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स्वार्थ अपना-अपना

‘अमृता-अमृता’ हर वक्त यही नाम गूंजता रहता रागिनी के मन में। ऐसा क्या है इस नाम में कि सारे रिश्तेदार, दोस्त या परिवार का नाम भूल कर, यहां तक कि भगवान को भी भूलकर सिर्फ एक ही नाम का मनन…. पर क्यों? क्या रिश्ता है रागिनी का अमृता से?

     रिश्ता हमेशा बनाने से नहीं बनता, कईं बार अनचाहा रिश्ता भी जुड जाता है और रागिनी तो कभी सपने में भी अमृता से संबंध नहीं जोडना चाहेगी क्यों कि जिस दिन से वो पीयूष से मिली है उसे तोहफे में नाम मिला है पीयूष का पहला प्यार ‘अमृता’। रागिनी का अमृता से सिर्फ एक ही एक रिश्ता है और वो है…. इर्श्या।

      उसे पहले अपने पति पीयूष और फिर अपने ससुराल वालों के बखानों से पता चल गया था कि पीयूष अमृता के पीछे कितने दीवाने थे। यहां तक कि एक बार पीयूष ने रागिनी को अपना नाम बदल कर अमृता रखने को कहा था, कितना धक्का लगा था रागिनी  को। आज तक तिलमिला जाती है वो बात सोच कर, पर पीयूष की सफाई में वो एक मज़ाक था। ये कैसा मज़ाक है? रागिनी  सोचती, क्या मैं कभी ऐसा मज़ाक पीयूष के साथ कर सकती थी? काश कर सकती, तभी शायद उसे बात की संजीदगी का या रागिनी  की हालत का कुछ एहसास होता।

          जलन या इर्श्या किसी भी स्त्री के मन का एक ऐसा कोना है जो जब तक शांत है…शांत है पर जहां एक बार प्रजव्वलित हुआ तो जंगल की आग की तरह थमने का नाम नहीं लेता, बढता ही जाता है। इसलिए रागिनी  को जब से अमृता का पता चला था, अपने को काफी सम्भाल कर इस विषय में बात करती थी। वो जानती थी, जहां इस विषय ने जरा भी सीमा लांघी तो फिर शायद वो अपना आपा न खो दे। उसे ऐसा करने का पूरा हक भी था क्योंकि वो जब से पीयूष से मिली थी उसे उसने बेइंतहां प्यार किया है।

       पीयूष के जीवन में रागिनी  से पहले क्या हुआ उस पर रागिनी  का कोई जोर नहीं, पर अब क्युं? अमृता का जिक्र भी क्युं? कईं बार रागिनी  खुद ही अमृता का जिक्र छेड देती, उत्सुकतावश- क्योंकि शायद पीयूष से ज्यादा रागिनी  के दिमाग में अमृता घर कर गई थी।

      जब कभी पीयूष की पुरानी यादों का जिक्र छिडता, रागिनी  के मन में एक ही नाम आता…’अमृता’। रागिनी  यदि अमृता के बारे में पूछती तो पीयूष एक-एक क्षण को बडे मधुर यादों की तरह उसे बताने लगता और वो पीयूष को चुप करा देती। पीयूष तो शायद उन यादों को ताजा कर के ज्यादा पुलकित हो जाता और शांति से सो जाता पर रागिनी  पूरी रात करवट बदल-बदल कर निकालती, कहीं कुछ आंसु भी टपकाती… शायद ऐसे आंसु जिनके आने से लेकर लुढकने तक का उसे एहसास ही नहीं होता, जब गला रुंध कर सूख जाता तब पता चलता कि वो तो रो रही थी। वो अपने पीयूष को छू कर उसकी बांह पर अपना सर रखकर, उसकी गर्म सांसो को महसूस करती, तब उसे एहसास होता ये पीयूष तो मेरा है… सिर्फ मेरा। इसके और मेरे बीच तो हवा की भी गुंजाइश नहीं, मैं भला उस कल के लिए क्युं आंसु बहाउं जिसमें मैं थी ही नहीं। आज पीयूष सिर्फ और सिर्फ मेरा है नख से शिख तक, उसके दिल दिमाग यहां तक कि आत्मा में भी सिर्फ मैं हुं। क्योंकि पीयूष का अपने प्रति अटूट प्यार देखकर ही तो रागिनी  ने उसे प्यार किया था। उसे विश्वास था कि वो उससे ज्यादा किसी को, कभी भी न प्यार कर सकता है न महत्व दे सकता है। वो ऐसा करता भी क्यों, बदले में रागिनी  ने उसे बेहद प्यार दिया था।

     रागिनी  तो जैसे जन्म से ही पीयूष का इंतजार कर रही थी, न कभी किसी के बारे में सोचा न देखा। पीयूष से मिलते ही उसे पता चल गया था कि यही वो शख्स है जिसका उसे बरसों से इंतजार था। रागिनी  और पीयूष का सौभाग्य कि प्रेम हुआ, विवाह हुआ, प्रेम की निशानियां बच्चे भी हुए। बहुत अच्छा, बुरा और बहुत बुरा वक्त भी गुजारा पर साथ-साथ एक दूसरे का हाथ थामें। जहां दोनों साथ होते वहां दुख-दर्द कोसों दूर भाग जाते।

