मरूभूमि सी वीरान कभी, कभी उपवन सी सुंदर दिखती है। कल-कल बहता झरना कभी, कभी चट्टानो सी तपती है। कभी ममता की मूरत बन, ये प्रेम सुधा बरसाती है। इसके आँच
Read Moreतेज वर्षा ने अभी-अभी धरा को नहलाया है, धरती के हर अंग को स्वर्ण सा सजाया है। फूलों ने चंद बूँदे अपने आँचल में समेटी हैं, पत्तों ने बूँदों की चादर चारो
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