नैनों की भाषा

मरूभूमि सी वीरान कभी, कभी उपवन सी सुंदर दिखती है। कल-कल बहता झरना कभी, कभी चट्टानो सी तपती है। कभी ममता की मूरत बन, ये प्रेम सुधा बरसाती है। इसके आँच

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बारिश के बाद

तेज वर्षा ने अभी-अभी धरा को नहलाया है, धरती के हर अंग को स्वर्ण सा सजाया है। फूलों ने चंद बूँदे अपने आँचल में समेटी हैं, पत्तों ने बूँदों की चादर चारो

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मेरी आवाज़

• व्यंजन हूं, नव व्याकरण दो मुझे, शब्द हूं, सत्य का आचरण दो मुझे, वेदना देवकी माँ की कान्हा में है, गीत हूं कृष्ण का, अवतारना दो मुझे। 'राजीव राज' •

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