कहते हैं कि इस दुनिया में रिश्तों से बड़ी कोई अमूल्य वस्तु नहीं होती, कुछ खून के रिश्ते होते हुए भी सिर्फ अपना मतलब और फायदा देखा करते हैं और कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो खून के तो नहीं होते पर वो जिंदगी ख़तम होने के बाद भी आपका साथ दे जाते हैं। आज यहाँ पर हम ऐसे ही कुछ रिश्तों की बात करेंगे और उनकी गहराइयों को जानेगें।
ये कहानी शुरू होती है आज से कुछ 30 से 32 साल पहले, जगह थी दिल्ली, एक छोटा सा घर जहां एक माता पिता थे और साथ थे उनके तीन बच्चे। दो लड़के हो जाने के बाद उन्होंने तीसरी लड़की चाही थी पर तीसरा भी लड़का हुआ। ये कहानी है उसी तीसरे लड़के की जिसका नाम था मनोज।
मनोज को बचपन से ही बिलकुल खुला छोड़ा हुआ था, छोटा सा मोटा सा बच्चा जो अपनी ही धुन में रहता था जो बचपन से ही बहुत बुद्धिमान था। माता पिता का ज़्यादा ध्यान अपने बड़े दोनों बच्चों पर ज़्यादा रहता था, शायद तीसरे पर इतना ध्यान न देने की वजह थी कि बड़े दोनों बच्चे उतने बुद्धिमान नहीं थे जितना मनोज था। मनोज अपनी पढ़ाई खुद करता, मनोज का पहला स्कूल पांचवी कक्षा तक ही था। जब छटवीं कक्षा में मनोज को दूसरे स्कूल में दाखिला लेना था तब उसके पिताजी दिल्ली में नहीं थे और माँ ने स्कूल जाने से मना कर दिया था। छटवीं क्लास का बच्चा बहुत छोटा होता हैं, लेकिन मनोज ने जाकर अपना दाखिला स्कूल में खुद करवाया।
अब जिंदगी ऐसे ही चलने लगी, घर में पैसों की तंगी की वजह से मनोज जब ग्यारवी कक्षा में था तो उसने घर-घर जाकर अखबार बांटने शुरू किये जिससे वो अपनी स्कूल की फीस भर देता था। फिर बारहवीं के बाद घरवालों ने पढ़ाई छोड़ने को कहा क्योंकि उनके पास उतने पैसे नहीं थे कि वो मनोज को पढ़ा पाते, परंतु मनोज ने हिम्मत नहीं हारी वो अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ सकता था जिसके लिए वह सुबह अखबार बांटता था और फिर स्कूल जाता था, फिर शाम को एक छोटे से होटल में जाकर वेटर का काम करता था जिससे वो अपनी फीस भर देता था। कुछ समय बाद मनोज ने एयरोनॉटिकल की परीक्षा दी जिसमें वो पास हो गया, पर जब वो कॉलेज में दाखिला लेने गया तो कॉलेज वालों ने 2 लाख फीस के तौर पर मांगे। मनोज के पास इतने पैसे नहीं थे और उसके पिताजी ने पैसे देने से मना कर दिया था। हताश मनोज वो दाखिला नहीं ले पाया और एक छोटी सी दस हजार की नौकरी करने लगा।
परंतु अब उसके अंदर एक गुस्सा भर गया था क्योंकि जिंदगी उसको बहुत कुछ दे सकती थी पर किसी ने मदद नहीं की, इसलिए वो भी आम लोगों की तरह एक साधारण सी नौकरी करने लगा। पर उसके अंदर कुछ कर दिखाने की क्षमता बहुत पहले से ही थी नौकरी के साथ-साथ उसने अपना एक व्यापार शुरू किया। बहुत जगह से उधार लेकर धीरे-धीरे वो व्यापार ख़ूब बढ़ने लगा। अब मनोज के पास खूब पैसा था और वो उन्नति के रास्ते पर निकल चुका था। जो घर के लोग मनोज को पूछते तक नहीं थे अब वो लोग उसके आगे-पीछे घूमते थे। मनोज उनके लिए सब करता था क्योंकि वो अपने आप को एक पेड़ की तरह समझता था और अपने मन में कहता था कि मैं बस इस दुनिया में सबको छाया देने के लिए आया हूँ भले ही कोई मुझे सहारा दे या न दे। जब मनोज की जिंदगी में सिर्फ उन्नति थी तभी उसकी मुलाकात एक लड़की से हुई जिसका नाम था सिद्धी।
