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वा के भाग बड़े सजनी

‘पता नहीं इस लड़के को क्या हो गया है, लोग सोलह-सत्रह साल की उम्र में पगलाते हैं और ये है कि तेईस साल का हो कर पगला रहा है। “यह उमर होती है समझदारी भरे भविष्य के निर्णय लेने की और ये ले रहा है मूर्खता पूर्ण निर्णय” सुनन्दा नाश्ते की टेबल पर नाश्ता लगाती हुई लगातार बड़बड़ा रही थी।

“क्या हो गया? सुज्ञात ने फिर किसी लड़की को रिजैक्ट कर दिया क्या या दीपावली पर घर आने को मना कर दिया?” ज्ञानचन्द नज़रों के सामने से अखबार हटाते हुए बोले।

“तुम तो अपने पेपर में मस्त रहो, दुनिया में क्या चल रहा है उस पर पूरी नज़र रखो, पर घर की समस्या की तरफ से आंखें मूंद लो” सुनन्दा गुस्से में बोली।

“सुज्ञात से कोई तकरार हुई क्या? वैसे तकरार तो करेगा ही, क्योंकि उसके हिस्से में आया ही त है ना, तुम्हारे नाम का सु मेरे नाम का ज्ञा लेने के बाद राशी के हिसाब से उसका नाम ‘त’ से निकला था, जब जन्म से ही ‘त’ मिला है तो तकरार तो करेगा ही” ज्ञानचन्द माहौल को हल्का करने के हिसाब से मुस्कुरा कर बोले।

“समय मज़ाक का नहीं है बल्की अत्यन्त गंभीरता से सोचने का है” सुनन्दा बोली।

मौके की नज़ाकत देख कर ज्ञानचन्द गंभीरता से बोले, “ऐसी क्या बात है सुनन्दा, सब कुछ ठीक तो है ना? बैंगलूर में सुज्ञात को कुछ हुआ तो नहीं? अभी दो महिने पहले ही तो मिल कर आये हैं हम उससे, यदि कुछ समस्या हो तो फिर चल चलते हैं, उसे नौकरी करते दो साल हो गये हैं किन्तु तुम अभी तक इतनी गंभीर नहीं दिखी, क्या बात है”?

“हां, तुम्हें याद है जब हम गए थे तब उसने अपनी एक दोस्त अनामिका से हमें मिलवाया था” सुनन्दा बोली।

“अच्छा वो नीले जींस टॉप वाली पतली दुबली लड़की, अच्छी सुन्दर और सलीके वाली थी, तुम्हें भी तो खूब पसंद आयी थी, क्यों, क्या हुआ उस लड़की को, ज्ञानचन्द ने उत्सुकता से पूछा।

अरे उसे कुछ नहीं हुआ है उसने तो सुज्ञात पर जादू कर दिया है, अभी सुबह जब फोन लगाया तो कहने लगा, “यदि आप आज्ञा दो तो मैं अनामिका से शादी करना चाहता हूँ” सुनन्दा बोली।

“वाह! इसमें इतना गंभीर होने की कौन सी बात है” सुज्ञात की खुशी में ही हमारी खुशी है, आखिर वह हमारी इकलौती संतान है” ज्ञानचन्द खुश होते हुए बोले, “वैसे मैं जात-पात को नहीं मानता”।

“बात पूरी सुन लिया करो, फिर प्रतिक्रिया दिया करो” सुनन्दा गुस्से से बोली। अनामिका की उम्र 26 साल की है और सुज्ञात अभी 23 साल का ही है, यह शादी तो बे मेल होगी ना, दुनिया वाले क्या कहेंगे, वैसे मैं भी जात-पात को नहीं मानती, परन्तु इस तरह के विवाह को मैं मान्यता नहीं दे सकती”।

“मैं सुज्ञात से बात कर समझाने की कोशिश करूंगा” ज्ञानचन्द नाश्ता खतम करते हुए बोले और नहाने चले गए।

“सुज्ञात से बात जरूर कर लेना, मेरी अनुमति और आशीर्वाद दोनों ही इस काम में उसके साथ नहीं है” सुनन्दा ने ज्ञानचन्द से दफ्तर जाते समय कहा।

“ठीक है, दो बजे उसका लंच होता है तब उससे बात कर लूंगा” ज्ञानचन्द जाते हुए बोले।

दो बजे ज्ञानचन्द ने सुज्ञात को फोन लगाया, सुज्ञात संभवतः उनके फ़ोन का ही इंतज़ार कर रहा था, उसे विश्वास था कि पिताजी सुलझे विचारों वाले व्यक्ति हैं तथा उसका समर्थन करेंगे।

“सुज्ञात, तुम्हारी मम्मी जो कह रही है क्या वो सही है”? ज्ञानचन्द ने गंभीरता से पूछा।

