Hast Mudra

शक्ति मुद्रा/अग्नि शक्ति मुद्रा/पूषाण मुद्रा

शक्ति मुद्रा

शक्ति मुद्रा दो प्रकार से लगाई जा सकती है।

पहली विधि :

पहली विधि में दोनों हाथों के अंगूठे को अन्दर कर मुट्ठियां बन्द करने से शक्ति मुद्रा बनती है।

दूसरी विधि :

दूसरी विधि में भी मुट्ठियों को बन्द करना है परंतु अंगूठे को अन्दर कर तर्जनी अंगुली और मध्यमा अंगुली से दबा लें। छोटी उंगुली और अनामिका अंगुली को सीधा कर दोनों के शीर्ष आपस में मिलाएं। तर्जनी अंगुली और मध्यमा अंगुलियों के पीछे के भाग व नाखून आपस में मिला लें।

सांसो को स्वाधिष्टान चक्र पर देखने का प्रयास करें।

शक्ति मुद्रा दिन में तीन बार 12-15 मिनट के लिए लगानी चाहिए।

लाभ :

  • शक्ति मुद्रा लगाने से गुस्सा शांत होता है। जब कभी गुस्सा आए तब शक्ति मुद्रा लगाने से शांत हो जाते हैं।
  • शक्ति मुद्रा लगाने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है।
  • खिलाड़ियों के लिए और शारीरिक श्रम करने वालों के लिए शक्ति मुद्रा लाभकारी है।
  • शक्ति मुद्रा लगाने से हाथों की कंपन दूर होती है।
  • शक्ति मुद्रा की दूसरी विधि लगाने से इन सभी लाभ के अतिरिक्त ये लाभ भी होते हैं।
  • इस विधि से शक्ति मुद्रा लगाने से महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान होने वाली ऐंठन दूर होती है। इस विधि की शक्ति मुद्रा लगाने से महिलाएं असहनीय पीड़ा से बच सकती हैं।

अग्नि शक्ति मुद्रा

दोनों हाथों के अंगूठे को बाहर कर उंगलियों की मुट्ठी बना लें। दोनों हाथों के अंगूठे के शीर्ष आपस में मिला लें। हथेलियाँ नीचे की ओर रखें।

अग्नि शक्ति मुद्रा 15 से 45 मिनट तक लगाई जा सकती है।

लाभ :

  • अग्नि शक्ति मुद्रा सिर दर्द व माईग्रेन में लाभदायक है।
  • अग्नि शक्ति मुद्रा निम्न रक्त चाप से जुड़ी सभी समस्याओं के लिए लाभकारी है।  

पूषाण मुद्रा

पूषाण मुद्रा सूर्य देवता को समर्पित है। पुषाण मुद्रा बनाने के लिए तीन अलग-अलग मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है।

पुषाण मुद्रा लगाने की दो विधियां हैं।

पहली विधि :

दाएं हाथ से व्यान मुद्रा बनाएं अर्थात तर्जनी और मध्यमा अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाएं और बाकी उंगलियां सीधी रखें। बाएं हाथ से अपान मुद्रा बनाएं अर्थात मध्यमा अंगुली और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाएं और बाकी की उंगलियां सीधी रखें।

दूसरी विधि :

दाएं हाथ से प्राण मुद्रा बनाएं अर्थात छोटी अंगुली और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाएं और बाकी की उंग़लियां सीधी रखें। बाएं हाथ से अपान मुद्रा बनाएं अर्थात मध्यमा अंगुली और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाएं और बाकी की उंगलियां सीधी रखें।

इन दोनों विधियों में बाएं हाथ से केवल अपान मुद्रा ही बनानी है।

पुषाण मुद्रा सूर्य देवता को समर्पित होने के कारण इसका सीधा प्रभाव मणिपुर चक्र पर पड़ता है क्योंकि मणिपुर चक्र का सीधा सम्बन्ध सूर्य से है। इसी कारण मणिपुर चक्र हमारे शरीर में जठराग्नि प्रज्जवलित करता है।

लाभ :

पुषाण मुद्रा की पहली विधि में व्यान मुद्रा और अपान मुद्रा के लाभ प्राप्त होते हैं और दूसरी विधि में प्राण मुद्रा और अपान मुद्रा के लाभ प्राप्त होते हैं।

  • व्यान मुद्रा ह्रदय रोग और उच्च रक्त चाप से बचाती है।
  • अपान मुद्रा मूत्र प्रणाली तथा मल-विसर्जन प्रणाली को ठीक रखती है।
  • प्राण मुद्रा शरीर की सोई हुई शक्तियों को जागृत करती है, रक्त संचार ठीक रखती है तथा शक्तिवान बनाती है।
  • एक साथ दो मुद्राएं बनाने से (व्यान और अपान) गैंस, पेट में भारीपन, उल्टी, मिचली आदि की समस्या दूर होती हैं।

दूसरी दो मुद्राएं एक साथ बनाने से प्राण मुद्रा और अपान मुद्रा लगाने से मणिपुर चक्र शक्तिशाली होता है और वहाँ से उत्पन्न हुई उर्जा सारे शरीर में फैल जाती है। यादाश्त बढ़ जाती है और शरीर के प्रत्येक अंग में नईं चेतना जागृत होती है।