मनोज और सिद्धि की अब अच्छी बात-चीत शुरू हो गयी थी और वो दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे। परंतु उनकी ये दोस्ती कब प्यार में बदल गयी, पता ही नहीं चला और एक दिन उन दोनों ने ये इज़हार कर दिया कि वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं। सिद्धि मनोज के कारोबार में उसका हाथ बंटाने लगी। मनोज और सिद्धि ऐसे हो गए थे कि जहां मनोज होगा वहां सिद्धि आपको मिल ही जाएगी। वो एक पल के लिए भी नहीं छोड़ते थे एक दूसरे को। घरवालों को सब पता था पर कोई कुछ कहता नहीं था क्योंकि मनोज सबकी पैसों से मदद करता था।
धीरे-धीरे मनोज का वक़्त पलटा और उसे कारोबार में नुकसान होना शुरू हो गया। मनोज और सिद्धि ने अपने कारोबार को बचाने की खूब कोशिश की पर वो नीचे गिरता ही रहा। मनोज की हालत ये थी कि वो अपने घर में किसी की मदद नहीं कर पा रहा था। उसके पीछे उधार वाले पड़े हुए थे जिससे लोग उसके घर आ रहे थे पैसे मांगने के लिए। जो घरवाले कभी बोला भी नहीं करते थे आज सबके मुँह खुलने शुरू हो गए थे। अब सब जगह चर्चा ये थी कि ये सब इसलिए हो रहा हैं क्योंकि सिद्धि के पैर मनोज के लिए अच्छे नहीं हैं और इस तरह से सिद्धि को मनोज के बर्बाद होने का कारण बताया जा रहा था। पर बात आगे बढ़ती उससे पहले मनोज ने ये एलान कर दिया की वो सिद्धि से बहुत जल्द शादी करने वाला हैं।
ये बात किसी को हजम नहीं हुई और पूरा घर मनोज के अगेस्ट खड़ा था। अब घर में सबने मिलकर ये तय किया कि अगर मनोज को दोबारा से खड़ा करना है तो किसी भी तरह इस लड़की को मनोज की जिंदगी से हटाना पड़ेगा। इसके लिए उन्होंने बहुत सारे उपचार किये, मनोज के नाम की पूजा करवाई, सिद्धि पर इल्ज़ाम लगाया कि उसने मनोज के ऊपर कुछ ऊपरी चक्कर करवा रखा हैं। पर मनोज नहीं माना उसका प्यार वैसे ही बरकरार था, बात इतनी बढ़ गयी थी कि सिद्धि को अलग करने के लिए कुछ लोगों ने सिद्धि पर ये इल्ज़ाम तक लगा दिया कि सिद्धि एक चरित्रहीन लड़की है और ये बात जब मनोज के कानों तक आयी तो मनोज को बहुत गुस्सा आया, उसने लोगो को खुलकर जवाब दिया पर उसके प्यार में कोई कमी नहीं आई। उस समय सिद्धि बिलकुल टूट चुकी थी पर मनोज ने हार नहीं मानी।
