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मां का आचंल

रोहित ने जब आँखें खोली तो सूरज चढ़ चुका था।

“भैया, आज आप को फिर देर हो गयी है,” कहते हुये श्यामा दोडी-दोडी रोहित के पास आयी और रोहित की चादर खींच ली। रोहित श्यामा को पकडने के लिये दोडता था, मगर मां हमेंशा बीच में आकर वक्त का अहसास करवाती थी।

आशा देवी आज भी अपने बेटे रोहित से नाराज थी। कारण था रोहित की पत्नि रोमा, रोहित ने मां की रजामन्दी के बिना ही रोमा से विवाह कर लिया था।

कॉलेज में दोनों की मुलाकात हुई और कुछ ही मुलाकातों में प्यार हो गया। रोहित एक धनवान परिवार से था, जबकि रोमा साधारण परिवार से थी। रोमा के पिता गिरधारी लाल जी के पास सम्पति के नाम पर दो बेटियां और दुनिया में इज्जत थी। लाड-प्यार से पली रंजना और रोमा बहुत ही खूबसूरत और समझदार थी। बडी बेटी रंजना का विवाह हो चुका था। रोमा ने जब पिता को बताया कि वह आशा देवी के पुत्र रोहित को पसन्द करती है और विवाह करना चाहती है। गिरधारी लाल चिंतित हो उठे क्योंकि वह जानते थे कि आशा देवी कभी भी इस विवाह के लिये राजी नही होंगी। परंतु रोहित ने आश्वासन दिया कि वक्त के साथ-साथ सब ठीक हो जायेगा। मां के ना मानने पर मां से नाराज हो कर शादी करके अलग रहने लगे थे रोहित और रोमा।

पाचं वर्ष बीत गये किंतु आशादेवी अभी भी रोहित से नाराज़ थी। रोहित-रोमा का पुत्र राजा एक सप्ताह भर से हस्पताल में बिमार था। डॉक्टर ने बताया कि ऑपरेशन के लिये खून की जरुरत है किंतु खून का इंतजाम नही हो रहा था। रोमा अपने बच्चे के लिये बिलख-बिलख कर रो रही थी। रोहित और गिरधारी लाल जी बहुत परेशान थे। उनका अपना खून भी बच्चे के लिये काम नहीं आ रहा था। टी-वी पर, अखबारों में सब जगह इश्तहार दिये जा चुके थे।

डॉक्टर के बताने पर कि आपरेशन शुरु हो चुका है, एक औरत खून दे रही है, सुन कर सब के चेहरे पर खुशी की लहर दोड उठी। रोमा ने तीन घंटे कैसे काटे एक मां ही जानती है। राजा के सफलता पूर्वक हुए ऑपरेशन के बाद रोमा खुशी से रोने लगी।

कंधे पर किसी के ढ़ाढ़स बंधाते हाथों का एहसास पा कर रोहित जैसे ही पीछे की ओर मुडा तो मां को सामने देखकर हैरान रह गया।

“बच्चे भले ही मां-बाप से नाराज़ रहें, परंतु मां-बाप बच्चों से नाराज़ नहीं होते” कह कर आशादेवी ने रोहित के सिर पर हाथ रख दिया।

“मैं भी एक माँ हूं, बच्चों से दूर होने का दर्द क्या होता है, मैं अच्छी तरह जानती हूं तो फिर रोमा को कैसे तकलीफ में देख सकती हूँ” कहकर आशा देवी ने रोमा की ओर देखा।

रोमा और रोहित ने माँ के चरण स्पर्श किये। माँ ने दोनों को प्यार किया। उन्हें जब पता चला कि राजा को माँ ने खून दिया है तो वह गद गद हो रोने लगे।

आज उन्हे अहसास हो गया था कि पिछले पांच वर्षों में उन्होंने क्या खोया है। मां की ममता और त्याग का मोल जान चुके थे। जान चुके थे कि मां के आंचल तले ही दुख भी सुख में परिवर्तित हो जाता है। उन्होंने ने आशा देवी से माफी मांगी और माँ ने दोनों को गले से लगा लिया।

गरिमा