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पहेलीबाज भिखारी

बहुत पुराने समय में एक राजा था। वह बड़ा दानी और उदार था। बुद्धिमानों का बड़ा आदर करता था। एक दिन महल के द्वार पर एक बूढ़ा फटेहाल भिखारी आया। वह द्वारपाल से बोला—“मुझे राजा के पास सहायता मांगने जाना है, मुझे भीतर जाने दो”|

द्वारपाल ने कहा—“अरे भिखारी, साफ-साफ क्यों नही कहता कि भीख मांगनी है”|

भिखारी बोला—“जुबान संभाल कर बोलो। जाओ, राजा से कहो कि तुम्हारा भाई मिलने के लिए आया है”|

भिखारी की बात सुन कर द्वारपाल सहम गया। सब जानते थे कि राजा का कोई भाई-वाई नहीं है। पर शायद कोई दूर के रिश्ते का हो। यह सोच कर द्वारपाल ने राजा को सूचना देना अच्छा समझा। राजा ने सुना तो सोच में पड़ गया। उसे बात बड़ी रहस्यमय लगी। उसे लगा कि वह भिखारी कोई पहेली बुझाना चाहता है। उसने भिखारी को अपने पास बुलवा लिया और अपने पास बिठाया। वह बैठ गया तो राजा ने पूछा—“कहिए भाई साहब, क्या हाल हैं?”

भिखारी बोला—“भाई, हाल ठीक नहीं हैं, विपति में हूं। जिस महल में रहता हूं, वह पुराना पड़ चुका है। कभी भी टूट कर गिर सकता है। मेरे बतीस नोकर थे, वे एक-एक करके चले गए। पाँच रानियां हैं, वे बूढ़ी हो चुकी हैं। मेरी सेवा नहीं कर पाती। मेरी कुछ सहायता कीजिए”|

राजा ने गौर से फकीर को देखा। फिर मुस्कराया। राजा ने खजांची को बुला कर फकीर को सौ रुपये देने का आदेश दिया। फकीर बोला—“भाई सौ रुपये तो बहुत कम हैं। मैं आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूं”|

राजा बोला—“भाई साहब, इस बार राज्य में सूखा पड़ा है, लगान कम आया है। इससे अधिक नहीं दे पाउंगा”|

भिखारी ने ठंड़ी आह भर कर कहा—“तो फिर मेरे साथ सात समुंद्र पार चलिए। कहते हैं वहां सोनें की खाने हैं। वहां से लाकर अपना कोष भर लीजिए”|

राजा ने पूछा—“पर समुंद्र पार कैसे करेंगे?”

भिखारी ने उत्तर दिया—“मेरे पैर पड़ते ही समुंद्र सूख जायेगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप जान ही गए हैं”|

राजा ने खजांची को आदेश दिया कि भिखारी को एक हजार रुपये दिए जाएं। जब भिखारी पैसे लेकर चला गया तो दरबारियों ने राजा से कहा—“महाराज, आपकी और उस भिखारी की बातें हमारी समझ में नही आईं”|

राजा ने उत्तर दिया—“वह भिखारी काफी बुद्धिमान था। पहेलियों में बात की उसने। मै राजा हूं मैं रंक। भाग्य के सिक्के के ये दो पहलू हैं, इस नाते हम भाई हुए। जिस महल में वह रहता है वह उसका शरीर है जो पुराना हो चुका है। कभी भी मृत्यु हो सकती है। उसके बत्तीस नौकर उसके दांत थे जो साथ छोड़ चुके हैं। पाँच रानियां उसकी इंद्रियां हैं जो कमजोर हो चुकी हैं”।एक मंत्री ने प्रश्न किया—“लेकिन समुंद्र की बात क्या थी, महाराज?” 

राजा ने उत्तर दिया—“वह पहेली बना कर मुझे ताना दे रहा था कि उसके पैरों में सब कुछ सुखाने की शक्ति है। जैसे राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा कोष सूख गया। इसलिए मैंने सौ रुपये के स्थान पर उसे हजार रुपये दे दिए”। कभी-कभी बहुत ही सामान्य लगने वाले लोग भीतर से बहुत ही गहरे निकलते है।

सीख : किसी को तुच्छ समझ कर उसे दुत्कारना नहीं चाहिए। कौन जाने किससे कुछ ज्ञान सीखने को मिले।