शुचि मुद्रा/ मुष्टि मुद्रा

शुचि मुद्रा के लिए दोनों हाथों के अंगूठे अन्दर की ओर करके मुट्ठियां बन्द कर छाती के सामने ले आएं। सांस भरते हुए दाएं हाथ को सीधा सामने की ओर ले जाए और तर्जनी अंगुली (वायु तत्व) को बाहर निकालें। बाएं हाथ की मुट्ठी को वहीं रहने दें। फिर इसी प्रकार सांस भरते हुए दाएं हाथ को वापिस छाती के सामने लाएं और बाईं मुट्ठी को सामनी लाते हुए तर्जनी अंगुली को सीधा करें। इस क्रिया को बारी-बारी 5-6 बार करें। लाभ : शुचि अर्थात सफाई। शुचि हस्त मुद्रा बड़ी आंत को साफ रखती है जिससे कब्ज नहीं होती।पुरानी कब्ज ...

शंख मुद्रा/ सहज शंख मुद्रा

शंख मुद्रा बाएं हाथ के अंगूठे को दाएं हाथ की मुट्ठी में बंद कर लें और दाएं हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ की सबसे बड़ी मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से मिलाएं। बाएं हाथ की चारों उंगलियां आपस में मिलाकर रखें। दोनों हाथों को इस प्रकार मिलाने से शंख जैसी आकृति बन जाती है। जिसे शंख मुद्रा कहते हैं। इसी प्रकार दूसरे हाथ से भी ये मुद्रा कर सकते हैं। शंख मुद्रा करते समय ओम का उच्चारण करने से वही ध्वनि हम अपने अन्दर भी महसूस कर सकते हैं। शंख मुद्रा को दिन में तीन बार 15-15 मिनट के लिए ...

ध्यान मुद्रा/ कुबेर मुद्रा/ कुंड़लनी मुद्रा

ध्यान मुद्रा सुखासन में या पदमासन में बैठ कर बायां हाथ अपनी गोद में रखें। हथेली ऊपर की ओर रखें। दाएं हाथ को बाएं हाथ की हथेली के ऊपर रखें। अब दोनों हाथों के अंगूठे के आगे वाले टिप को मिला लें। ये ध्यान मुद्रा बनती है। अर्थात जब भी ध्यान में बैठें तब यही मुद्रा लगानी चाहिए। ध्यान मुद्रा में बैठने से शरीर व मन पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। जिससे ईश्वरीय अनुभूति की प्राप्ति के लिए तैयार हो जाते हैं।ध्यान मुद्रा से उच्च रक्त चाप और निम्न रक्त चाप दोनों ठीक होते हैं।ध्यान मुद्रा लगाने से ...

क्षेपण मुद्रा/ गरुड़ मुद्रा

दोनों हाथों की उंगुलियाँ और अंगूठे को आपस में फंसा कर ग्रिप बना लें और तर्जनी उंगुलियों को सीधा नीचे की ओर रखें। यदि मुद्रा बैठ कर लगाएं, तब तर्जनी उंगुली सीधा नीचे की ओर, यदि लेटकर कर रहे हैं तब तर्जनी उंगुलियाँ पैरों की ओर रखें। क्षेपण मुद्रा लगाते समय ध्यान अपनी सांसों पर रखें और 7-8 बार लम्बे सांस भरें और तेजी से छोड़ें। फिर सुख आसन में बैठ कर दोनों हाथों को घुटनों पर, हथेली आसमान की ओर करके ध्यान में बैठें। क्षेपण मुद्रा को 7-8 बार ही करना चाहिए। लाभ: क्षेपण मुद्रा शरीर से सभी प्रकार ...

श्वसनी मुद्रा Bronchitis Mudra

सबसे छोटी उंगली को अंगूठे की जड़ में लगाएं। अनामिका अंगुली के शीर्ष को अंगूठे के बीच वाले भाग में लगाएं। मध्यमा अंगूले को अंगूठे के शीर्ष भाग से मिलाएं और तर्जनी अंगुली को सीधा रखें।वश्वसनी मुद्रा दिन में पाँच बार पाँच-पाँच मिनट के लिए करें। लाभ : # श्वसनी मुद्रा श्वास रोगों के लिए लाभदायक है। # श्वास नली में जमा श्लेष्मा को बाहर निकालने में सहायक होती है। # श्वसनी मुद्रा से श्वास रोग ठीक होते हैं। # श्वास नली के शोध में लाभकारी होती है। दमा/अस्थमा मुद्रा दोनों हाथों की मध्यमा उंगलियों को मोड़ कर उनके नाखूनों ...

गणेश मुद्रा/ शिवलिंग मुद्रा/ लिंग मुद्रा

गणेश मुद्रा जिस प्रकार हम जो कार्य गणेश जी की पूजा/अर्चना से करते हैं वही कार्य गणेश मुद्रा से भी कर सकते हैं। हिन्दु हमेश कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी की पूजा करते हैं ताकि कार्य में विध्न न पड़े। बाएं हाथ की हथेली बाहर की ओर, दाएं हाथ की हथेली ह्रदय की ओर करके दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में ग्रिप बनाएं। सांस भरते हुए दोनों हाथों को ह्रदय के सामने तानें और सांस छोड़ते हुए ढ़ीला छोड़ दें। अंगुठे भी अंगुलियों के साथ जुड़े रहें। पाँच/छ: बार करें। गणेश मुद्रा से अनाहत चक्र ...

शक्ति मुद्रा/अग्नि शक्ति मुद्रा/पूषाण मुद्रा

शक्ति मुद्रा शक्ति मुद्रा दो प्रकार से लगाई जा सकती है। पहली विधि : पहली विधि में दोनों हाथों के अंगूठे को अन्दर कर मुट्ठियां बन्द करने से शक्ति मुद्रा बनती है। दूसरी विधि : दूसरी विधि में भी मुट्ठियों को बन्द करना है परंतु अंगूठे को अन्दर कर तर्जनी अंगुली और मध्यमा अंगुली से दबा लें। छोटी उंगुली और अनामिका अंगुली को सीधा कर दोनों के शीर्ष आपस में मिलाएं। तर्जनी अंगुली और मध्यमा अंगुलियों के पीछे के भाग व नाखून आपस में मिला लें। सांसो को स्वाधिष्टान चक्र पर देखने का प्रयास करें। शक्ति मुद्रा दिन में तीन ...

व्यान मुद्रा/उदान मुद्रा/समान मुद्रा

व्यान मुद्रा तर्जनी और मध्यम अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से मिला कर बाकी की अंगुलियों को सीधा रखने से व्यान मुद्रा बनती है। व्यान वायु का सम्बंध जल तत्व और स्वाधिष्ठान चक्र से है। व्यान वायु सारे शरीर में घूमती है। इसका कार्य सभी स्थूल और सूक्ष्म नाड़ियों में रक्त संचार बनाए रखना है। इस मुद्रा को सुबह-शाम 30-30 मिनट तक लगानी चाहिए। व्यान मुद्रा करने से खून का संचार ठीक होता है तथा इससे सम्बन्धी रोग समाप्त होते हैं।व्यान मुद्रा से ह्र्दय सम्बन्धी रोगों में लाभ मिलता है।व्यान मुद्रा निम्न रक्त चाप और उच्च ...