Hast Mudra

क्षेपण मुद्रा/ गरुड़ मुद्रा

दोनों हाथों की उंगुलियाँ और अंगूठे को आपस में फंसा कर ग्रिप बना लें और तर्जनी उंगुलियों को सीधा नीचे की ओर रखें। यदि मुद्रा बैठ कर लगाएं, तब तर्जनी उंगुली सीधा नीचे की ओर, यदि लेटकर कर रहे हैं तब तर्जनी उंगुलियाँ पैरों की ओर रखें।

क्षेपण मुद्रा लगाते समय ध्यान अपनी सांसों पर रखें और 7-8 बार लम्बे सांस भरें और तेजी से छोड़ें। फिर सुख आसन में बैठ कर दोनों हाथों को घुटनों पर, हथेली आसमान की ओर करके ध्यान में बैठें।

क्षेपण मुद्रा को 7-8 बार ही करना चाहिए।

लाभ:

  1. क्षेपण मुद्रा शरीर से सभी प्रकार की नकारात्मक negative उर्जा, तनाव, बुरे विचार, क्रोध को निकाल बाहर फैंक सकारात्मक positive उर्जा का प्रवाह करती है।
  2. क्षेपण मुद्रा लगाने से बड़ी आंत ठीक प्रकार से काम करती है तथा कब्ज नहीं होती।
  3. क्षेपण मुद्रा लगाने से फेफड़ों से कार्बन-ड़ॉय-ऑक्साईड़ अच्छी तरह से बाहर निकलती है।
  4. क्षेपण मुद्रा लगाने से पसीना अच्छी तरह से निकल जाता है।

गरुड़ मुद्रा

’गरुड़’ जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है ‘पक्षियों का राजा’ गरुड़ जो भगवान विष्णु का वाहन, सांपों का दुश्मन होता है और तेज दृश्टि वाला होता है।

गरुड़ मुद्रा दोनों हाथों के अंगुठे को आपस में जकड़ लें और दाएं हाथ को बाएं हाथ के ऊपर रखें और हाथों को पेट के निचले हिस्से (स्वाधिष्ठान चक्र) पर रखें और 8-10 बार लम्बे सांस लें और छोड़ें। इसी मुद्रा में हाथों को थोड़ा ऊपर पेट के ऊपर नाभि (मणिपुर चक्र) पर लाएं और 8-10 बार लम्बे सांस लें और छोड़ें। फिर हाथों को थोड़ा ऊपर पेट के ऊपर वाले भाग (अमाश्य यकृत) पर ले आएं और 8-10 बार लम्बे सांस लें और छोड़ें। अंत में हाथों को छाती पर लाएं और 8-10 बार लम्बे सांस लें और छोड़ें। बायां हाथ छाती पर ही रहने दें और दायां हाथ कन्धों पर लाएं और अंगुलियों को खोल कर फैलाएं।

ये क्रिया चार मिनटों में हो जायेगी। इस क्रिया को दिन में तीन बार करें।

  • उच्च रक्त चाप (High Blood pressure) वाले इस क्रिया को करें।
  • लाभ:
  • जब गरुड़ मुद्रा में हाथों के अलग-अलग स्थान पर सांसों की क्रिया करते हैं तो हाथों के शक्ति केन्द्र तथा सांसों की प्रक्रिया मिल कर सभी अंगों को स्वस्थ बनाती है।
  • शरीर के दाएं एवं बाएं अंग में प्राण शक्ति और उर्जा का संतुलन बनता है।
  • गरुड़ मुद्रा से शरीर के सभी अंग़ों में रक्त संचार बढ़ता है।
  • स्त्रियों में मासिक धर्म से होने वाली पीड़ा समाप्त होती है तथा अनियमिता दूर होती है।
  • पेट के नीचे वाले भाग से लेकर छाती तक सभी अंग क्रियांत्वित होते हैं और पेट के सभी रोग ठीक होते हैं।