Shayari

मेरी आवाज़

• व्यंजन हूं, नव व्याकरण दो मुझे,
शब्द हूं, सत्य का आचरण दो मुझे,
वेदना देवकी माँ की कान्हा में है,
गीत हूं कृष्ण का, अवतारना दो मुझे।
‘राजीव राज’

• सिसकियां अब कौन सुनता है हवा के शोर में,
जम चुका है गर्म पानी भी नयन के कोर में,
आज उसका लाड़ला भी सो जायेगा चैन से,
बाँध लायी है चने वो ओढ़नी के छोर में।
‘राजीव राज’

• कोशिश अब रंग लाने लगी है,
मुझको मंजिल नज़र आने लगी है।
जिनकी हसरत थी मुझको सतत,
उनको भी अब मेरी याद सताने लगी है।
इस तरह पा के थोड़ी सी खुशी,
मेरी उम्मीद जगमगाने लगी है,
उनकी नजरों में देखकर बेताबी,
मुझपे बेकरारी छाने लगी है।
क्या कहूं क्या आलम है इस दिल का,
मोहब्बत फिर से हिल्लोरे लगाने लगी है।
‘ब्रज किशोर’