषण। केवल समझोतों और जिम्मेदारियों से भरा जीवन! यही सब तो देखा था … ताउम्र अपने माता पिता को।

बाल अवस्था तो पढ़ाई-लिखाई और खेल कूद मे निकल जई और किशोर अवस्था में शालिनी पहुँची तो अपने आस-पास के माहोल के देख कर की बार अचरज करती थी। जो सहेलियाँ बेबाक खेल कूद और मस्ती वाली थीं, वो अचानक नाज़ुक और शर्मीली सी हो गयीं थी। बनने सवरने में ज्यादा समय व्यतीत करतीं। कईयों के तो इश्क-मुहोब्बत के किस्से भी शुरू हो चुके थे। यह सब देख कर शालिनी परेशान हो उठती। उसे लगता कि उस की सहेलियाँ फिर से वैसे ही पुरानी वाली हो जायें। वो सब पहले जैसे ही अपना समय मस्ती और चुहल बाज़ीयों में व्यतीत करें। पर शायद अब सबकी प्राथमिक्ता बदल चुकी थी। उसे यह भी पता था कि यदि वो अपनी सहेलीयों के प्रेम सम्बन्धों की बातों को करने और सुनने में दिलचस्पी लेगी तो वो उनके और करीब आ सकती है। पर वो उपरी दिखावा नहीं कर सकती थी और न ही वो किसी और के प्रेम सम्बन्धों की जानकारी लेने के लिए उत्सुक थी। सब उसका मज़ाक उडातीं कि जब उसे किसी से प्यार हुआ तब असलियत सामने आयेगी और वो उन सब की बातों को सर झटक कर आई गई कर देती।

शालिनी पढाई लिखाई में काफी आगे थी। आध्यात्म और योग में भी उसका रूझान था। अब जब शालिनी का वक्त काटना थोडा मुश्किल हो चला था क्योंकि पहले जैसे सहेलियों के साथ घूमने फिरने को नहीं मिलता था। तो उसने सोचा क्यों न योग की क्लासें ले लीं जायें। यही सोच के उसने पास ही स्थापित योग आश्रम में अपना नाम लिखवा लिया।

जैसे जैसे वो निर्न्तर योग में जाने लगी, उसका मन काफी प्रसन्न रहने लगा क्योंकि उसकी नई दोस्ती भी हुई। नई पहचान वाले लोगों से योग के विषयों पर बात-चीत कर के उसे काफी अच्छा लगता।

वहीं पर उसकी मुलाकात अनीता से हुई। अनीता को योग की बहुत जानकारी थी और अक्सर शालिनी से इन विष्यों पर चर्चा करती। शालिनी को अनीता का साथ बहुत अच्छा लगने लगा था। अनीता उम्र में कोई चालीस के आस-पास होगी और रंग रूप रहन सहन बहुत सरल सा ही लग रहा था पर ज्ञान का जैसे भरपूर भण्डार भरा हो उसके पास। शालिनी को अनीता का सौम्य रूप बहुत ही भाता।

एक दिन अनीता ने शालिनी को अपने घर आने का निमन्त्रण दिया जिसे शालिनी ने तुरंत स्वीकार कर लिया। अगले रविवार उसने अनीता के घर जाने की योजना बनाई। अनीता जो अपने  पारिवारिक विष्यों पर कभी बात नहीं करती थी, उसके परिवार के बारे में जानने के लिये वो बहुत उत्सुक थी। पर वो अनीता से पूछने में हिचकिचा रही थी कि वो शादी-शुदा है और क्या उसकी  कोई संतान है। शालिनी उसके घर खाली हाथ नहीं जाना चाहती थी और अगर उसे अनीता के परिवार के बारे में जानकारी होती तो उसके अनुसार तोहफा ले कर जाती। कुछ दूर मिठाई की दुकान पर पहुचीं क्यूँकि उसे मिठाई ले जाना ही सही लगा।

