सुरभि मुद्रा

दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को बाएं हाथ की मध्यम अंगुली से लगाएं और बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को दाएं हाथ की मध्यम अंगुली से लगाएं। फिर दाएं हाथ की अनामिका को बाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली से लगाएं और बाएं हाथ की अनामिका को दाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली से लगाएं। दोनों हाथों के अंगुठे अलग ही रहेंगे। हथेलियों की दिशा नीचे की ओर रखें। इस तरह एक हाथ के वायु तत्व दूसरे हाथ के आकाश तत्व का मिलान होता है तथा एक हाथ के पृथ्वी तत्व का दूसरे हाथ के जल तत्व से मिलान होने पर इन ...

मृत संजीवनी या अपान वायु मुद्रा

तर्जनी उंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाकर और मध्यम और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं। सबसे छोटी अंगुली को सीधा रखें ऐसे मृत संजीवनी मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में दो मुद्राएं बनती हैं—वायु मुद्रा और अपान मुद्रा। इसलिए इस मुद्रा को अपान वायु मुद्रा भी कहते हैं। इस मुद्रा को सुबह-शाम दोनों समय 15-15 मिनटों के लिए लगानी चाहिए। दिल का दौरा पड़ने पर अपान वायु मुद्रा बहुत लाभकारी है इसलिए इसे मृत संजीवनी मुद्रा भी कहते हैं। बढ़ी हुई वायु के कारण ह्रदय की रक्तवाहिनियां शुष्क होने लगती हैं, उनमें ...

प्राणिक मुद्राएं

हमारे शरीर में पाँच प्रकार के प्राण हैं। (1) प्राण वायु (2) अपान वायु (3) उदान वायु (4) व्यान वायु (5) समान वायु। प्राण मुद्रा कनिष्ठ अंगुली और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्रभाग से लगा कर बाकी की अंगुलियों को सीधा रखें, इस मुद्रा को प्राण मुद्रा कहते हैं। प्राण मुद्रा में जल तत्व, पृथ्वी तत्व और अग्नि तत्व के सभी गुणों का फायदा होता है। प्राण वायु का सम्बंध वायु तत्व और ह्रदय चक्र से है। ह्रदय से लेकर नासिका तक जो प्राण वायु होते हैं उसे प्राण वायु कहते हैं। अनामिका अंगुली सूर्य ग्रह ...

ज्ञान मुद्रा/ वायु मुद्रा

ज्ञान मुद्रा ज्ञान मुद्रा का विवरण हमनें पहले भी किया है परन्तु एक बार फिर ज्ञान मुद्रा के बारे में बताया जा रहा है। ज्ञान मुद्रा ह्रदय चक्र से सम्बंधित है। ये मुद्रा शिरोमणि मुद्रा है। मूर्तियों और चित्रों में सभी ऋषि मुनि, भगवान महावीर, भगवान शिव, भगवान बुद्ध, देवी सरस्वती, गुरु नानक देव जी, जीज़स सभी को ज्ञान मुद्रा में दिखाया गया है। यहां तक कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश भी ज्ञान मुद्रा में दिया था। विधि : ज्ञान मुद्रा अंगुठे के शीर्ष भाग को तर्जनी अंगुली के शीर्ष भाग को आपस में मिला ...

आकाश मुद्रा/ शुन्य मुद्रा

आकाश मुद्रा आकाश तत्व की प्रतीक मध्यम अंगुली (Middle Finger) का अग्रभाग (Tip) अंगुठे (Thumb) के अग्र भाग से मिलाएं और बाकी की अंगुलियां साधी रखें। इस मुद्रा को आकाश मुद्रा कहते हैं। आकाश मुद्रा एक घंटे तक लगाई जा सकती है। जैसा कि पहले बताया गया है कि अंगुठा अग्नि तत्व का प्रतीक है और मध्यम अंगुली आकाश तत्व की प्रतीक है। इस प्रकार आकाश तत्व और अग्नि तत्व मिलते हैं। माला के मनकों को अंगुठे तथा मध्यम अंगुली से ही फेरा जाता है जिससे ऐश्वर्य तथा भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। ध्यान लगाने की अवस्था में यदि ...

पृथ्वी मुद्रा/ सूर्य मुद्रा

पृथ्वी मुद्रा पृथ्वी मुद्रा अनामिका अंगुली ( Ring finger ) के शीर्ष भाग ( Tip ) को अंगुठे ( Thumb ) के शीर्ष भाग से मिलाने से बनती है। बाकी अंगुलियों को सीधा रखा जाता है। इससे पृथ्वी तत्व बढ़ता है। अनामिका अंगुली पृथ्वी तत्व की प्रतीक है जो हमें स्थायित्व देता है। अनामिका तथा अंगुठा हमेशा विधुत प्रवाह करता है। इसलिए अंगुठे के साथ-साथ अनामिका से भी माथे पर तिलक किया जाता है। इसे 45 मिनट तक करने से उर्जा आ जाती है। पृथ्वी मुद्रा करने से जीवन शक्ति का विस्तार होता है। कद एवं वजन बढ़ाने में सहायक ...

इन्द्र मुद्रा/वरुण मुद्रा

इन्द्र मुद्रा हाथों की सबसे छोटी उंगली अर्थात कनिष्ठ उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिला दें और बाकी उंगलियाँ सीधी रखें तो यह मुद्रा इन्द्र मुद्रा कहलाती है। इन्द्र मुद्रा स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करती है। हाथों की सबसे छोटी उंगली अर्थात कनिष्ठ उंगली शरीर में जल तत्व की धोतक है। शरीर में 70 से 80 प्रतिशत जल होता है। जब शरीर में जल तत्व कम हो जाता है तो इस मुद्रा से शरीर में जल तथा अन्य तत्वों का संतुलन बना रहता है तथा इसके अभ्यास से कई रोगों से बचा जा सकता है। इस मुद्रा ...

हस्त मुद्रा चिकित्सा

प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सुख, शांति, धन-दौलत और प्रतिष्ठा पाने के लिए सुबह-शाम भाग-दौड़ में लगा हुआ है। इतनी भाग-दौड़ के बाद केवल कुछ धन तथा झुठी प्रतिष्ठा मिलती है परन्तु ढ़ेर सारी मानसिक परेशानियां तथा शारीरिक समस्याएं मिलती हैं। धन पा लेने के बाद उसी धन से ज्यादा सुख-सुविधाएं प्राप्त कर इंसान अपने शरीर को रोगी बना लेता है। शांति की चाह में अशांति को पा लेते हैं। जब मन अशांत हो तब कईं प्रकार की बिमारियां घिर आती हैं। अशांत मन से श्वास के ज़रिये ली गई प्राण शक्ति Cosmic energy की कमी या अधिकता हो जाती है, ...