“जी, पापा” सुज्ञात बोला।

“बात कितनी आगे तक गई है” ज्ञानचन्द गंभीर स्वर में बोले।

“पापा, आप लोगों ने मुझे अच्छे संस्कार दिये हैं, अनामिका जी के परिवार वाले भी चारित्रिक मूल्यों को सर्वोच्च स्थान देते हैं, इसी कारण अभी तक हम दोनों भावनात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़े है, इससे अधिक कुछ नहीं” सुज्ञात धीमे स्वर में बोला।

ज्ञानचन्द सुज्ञात के जवाब से संतुष्ट हुए और बोले, “यदि तुम्हारी मम्मी इस सम्बन्ध के लिये तैयार नहीं हुई तो”?

“मैंने आज तक आप लोगों के किसी निर्णय का विरोध नहीं किया है, इस निर्णय का भी नहीं करूंगा, इतना जरूर कहना चाहूंगा कि मैं अनामिका जी की तरफ शारीरिक रूप से आकर्षित नहीं हुआ हूं बल्की उनकी त्वरित व परिपक्व निर्णय क्षमता ने मुझे प्रभावित किया है, मुझे विश्वास है आगामी जीवन में हम दोनों मिलकर अच्छे निर्णय ले सकेंगे” सुज्ञात गंभीरता से बोला।

“ठीक है सुज्ञात मुझे तुम पर गर्व है, ‘ऑल द बैस्ट’ कह कर ज्ञानचन्द ने फोन रख दिया”।

सुज्ञात से बात करके ज्ञानचन्द संतुष्ट थे, उन्हें किसी तरह की आपत्ति नहीं थी, लेकिन सुनन्दा को कैसे समझाया जाय। इसी बात पर गंभीरता से सोच रहे थे तभी कैबिन के दरवाज़े से आवाज आई ‘अरे ज्ञानचन्द, इतनी गंभीरता से तो तू ने आज तक परीक्षा का पेपर नहीं पढ़ा, ऐसे कौन से गंभीर विषय पर सोच रहा है’?

ज्ञानचन्द ने नज़र उठा कर देखा तो उनके बचपन का दोस्त प्रमोद गुप्ता खड़ा था जो इसी शहर में शासकीय चिकित्सालय में सीनियर डॉक्टर हैं।

“अरे, आओ-आओ डॉक्टर कैसे आना हुआ”? ज्ञानचन्द ने पूछा।

“भाई शादी की सज़ा को पच्चीस साल पुरे हो गये हैं, इसी उपलक्ष में परसों एक पार्टी रखी है, तुम्हे सपरिवार आना है” डॉक्टर गुप्ता बोले, पर तू इतना गंभीर क्यों है”? डॉक्टर गुप्ता ने ज्ञानचन्द के कंधे पर हाथ रख कर पूछा।

ज्ञानचन्द ने डॉक्टर गुप्ता को सारी बात बताई।

“बस इतनी सी बात, भाभीजी को अगर एक डॉक्टर समझाए तो अच्छी तरह से समझ में आ जायेगा, तू ऐसा कर शाम को भाभीजी को ले कर मेरे घर आ जा” डॉक्टर गुप्ता बोले।

“तुमसे वह समझेगी नहीं” ज्ञानचन्द बोले।

“मेरे एक मित्र हैं जो मनोचिकित्सक हैं हम उनसे मिलवा देंगे, संभव हुआ तो उन्हें आज ही ड़िनर पर ही बुलवा लेते हैं, उनका नाम डॉक्टर मिश्रा है” डॉक्टर गुप्ता बोले।

“हाँ, ठीक है, तुम उनसे बात कर मुझे सूचित करो तो मैं सुनन्दा को ले कर आता हूं” ज्ञानचन्द बोले।

“डॉक्टर मिश्रा से स्वीकृति मिलने के बाद ज्ञानचन्द ने सुनन्दा को डॉक्टर गुप्ता के यहां ड़िनर पर चलने की सूचना दे दी, ज्ञानचन्द जानबूझ कर ऑफिस से देर से आये ताकि सुज्ञात के विषय में बात ना हो सके।

डॉक्टर गुप्ता ने डॉक्टर मिश्रा को ज्ञानचन्द के बारे में अच्छी तरह से समझा दिया।

ज्ञानचन्द जब पहुंचे तो बाकी दोनों परिवार उनका इंतजार कर रहे थे, कॉलेज के किस्से कहानियों व चुटकुलों से होती हुई बात क्रिकेट पर आ कर रुक गई।

अचानक डॉक्टर मिश्रा बोले, “सुनन्दा जी आपको कौन सा क्रिकेटर सबसे ज्यादा पसंद है”?