वो जैसे ही दुकान में प्रवेश करने लगी तो दुकान से तेज़ी से निकलते एक नौजवान से उसकी ज़ोर से टक्कर हो गई। वो एकदम गिरते गिरते बची। उस नौजवान ने बार बार माफी मांगी और उसने उसे माफ भी कर दिया। पर जैसे ही वो अंदर जाने लगी तो उसे लगा कि उसका दुपट्टा किसी ने जोर से खींचा। उसने मुड़ के देखा तो वही नौजवान उसके दुपट्टे के साथ आगे बढ़ा जा रहा था। वो गुस्से से तमतमा उठी। उसने चीख कर उसे रोका। वो जैसे ही मुडा, तो गुस्से में शालिनी ने उसके गाल पर एक थप्पड रसीद कर दिया। वो हक्का-बक्का उसे देखता रह गया। जब शालिनी ने अपना दुपट्टा उससे खींच कर लिया तो उसने देखा कि असल में दुपट्टा उस लडके के हाथ में था ही नहीं बल्कि उसकी बैल्ट के हुक में फंस गया था जो उसके खींचने से थोड़ा चिर भी गया था। शालिनी बहुत शरमिंदा हुई। उसे चंद सैकंड में ही अपनी गलती समझ में आ गयी। अब गुस्सा होने की बारी उस नौजवान की थी जो उसे गुस्से से घूर रहा था। शालिनी ने उसे अपनी गलत फहमी की वज़ह समझानी चाही पर वो गुस्से में उसका दुपट्टा हुक में से निकाल कर उसके हाथ में थमा कर चला गया। उसका दुपट्टा एक कोने से फट चुका था। वो उसे छुपाते हुए दुकान के अंदर चली गई। वो पूरा वाक्या इतना तेज़ी से हुआ कि उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हुआ, पलक झपकते ही सब कुछ घटित हुआ था।

उसका अनीता के घर जाने का सारा उत्साह हवा हो चुका था मगर जाना तो था। इसलिए मिठाई ले कर उसके घर पहुँची। अनीता के घर पहुँच कर उसे काफी अच्छा महसूस हुआ। बहुत ही आकर्शक तरह से घर का रख रखाव था। खासकर बाहर बाग बहुत ही कलात्मक तरीके से बनाया गया था और घर के अंदर की साज सज्जा बहुत शालीनता से करी गई थी। शालिनी हर कोने की तारीफ करते नहीं थक रही थी। अनीता ने बडी आत्मीयता से उसकी आवभगत भी की। आखिर उसने अनीता से पूछ ही लिया कि परिवार में और कौन कौन हैं।

तब अनीता ने बताया कि वो घर में अपने दो बच्चों, सास और देवर के साथ रहती है। उसके पति का स्वर्गवास एक कार एक्सीडेंट में हो चुका था जिसमें वो भी काफी ज़ख्मी हुई थी पर किसी तरह से बच गई। उस हादसे के बाद उसका देवर नितिन उसे अपने साथ रहने के लिये ले आया था। अनीता ने बताया कि उसका और उसके बच्चों का ध्यान उसकी सास और देवर बहुत हे अच्छे से रखते हैं और उसे खुश रखने की हर सम्भव कोशिश करते हैं। यह जानकर शालिनी बहुत खुश हुई। उस के मन में अनीता के ससुराल के प्रति सम्मान बडा। उसने सास और देवर से मिलने की इच्छा ज़ाहिर करी तो अनीता ने बताया कि वो घर पर नहीं हैं।

शालिनी अनीता के घर करीब चार घन्टे रुकी पर उसे लग रहा था कि जैसे समय पंख लगा कर उड गया। शालिनी अनीता के घर से इतनी प्रसन्नचित हो कर निकली कि वो अपनी दोपहर वाली घटना भूल ही गई।

अनीता उसे दरवाजे पर छोडने भी आई। जैसे ही वो जाने लगी, तभी एक कार आ कर रुकी। उसमें से एक वृद्ध महिला उतर कर आई तो अनीता ने उसे रुकने को बोला और बताया कि वह उसकी सास है और वो चाहती है कि शालिनी उन से मिल कर जाये। शालिनी रुक गई मगर जैसे ही उसने ड्राईवर साईड से वही शाम वाले नौजवान को आते देखा तो उसके  कदम वहीं ठिठक गये। उसे महसूस हुआ जैसे उसके शरीर में काटो तो खून नहीं है।  