अचानक से जब एक दिन सिद्धि एक मंदिर गयी और वहा जाकर अपनी और मनोज की जनम कुंडली दिखाई तो पंडित ने बताया कि आपके पैर बहुत ही मनहूस हैं इस लड़के के लिए, आप जब तक इसकी जिंदगी में रहोगे तब तक ये कभी नहीं उठ पाएगा। ये सब सुनकर मानो सिद्धि बिलकुल टूट ही गयी हो। उसने बहुत सोचा और सोचने के बाद ये नतीजे पर पहुंची कि अब वो मनोज की जिंदगी से बहुत दूर चली जाएगी और उससे कभी बात नहीं करेगी शायद तब ही सब ठीक होगा। सिद्धि ने ऐसा करना चाहा पर वो अपने आप को रोक नहीं पाई और मनोज के प्यार ने ऐसा करने नहीं दिया। फिर अंत में सिद्धि ने ये निर्णय लिया कि वो इस दुनिया से चली जाएगी क्योंकि वो जब तक इस दुनिया में रहेगी वो मनोज से दूर नहीं रह पाएगी।
तब उसने मनोज के लिए एक पत्र लिखा, जिसमें ये लिखा था कि मनोज, मैं अब और ये जिल्लत भरी जिंदगी नहीं जी पा रही हुं। अब मेरा इस दुनिया से जाना ही ज़रुरी है, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना और अंत में उसने लिखा कि मनोज अगर तुमने मुझसे कभी भी प्यार किया होगा तो तुम दोबारा से अपने व्यापार को उसी तरह से खड़ा करोगे और अपने औधे को वापस से वही लाओगे। एक दिन फिर पता चला कि सिद्धि ने आत्महत्या कर ली थी।
मनोज को बहुत बड़ा धक्का लगा था, मानो वो बिलकुल ख़तम सा हो गया था। उसके सपने में सिद्धि आती थी और ये बोलती थी कि मनोज तुम्हें मेरे लिए उठना पड़ेगा। कुछ साल बीत गए, अब मनोज ने दोबारा से व्यापार शुरू किया, ये सोचकर कि अब उसके जीने का मकसद ही सिद्धि का सपना पूरा करना है और फिर कुछ साल बाद मनोज ने अपने व्यापार को उसी जगह पर लाकर खड़ा कर दिया। वापस से लोग उसके आगे पीछे घूमने लगे और उसका औधा वैसे ही हो गया।
सब थे उसके पास पर उसने अपनी सबसे अमूल्य वस्तु खो दी थी। ये हैं रिश्ते जब पैसा होता है तब आपकी बड़ी से बड़ी गलती भी लोग पी जाते हैं पर जब आपके पास कुछ नहीं होता तो इंसान कुछ ना भी करे तब भी वो सबकी नज़रों में गलत ही होता है।
मैं ये बताना चाहूंगी कि मनोज का वापस से उठना इसलिए नहीं था कि सिद्धि के पैर ख़राब थे। मनोज के लिए अब सिद्धि नहीं थी उसकी जिंदगी में तो इसलिए वो उठ गया था। पर बात ये होती है, जब कोई अपना हमसे खोता है तो उसके बाद उसकी आखिरी इच्छा को पूरा करना ही जिंदगी का मक़सद हो जाता है और यहाँ मनोज के साथ भी ऐसा ही हुआ इसलिए आज मनोज दुबारा से सिद्धि की वजह से ही खड़ा है और वो ये बात हर जगह आज भी बताता है और जहां भी जाता है बस ये ही कहता है कि सिद्धि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हुं और मुझे पता है कि तुम जहां भी होगी, मुझसे उतना ही प्यार कर रही होगी।
अन्त में मैं बस ये ही कहूँगी कि कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से ज़्यादा बड़े होते हैं जो बिना किसी स्वार्थ के हमारा साथ देते हैं। इस कहानी में सिद्धि ने अपनी जान तक दे दी सिर्फ इसलिए क्योंकि वो मनोज को उसकी जिंदगी दुबारा देना चाहती थी, लेकिन बात ये नहीं समझ आती कि क्यों दुनिया में लोग पैसों से रिश्तों को तोलते हैं। इसलिए तो आज दुनिया से इंसानियत खतम होती जा रही है और इंसान निर्मोही हो गए हैं।
राधिका चतुर्वेदी