Hast Mudra

शंख मुद्रा/ सहज शंख मुद्रा

शंख मुद्रा

बाएं हाथ के अंगूठे को दाएं हाथ की मुट्ठी में बंद कर लें और दाएं हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ की सबसे बड़ी मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से मिलाएं। बाएं हाथ की चारों उंगलियां आपस में मिलाकर रखें। दोनों हाथों को इस प्रकार मिलाने से शंख जैसी आकृति बन जाती है। जिसे शंख मुद्रा कहते हैं। इसी प्रकार दूसरे हाथ से भी ये मुद्रा कर सकते हैं। शंख मुद्रा करते समय ओम का उच्चारण करने से वही ध्वनि हम अपने अन्दर भी महसूस कर सकते हैं।

शंख मुद्रा को दिन में तीन बार 15-15 मिनट के लिए करना चाहिए।

  • शंख मुद्रा करने से पाँचों तत्वों का संतुलन बना रहता है और सभी प्रकार के रोग, पाचन तंत्र के रोग, स्वर तंत्र के रोग और थायरायड़ के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  • जिस प्रकार शंखनाद से मंदिरों में भगवान के कपाट खोले जाते हैं उसी तरह शंख मुद्रा करने से हम अपने भीतर के कपाट भी खोल सकते हैं।
  • शंख़ मुद्रा करते समय ओम का उच्चारण करने से गले और गले की अन्य ग्रंथियों पर भी प्रभाव पड़ता है। जिससे गले के रोग, टांसिल, थायरायड़ ठीक होता हैं। वाणी मधुर और सुरीली होती है।शंख मुद्रा से पाचन क्रिया ठीक होती है। आंतें मुलायम होती हैं।

सहज शंख मुद्रा

सहज शंख मुद्रा शंख मुद्रा का ही एक रूप है। सहज शंख मुद्रा में दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फसांकर, हथेलियां दबा कर दोनों अंगुठों को मिला कर दोनों तर्जनी उंगली को हल्का सा दबाएं।

इस मुद्रा को दिन में तीन बार 15-15 मिनट करना चाहिए।

  • सहज मुद्रा लगाने से हथेलियां आपस में दबती हैं और अंगूठे के नीचे वाले भाग में दबाव पड़ता है जिससे मणिपुर चक्र पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इसके साथ-साथ अनाहत चक्र और ह्रदय के पीछे भी प्रभाव पड़ता है और रक्त संचार ठीक होता है।
  • मन शांत होता है और स्त्रियों में मासिक धर्म की अनियमितता समाप्त होती है।
  • सहज शंख मुद्रा करने से पाचन शक्ति बढ़ती है, गैस के रोग तथा आंतों के रोग दूर होते हैं।

इस मुद्रा को लगाने से स्वर दोष, गले के रोग दूर होते हैं, वाणी मधुर होती है और लगातार अभ्यास से तुतलाना बन्द हो जाता है।