हमारे शरीर में पाँच प्रकार के प्राण हैं।
(1) प्राण वायु
(2) अपान वायु
(3) उदान वायु
(4) व्यान वायु
(5) समान वायु।
प्राण मुद्रा
कनिष्ठ अंगुली और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्रभाग से लगा कर बाकी की अंगुलियों को सीधा रखें, इस मुद्रा को प्राण मुद्रा कहते हैं। प्राण मुद्रा में जल तत्व, पृथ्वी तत्व और अग्नि तत्व के सभी गुणों का फायदा होता है। प्राण वायु का सम्बंध वायु तत्व और ह्रदय चक्र से है। ह्रदय से लेकर नासिका तक जो प्राण वायु होते हैं उसे प्राण वायु कहते हैं।
अनामिका अंगुली सूर्य ग्रह की प्रतीक है जो सभी विटामिनों और प्राण शक्ति का केन्द्र है। छोटी अंगुली बुद्ध ग्रह अर्थात नये उत्साह का प्रतीक है। जिस कारण सूर्य और बुद्ध मिलकर प्राणशक्ति बढ़ाते हैं। प्राण मुद्रा चलते-फिरते, उठते-बैठते जब चाहे लगा सकते हैं। प्राण मुद्रा 45 मिनट से 60 मिनट तक लगाई जा सकती है।
- प्राण मुद्रा लगाने से विटामिनों की कमी दूर होती है।
- प्राण मुद्रा लगाने से तन-मन में स्फुर्ति और उत्साह उत्पन्न होता है।
- प्राण मुद्रा अस्थमा और मधुमेह में बहुत लाभकारी है।
- प्राण मुद्रा से अधरंग की कमजोरी दूर होती है।
- प्राण मुद्रा कैंसर के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है।
- प्राण वायु नाक से सांस लेना, छोड़ना, उसकी गति, पानी को रक्त और पसीने में बदलना प्राण वायु का मुख्य कार्य है। भोजन को पाचन योग्य बनाना भी प्राण वायु का कार्य है।
- प्राण मुद्रा करने से प्राणों का संचार होता है जिससे शरीर में थकावट दूर होती है और निद्रा में लाभ होता है।
- प्राणों का संचार होने से शरीर की दुर्बलता दूर होती है और जीवन का विकास होता है।
- प्राण मुद्रा आँखों की सभी बिमारियों में सहायक है।
अपान मुद्रा
मध्यमा अंगुली और अनामिका अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं और बाकी की अंगुलियां सीधी रखें। इस मुद्रा को अपान मुद्रा कहते हैं। अपान मुद्रा में पृथ्वी तत्व, आकाश तत्व और अग्नि तत्व के सभी गुणों का फायदा होता है। अपान वायु का सम्बंध पृथ्वी तत्व और मूलाधार चक्र से है।
अपान वायु नाभि से ले कर पैरों तक चलती है। नाभि से नीचे सभी अंग-कमर, गर्भाश्य, प्रजनन अंग, जांघाएं, घुटने, मल मूत्र और पैर सभी अंगों का कार्य अपान वायु करती है।
आचार्य केशव देव जी का कहना है कि अपान मुद्रा करने से सारा शरीर मल रहित हो जाता है। अपान मुद्रा को कम से कम 45 मिनट करना चाहिए।
- अपान मुद्रा से पेट के सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं जिससे शरीर शुद्ध और निर्मल होता है।
- अपान मुद्रा लगाने से नाभि अपने स्थान पर रहती है।
- अपान मुद्रा शरीर की गर्मी की अधिकता को बाहर फैंकती है जिससे पैरो की जलन भी दूर होती है।
- गर्भावस्था में अपान मुद्रा को नियमित रूप से लगाने से प्रसव आसान होता है। अपान मुद्रा से मासिक धर्म सम्बंधी समस्याएं भी दूर होती हैं।
- मधुमेह में अपान मुद्रा और प्राण मुद्रा दोनों नियमित रूप से करने से लाभ होता है।
अपान मुद्रा से मधुमेह, उच्च रक्त चाप, मसूड़ों का दर्द, दांत का दर्द, गुर्दे के सभी रोग, पेशाब की जलन, कब्ज, पेट दर्द, कोलाईटस, बवासीर, यकृत के रोग, गुर्दे की पथरी सभी प्रकार के रोग ठीक होते हैं।