उस नौजवान को देख कर अनीता ने चहक कर उनकी मुलाकात कराई। शालिनी को देखते ही नितिन का चेहरा तिलमिला उठा पर उसने संयम से हाथ जोड़ कर नमस्ते कर दी। शालिनी ने अभिनंदन के साथ ही हाथ जोड़ कर नितिन से अपनी गलतफहमी की माफी भी मांग ली। अनीता जिसे वो शाम का किस्सा सुना चुकी थी, वो भी यह जान कर आश्चर्य चकित रह गई कि शालिनी ने जिसे थप्पड़ मारा था वो उसका देवर नितिन ही था। नितिन ने शीलिनी को माफ तो कर दिया, पर बडे अनमने मन से। अनीता ने नितिन से शालिनी को जब घर तक छोडने का आग्रह किया तो नितिन काम का बहाना कर घर के अंदर चला गया। शालिनी अनीता से विदा ले कर चुपचाप अपने घर चली गई मगर पूरे रास्ते वो अपने आप को उस शाम की हरकत के लिये कोसती रही। घर पहुँच कर भी वो काफी परेशान थी।

उसकी परेशानी उसकी माँ ने भाँप ली और जब शालिनी ने उन्हें अपनी परेशानी का सबब बताया तो वो हैरान भी हुई और नितिन के व्यवहार से प्राभावित भी। उन्होंने शालिनी को सौभग्यशाली बताया और कहा कि यदि यही कोई और होता तो बिना गलती के कभी थप्पड नहीं खाता। और शायद बदले में दुरव्यवहार करता। एक भले परिवार का शरीफ लडका ही ऐसा व्यवहार करता है जैसा नितिन ने किया। शालिनी भी जितना नितिन के बारे में सोचती, उतना ही उसकी ओर प्रभावित होती।

शालिनी की मुलाकात रोज़ अनीता से होती और वो हर रोज़ सोचती कि वो आज उनसे नितिन के बारे में पूछेगी पर कभी हिम्मत नही पडती। वो अपने आप को समझाती कि उसके मन में नितिन के बारे में बात करने में इतनी झिझक क्यों है। एक दिन अनीता और शालिनी योग आश्रम के बाहर बातें कर रही थी तो नितिन की कार वहाँ आकर रुकी। नितिन को अचानक सामने देख कर शालिनी का दिल ज़ोरों से धडकने लगा। वो समझ नहीं पा रही थी कि उसे ऐसा क्यों हो रहा है। जिसके बारे में वो हमेशा बात करना चाहती थी, जानना चाहती थी, उसे सामने देख कर वो इतनी विचलित क्यों हो उठी? नितिन ने उसे घर तक छोडने का प्रस्ताव दिया तो वो मना नहीं कर पाई। पर अनीता को आधे रास्ते में कोई काम याद आ गया और वो बीच में ही उतर गई। शालिनी का घर तक का सफर इतना मुश्किल हो चुका था क्योंकि गाडी में केवल वो दोनों ही थे और उनके पास कोई बात करने का  विषय ही नहीं था। सिवाय रास्ता बिताने के, शालिनी के पास और कुछ बोलने को नही था। जब वो घर पहुँचे तो शालिनी ने नितिन को अंदर आने का आग्रह किया। नितिन ने मुस्करा कर बस इतना ही कहा ‘अगली बार’ और शालिनी कुछ बोल नहीं पाई थी। पूरी रात शालिनी ने जाग कर काटी। उसे नितिन के बारे में सोचना बहुत अच्छा लग रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो नितिन को पसन्द करने लगी हो। वो कल्पना करने लगी कि यह बात वो नितिन तक कैसे पहुँचायेगी। वो झेंप भी रही थी कि नितिन अगर उसे न चाहता हो या फिर उसकी ज़िन्दगी में कोई और हो तो?  

