Shayari

बारिश के बाद

तेज वर्षा ने अभी-अभी धरा को नहलाया है,
धरती के हर अंग को स्वर्ण सा सजाया है।
फूलों ने चंद बूँदे अपने आँचल में समेटी हैं,
पत्तों ने बूँदों की चादर चारों ओर लपेटी है॥

दूर छत से पानी टॅप-टॅप नीचे गिरता है,
विहग का एक झुंड सैर को निकलता है।
नदी और नाले सर उठा हुँकार भरते हैं,
पेड़ की आड़ छोड़ पथिक आगे को बढ़ते हैं।।

नन्ही चिड़िया पँखों को झटक खुद को सुखाती है,
खुशी से झूमती कोयल मधुर गीत गाती है।
एक हवा का झोंका जब पेड़ से टकराता है,
लगता है मानो पानी फिर से बरस जाता है।।

चप्पल पहन के जो बाजार जाओगे,
कीचड़ के छींटे घूटनों तक पाओगे।
अरे, ज़रा संभाल के गड्ढो के पास जाना,
गाड़ी जो निकली तो, फिर से नहाओगे।।

घर के आँगन में केचुवा जाने कहाँ से आता है,
ज़रा सा छूओ तो झट से सिमट जाता है।
देखो तो वो घेंघा कैसे मस्ती में चलता है,
बच के रहना कभी कभी साँप भी निकलता है।।

रात होते ही दादुर ट्रर-ट्रर कर साथी को बुलाता है,
झींगुर भी किर-किर कर कोहराम मचाता है।
जुगनू टिमटिमा कर खूब रोशनी फैलाता है,
फिर काले बादलों का एक झुंड लौट के आता है।।

सन्नाटे को चीरता बादल फिर गरजता है,
देखते ही देखते फिर ज़ोर से बरसता है।
बरखा यूँ ही आती और चली जाती है,
हर बार जिंदगी के कुछ नये रंग दिखाती है।।