Stories

चमत्कारी कुर्सी – Mystery of the magical chair

एक बार बहुत बड़े यशस्वी व तपोबल वाले महात्मा अपने शिष्यों को लेकर घूम रहे थे। भ्रमण करते-करते शाम का समय घिर आया। दूर गांव नज़र तो आया, परंतु वहां तक जाने का रास्ता बीहड़ था और उस जंगल में हिंसक जीव-जंतुओं की भरमार थी।

जंगल के बाहर गांव से दूर लोहार की भट्टी थी। अपनी भट्टी के साथ ही बने घर में वह स्वयं रहता था। महात्मा जी को उसी लोहार के घर शरण लेनी पड़ी। लोहार ने सहर्ष महात्मा जी के चेलों को अपने घर में ठहराया। उनका उचित स्वागत-सत्कार किया। सबको भर पेट भोजन खिलाया और प्रेम-पूर्वक उनके सोने का इंतजाम किया। महात्मा जी उसके आतिथ्य-सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए। उनके शिष्यों ने भी लोहार के व्यवहार की बहुत सराहना की। सुबह महात्मा जी जब जाने लगे तो उन्होंने लोहार से कहा—“भाई, हम तुम्हारे सत्कार से अति संतुष्ट हुए”। तुम कोई भी तीन वर मांग लो।

प्राचीन युग में महात्मा लोग इतने तपोबल वाले होते थे कि वह जिसे जो वर दे देते थे, वह एक-एक अक्षर सत्य हो जाता था। लोहार हाथ जोड़ कर बोला—“हे महात्मा, वर दीजिए कि मुझे किसी चीज की कमी न रहे”। महात्मा जी ने ‘तथास्तु’ कहकर दूसरा वर मांगने के लिए कहा। लोहार ने सौ वर्ष लम्बी आयु मांगी। वह भी मिल गयी तो तीसरा वर क्या मांगे। इस पर वह हड़्बड़ा गया। अब ओर क्या मांगे। बस उसके मुंह से निकल गया—–“तीसरा वर यह दीजिए कि मेरी भट्टी में जो लोहे की कुर्सी है उस पर जो बैठे, वह मेरी मर्जी के बिना न उठ पाए”।

वर देकर महात्मा जी चले गए। वह लोहार का ही काम करता रहा। पर उसके लोहे में बरकत आ गई। उसे किसी चीज की कमी न रही।

लोहार ने बड़े ठाठ और बड़े मजे से सौ वर्ष का जीवन पूरा किया। वह बूढ़ा नही हुआ। खूब हट्टा-कट्टा बना रहा। दुनियां छोड़ने का समय आया तो उसे लेने यमराज आ गए। लोहार घबरा गया। उसके दिमाग में एक युक्ति आई। उसने यमराज से कहा—महाराज, आप उस कुर्सी पर विराजें। मैं जीवन के अंतिम कार्य निबटा लूं। थोड़ा सा समय ही लगेगा। यमराज उस कुर्सी पर बैठ गए।

लोहार ठहाका मार कर हंसा। अब यमराज लोहे की कुर्सी पर कैद हो गए थे। बिना लोहार की इच्छा के वह उठ नही सकते थे और बिना उनके उठे लोहार मरना नही था। लोहार बड़ा खुश हुआ। इसी खुशी में मुर्गा खाने की सोची। एक मुर्गा लेकर लोहार ने उसकी गर्दन काटी। पर गर्दन तुरंत जुड़ गई और मुर्गा भाग गया। बिना यमराज के किसी की मौत कैसे आती? उसने एक बकरा काटा। उसकी भी गर्दन जुड़ गई और वह लात मार कर भागा।

लोहार ने सोचा चलो दाल-रोटी और खिचड़ी खा कर गुजारा कर लेंगे। पर एक साल बीतते ही अनर्थ होने लगा। कोई जानवर नही मरा तो जीवों की संख्या बेतहाशा बढ़ने लगी। हवा में कीट-पतंगे, मच्छर और मक्खियां इतनी हो गई कि सांस लेना भी दूभर हो गया। हवा के आर-पार देख पाना कठिन हो गया। हवा में हुर्रहुर्र का शोर भरा रहता। आकाश चील, गिद्धों और टिड्डियों से ढ़कने लगा। मेढ़कों के कारण सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया। चुहे इतने बढ़े कि सारी फसलों का अनाज हजम करने लगे। पक्षी इतने हो गए कि पेड़ों के सारे फल खा जाते। पानी में जलीय जानवर व मछलियां आदि इतने भर गए कि पीने के लिए एक गिलास पानी न मिलता। चारों ओर जो बदबू फैलने लगी वह अलग। सापों के मारे तो हाल ही बुरा हो गया।

यह सब देखकर लोहार दहल गया। उसने जाकर यमराज को मुक्ति दे दी और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और प्रकृति फिर सुचारू रूप से काम करने लगी।

शिक्षा : मृत्यु एक आवश्यकता है। अगर मृत्यु न हो तो हमारी धरती व हमारा जीवन जीवित नर्क बन जायेगा। प्रकृति के नियमों का आदर करें|