पीयूष को रागिनी  का साथ, आत्मविश्वास, लगन और बेइंतहां प्यार हर कठिनाई से लडने की ताकत देता, वहां दूसरी ओर रागिनी  को पीयूष का प्यार..प्यार और सिर्फ प्यार ही मजबूत बनाए हुआ था।

ज़िंदगी ठोकरे खाकर शायद उन्नति के बहुत निचले पडाव पर थी पर दोनों पीठ पर मेहनत और बिमारियों की गठरी लिए मजबूती से हाथ थामे अपनी मंजिल पर बढे जा रहे हैं। अचानक एक मोड पर खडी अमृता मिल गई.. पीयूष और रागिनी  की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं!!! पीयूष को मानो झुलसती धूप में ठंडे पानी का फव्वारा मिल गया हो, पर रागिनी  का क्या? उसे तो किसी ने उसी झुलसती धूप में, दूर कहीं सुलगती रेत पर अकेले फैंक दिया हो…।

     उसने पीयूष को अपने अंदर सुलगती आग दिखाई, उसे अपने प्यार का, साथ का, संघर्ष का वास्ता दिया, उसे प्यार से, गुस्से से, नर्मी से, सम्मोहन से समझाया, पर पीयूष नहीं माना। पीयूष ने भी समझाया कि जैसा पहले था वैसा उसके मन में अमृता के लिए कुछ भी नहीं, सिर्फ उत्सुकता है उसके बारे में जानने की, उसे अपने बारे में बताने की। पर रागिनी  उस मोड पर रुकने को राजी नहीं, वो नहीं चाहती कि पीयूष रुक कर अमृता से बात भी करे। हालचाल तो बहुत दूर की बात है।

     पीयूष ने अपना दृष्टिकोण समझाया.. रागिनी  ने अपना.., अमृता खडी मुस्कराती रही, उसे पता था नतीजा। रागिनी  और पीयूष के हाथ, जो सालों से मुठ्ठी में बंधे थे, एक दूसरे को समझाने के लिए ढीले हुए, पर दोनों में से कोई समझने को राजी नहीं, दोनों, जो दिल से हारे थे। पीयूष को इतनी गर्म हवा के बाद अमृता का ठंडा झोंका एक सूकून का एहसास दे रहा था और रागिनी  जो पीयूष पर किसी की परछाई भी नहीं पडने दे सकती है, वो पीयूष को कैसा भी अहसास किसी के साथ बांटने को तैयार नहीं।

     छीना- झपटी… आगा- पीछा में मुठ्ठिया ढीली हो गई… पीयूष ने आखिरी बार पूछा, “रागिनी  यदि मेरे साथ आना है, “तो मुठ्ठी जोर से पकडो, हम अमृता का ठंडा अहसास साथ-साथ ले कर आगे चलेंगे या फिर मैं मुठ्ठी खोलता हूं”।

     रागिनी  चीखी-चिल्लाई… उसने पीयूष को अपना हृदय खोलकर दिखाया कि ये ठंडा झोंका सिर्फ वहम है, ये उनके रिश्ते को ठंडक देने की बजाय झुलस कर चली जायेगी। उसने समझाया कि छोटा सा मगर अनचाहा रिश्ता उनके बीच में आग के दरिया का काम करेगा। पीयूष को लगा रागिनी  बहुत स्वार्थी हो रही है, उसने धीरे-धीरे अपनी उंगलियों का कसाव ढीला कर दिया।  रागिनी  हैरान हो गई, उसे लगा पीयूष स्वार्थी हो रहा है, उसने भी कसाव ढीला किया और फिर झटके से दोनों हाथ अलग हो गए…..।

थोडी देर को दोनों हाथ भी परेशान हो उठे। इतने सालों का साथ, एक दूसरे की गर्माहट, दोनों के हाथों का पसीना जो एक बन गया था.. धीरे-धीरे सब कम होता जा रहा था… उडता जा रहा था…।

     पीयूष चला गया इस मलाल के साथ, ‘क्या बिगड जाता यदि रागिनी  मेरा साथ दे देती’ मैं कोन सा अमृता को हमेशा के लिए साथ ले रहा था,। जरा ठंडी छांव लेकर आगे ही तो बढना था… पर नादान समझ ही नहीं पाई। चलो क्युं समय गवाउं… थोडी अमृत की छांव ले लूं, वो सुकून पा लूं जिसके लिए ताउम्र तडपा हूं…..।

’अमृता…अमृता’

रागिनी  भी वही नाम पुकार रही थी पर सूकून से नहीं जलन..इर्श्या से। उसकी अंतर-आत्मा धूं-धूं करके जल रही थी और वो अकेली खडी यही कामना कर रही थी कि भगवान कभी किसी एक क्षण के लिए पीयूष के मन में ऐसी जलन, ऐसा अहसास जिससे वो गुजर रही है, पैदा कर दे…तब शायद पीयूष उसके अहसास और उसके प्यार को पहचान सके।

     रागिनी अकेले ही अपनी राह चल पडी…..साथ चल रही थी धूमिल होती पीयूष की परछाई का अहसास और एक आवाज ‘अमृता….अमृता’

रीमा मलिक