Hast Mudra

ध्यान मुद्रा/ कुबेर मुद्रा/ कुंड़लनी मुद्रा

ध्यान मुद्रा

सुखासन में या पदमासन में बैठ कर बायां हाथ अपनी गोद में रखें। हथेली ऊपर की ओर रखें। दाएं हाथ को बाएं हाथ की हथेली के ऊपर रखें। अब दोनों हाथों के अंगूठे के आगे वाले टिप को मिला लें। ये ध्यान मुद्रा बनती है। अर्थात जब भी ध्यान में बैठें तब यही मुद्रा लगानी चाहिए। 

  • ध्यान मुद्रा में बैठने से शरीर व मन पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। जिससे ईश्वरीय अनुभूति की प्राप्ति के लिए तैयार हो जाते हैं।
  • ध्यान मुद्रा से उच्च रक्त चाप और निम्न रक्त चाप दोनों ठीक होते हैं।
  • ध्यान मुद्रा लगाने से मन का चिड़चिड़ापन, चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, अनिद्रा सभी रोगों से निवारण मिलता है।

कुबेर मुद्रा

तर्जनी और मध्यमा अंगुली के अग्र भाग को अंगुठे के अग्रभाग से मिलाएं और बाकी की दोनों उंगुलियों को मोड़कर हथेली से लगाएं। ये मुद्रा कुबेर मुद्रा कहलाती है।

  • अग्नि तत्व, वायु तत्व और आकाश तत्व के मिलने से तथा पृथ्वी तत्व और जल तत्व को दबाने से आत्म-विश्वास बढ़ता है और तनाव में कमी आ जाती है।
  • नाम के अनुसार ये मुद्रा समृद्धि के देवता कुबेर को समर्पित है।
  • कुबेर मुद्रा को लगाने से तनाव दूर होता है। इस मुद्रा में सोच को सकारात्मक रख कर जो भी निश्चय किया जाय तब वैसा ही होने लगता है।
  • कुबेर मुद्रा लगाने से साईनस समस्या दूर होती है और सिर का भारीपन और सिर दर्द समाप्त होता है।

कुंड़लनी मुद्रा

बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को बाहर कर मुट्ठी बन्द कर लें और दाएं हाथ में बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को लेकर मुट्ठी बन्द कर लें और अंगूठे के टिप को बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली के टिप पर रखें। इन मुट्ठीयों को नाभि के निचले हिस्से में रखें।

कुंड़लिनी मुद्रा 15-15 मिनट दिन में तीन बार कर सकते है।

लाभ :

  • जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि कुंड़लिनी मुद्रा करने से कुंड़लिनी जागृत होती है।
  • कुंड़लिनी मुद्रा का लगातार अभ्यास करने से मनुष्य की आध्यात्मिक और दैवी शक्तियों का मिलाप होता है।
  • कुंड़लिनी मुद्रा करने से स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होता है जिससे सभी सृजनात्मक शक्तियां जागृत होती हैं।