शालिनी को अपने उपर गुस्सा भी आ रहा था कि जैसे वो अपने आस-पास सहेलीयों या रिश्तेदारों का मज़ाक उडाती थी कि प्यार-व्यार कुछ नहीं होता और सिर्फ नाटकबाज़ी होती है, आज वो उस एहसास से खुद गुजर रही है और उस की गहराईयों में और गहरा डूबना चाहती है। उसे अपने ऊपर हंसी भी आ रही थी कि एक तरफा प्यार में इतने सपने कैसे देख सकती है पर सपने देखते हुए पुलकित भी हो रही है।

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, वैसे वैसे शालिनी कि बेचैनी भी बढ्ती जा रही थी। वो अनीता से अपनी बात कहना चाहती पर डरती थी कि अनीता उसके बारे में क्या सोचेगी। एक दिन बातों बातों में अनीता ने बताया कि नितिन के लिये एक अच्छा रिश्ता आया है और शायद नितिन इस लडकी से मिल कर हाँ भी कर दे। शालिनी तडप उठी थी; वो चाहती थी कि नितिन को मिल कर अपने प्यार का इज़हार कर दे। पर उसने अपने आप को रोक लिया था।

उसी शाम नितिन अनीता को लेने योग आश्रम आ पहुँचा। पिछ्ली बार कि तरह अनीता ने शालिनी को भी आने को कहा मगर वो यह कह कर नहीं गई कि उसे आश्रम में कुछ काम है। नितिन जो एकटक शालिनी को देख रहा था, समझ गया कि वो झूठ बोल रही है। मगर वो बिना कुछ बोले अनीता को वहाँ से ले कर जाने लगा। जाते जाते शालिनी ने उसे रिश्ते के प्रस्ताव आने के लिये बधाई दी जिसे सुन कर वो मुस्करा दिया। उसकी मुस्कराहट शालिनी को उस वक्त अच्छी नहीं लगी। जैसे ही नितिन वहाँ से निकला, शालिनी आश्रम में जाने की बजाय पैदल अपने घर की तरफ चल पडी। उसे ऐसा लग रहा था कि वो क्यों नितिन से प्यार कर बैठी और अगर प्यार हो भी गया था तो उसे इज़हार करने की हिम्मत तो रखती। पर अब सब व्यर्थ था क्योंकि नितिन तो कल किसी और को शादी के लिये हाँ  करने वाले था।

शालिनी को तभी अचानक लगा कि उसके चेहरे पर आँसू भी है जिसे वो पोंछती हुई घर पहुँची। घर के बाहर अनीता की कार देख कर वो व्याकुल हो गई और तेजी से अंदर भागी। उसके घर से हंसी के ठहाकों की आवाज़ आ रही थी और अंदर नितिन, अनीता और अनीता की सास बैठ उसके परिवार जनों से बातें कर रहे थे। वो उन सब को देख कर हैरान हो गई।

तभी अनीता ने उठ कर उसे अपने गले लगा लिया। और शालिनी की मँ ने उसे बताया कि वो लोग नितिन का रिश्ता ले कर उनके घर आये हैं और अब शालिनी के जवाब का इन्तज़ार कर रहे हैं। इतने में नितिन ने धीरे से परिवार-वालों से इज़ाजत मांगी कि वो शालिनी से अकेले में दो पल बात करना चाहता है।

शालिनी उसे अपने कमरे में ले गई जिसके रख रखाव की नितिन ने बहुत तारीफ करी। जब शालिनी की थोडी झिझक कम हुई तो नितिन ने अपनी जेब से एक कार्ड निकाल कर उसे थमा दिया और बहुत प्यार भरे अंदाज़ में बोला ‘हैपी वैलनटाईनस डे’। शालिनी आवाक सी उसे देखती रही और मीठी सी गुदगुदी से सिंहर उठी। पहली बार उसने वैलनटाईनस डे का सही मतलब समझ आया था।

कार्ड पकडते हुये उसके हाथ काँप गये। उसे आज लगा कि प्यार-मुहोब्बत या इश्क वगैराह बेकार कि चीज़ नहीं हैं बल्कि एक ऐसा अहसास है जिसे मह्सूस करने के लिये एक जन्म भी शायद कम है।

शालिनी शर्माती जा रही थी लेकिन बहुत खुश थी क्योंकि पहली बार किसी ने उसे अपना वैलनटाईन कहा था।

                  रीमा मलिक