Hast Mudra

शुचि मुद्रा/ मुष्टि मुद्रा

शुचि मुद्रा के लिए दोनों हाथों के अंगूठे अन्दर की ओर करके मुट्ठियां बन्द कर छाती के सामने ले आएं। सांस भरते हुए दाएं हाथ को सीधा सामने की ओर ले जाए और तर्जनी अंगुली (वायु तत्व) को बाहर निकालें। बाएं हाथ की मुट्ठी को वहीं रहने दें। फिर इसी प्रकार सांस भरते हुए दाएं हाथ को वापिस छाती के सामने लाएं और बाईं मुट्ठी को सामनी लाते हुए तर्जनी अंगुली को सीधा करें। इस क्रिया को बारी-बारी 5-6 बार करें।

लाभ :

  • शुचि अर्थात सफाई। शुचि हस्त मुद्रा बड़ी आंत को साफ रखती है जिससे कब्ज नहीं होती।
  • पुरानी कब्ज होने पर इस क्रिया को 4-6 बार और दिन में चार बार करना चाहिए।
  • कब्ज की स्थिति में शुचि मुद्रा के बाद मुष्टि मुद्रा करनी चाहिए। तुरंत फायदा होगा।

मुष्टि मुद्रा

मुष्टि अर्थात बंद मुट्ठी। इस मुद्रा के लिए अंगुलियों को मोड़ कर मुट्ठी बनाएं और अंगूठे को अंगुलियों के ऊपर ला कर अनामिका अंगुली (पृथ्वी तत्व) को हल्का सा दबाएं। इस प्रकार ये मुष्टि मुद्रा बनती है।

मुष्टि मुद्रा को दिन में तीन बार 15-15 मिनटों के लिए कर सकते हैं।

लाभ :

  • मुष्टि मुद्रा लगाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  • मुष्टि मुद्रा लगाने से कब्ज दूर होती है।
  • मुष्टि मुद्रा करने से लीवर क्रियाशील रहता है।

नोट : शुचि मुद्रा के बाद मुष्टि मुद्रा करने से अधिक फायदा होता है।