“मुझे तो सचिन तेंडुलकर सबसे ज्यादा पसंद है, ना सिर्फ मैदान में बल्की सार्वजनिक जीवन में भी कितने सफल हैं वह” सुनन्दा बोली।

“वह तो ठीक है पर एक बात है जो उनकी छवि को धूमिल करती है” डॉक्टर मिश्रा बोले।

“वह क्या”? उत्सुकता से डॉक्टर मिश्रा की तरफ देखकर सुनन्दा बोली।

“उनकी पत्नी उनसे उम्र में काफी बड़ी है” डॉक्टर मिश्रा गंभीरता से बोले।

“अरे, इससे तो कोई फर्क नहीं पड़ता भाई साहब, यह तो दोनों की आपसी समझ पर निर्भर करता है” सुनन्दा तपाक से बोल पड़ी, किन्तु शीघ्र ही उसे अपनी गलती का अहसास हो गया और सुज्ञात की बात याद आ गई।

तीर निशाने पर लगता देख डॉक्टर मिश्रा अपने मूल विषय पर आ गये। “भाभी जी हम सब भी आपको यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं, शादी दो व्यक्तियों के बीच आपसी समझ, सामंजस्य और सूझबूझ का गठबंधन है, इसमें दोनों के बीच उम्र का कोई बंधन भी नहीं है, चाहे कोई भी छोटा हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता” डॉक्टर मिश्रा ने सुनन्दा को समझाया।

“किन्तु भाई साहब, हमारी मान्यताओं और परम्पराओं के अनुसार लड़की का छोटा होना बेहतर है” सुनन्दा बोली।

“ऐसी मान्यता इसलिए है क्योंकि यह समझा जाता है कि महिलाऐं अपनी शारीरिक आयु की तुलना में मानसिक आयु के विकास में जल्दी परिपक्वता हासिल कर लेती हैं, जबकि पुरुषों का शारीरिक और मानसिक विकास अपनी आयु के अनुसार ही होता है, दोनों में आगे चलकर बेहतर मानसिक संतुलन बना रहे, शायद यही सोच कर ऐसी धारणा बनी है, हालांकि ऐसी धारणाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है” डॉक्टर मिश्रा ने समझाया।

“वैसे किसी भी शादी को चलाने के लिये सबसे ज्यादा किस चीज की जरूरत होती है”? डॉक्टर मिश्रा ने एक बार फिर सुनन्दा से पूछा।

“एक दूसरे को समझने की, एक दूसरे को पर्याप्त स्थान देने की” सुनन्दा सहज ही बोल उठी।

“तो फिर इसमें उम्र कहां से बीच में आ गई, आप सुज्ञात से नाराज क्यों है”? डॉक्टर मिश्रा ने फिर पूछा।

अब सुनन्दा के पास कोई जवाब नहीं था।

“तो क्या मैं सुज्ञात और अनामिका के रिश्ते को पक्का समंझू”? डॉक्टर मिश्रा बोले।

आप....... आप अनामिका के पापा हैं? सुनन्दा ने अचकचा कर पूछा।

“अरे नहीं पगली, यह तो तुम्हारा ईलाज कर रहे थे” ज्ञानचन्द हंसते हुए बोले।

“यह डॉक्टर मिश्रा का अपना ही तरीका है ईलाज का” डॉक्टर गुप्ता बोले।

“भाभी जी आपकी जानकारी के लिए बतला दूँ, राधा जी भी आयु में श्री कृष्ण जी से बड़ी थी, इस प्रकार हमारे धर्म और पुराणों में भी इस तरह के संबंधों को मान्यता दी गई है, हमारे आस-पास भी ऐसे कईं उदाहरण मौजूद हैं जिनमें पत्नी आयु में पति से बड़ी है और वे लोग बेहद सफल वैवाहिक जीवन जी रहे हैं” डॉक्टर मिश्रा ने कहा।

“वैसे एक कहावत यह भी है भाभीजी, ‘जिसकी भागवान (पत्नी) बड़ी उसके भाग्य बड़े’ डॉक्टर गुप्ता ने कहा तो सब हंस पड़े।

“तो क्या निर्णय है आपका भाभीजी” डॉक्टर मिश्रा ने एक बार फिर पूछा।

अभी रुकिये, सुनन्दा बोली तथा पर्स में से मोबाइल निकाल कर सुज्ञात को लगाया और बोली, “सुज्ञात मुझे अनामिका की उंगली का नाप भेज दो, मैं अगली साप्ताहिक छुट्टी पर ही उसे अपने घर की बहू के रूप में बुक करना चाहती हूँ”।

“धन्यवाद डॉक्टर मिश्रा, समस्या को इतने सुन्दर ढंग से सुलझाने के लिये” ज्ञानचन्द हाथ मिलाते हुए बोले।

हरीश जायसवाल