Adhyatam

जहां चाह वहां राह

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मन के दो भाग हैं- सचेतन मन और अवचेतन मन। सचेतन – मन में विचार चलते हैं। अवचेतन – मन का भाव है, संकल्पना का है। अवचेतन – मन का रिमोट कंट्रोल भी है।

अपने सचेतन मन को कंट्रोल कैसे करें?

आप अपने अनुसार मन को नचा सकते हैं। इसलिये इस विज्ञान का नाम है हिप्नोथरैपी, सम्मोहन चिकित्सा, जहां अवचेतन मन से परिचित करवाया जाता है, अवचेतन की गहराईयों में ले जाया जाता है। जहां जाकर अपने मन को कंट्रोल कर सकते हैं।

यह जो अवचेतन है यह तुम्हारी अपनी ही गहराई है। तुम अपने भीतर बहुत गहराई में जा सकते हो। वहां जाकर जैसा भाव करते हो, बस वैसे ही तुम बन जाते हो। अगर तुम परेशान हो तो इसलिए कि तुमने परेशानी को निमंत्रित किया है। अगर तुम दुखी हो तो तुमने जाने-अंजाने दुख को निमंत्रित किया है। कैसे? तुम मोटे हो। तुम पतला होना चाहते हो। अब तुम क्या कहते हो- मेरा मोटापा घट जाये। बस यही तो कहोगे। तुम्हारा अवचेतन मन घट जाये ये नहीं सुनता। मोटापा सुनता है और मोटापा बढा देता है।

तुम्हारा अवचेतन मन कैसे सुनेगा? तुम कहते हो मेरा शराब पीना छूट जाये। तुम्हारा अवचेतन मन छूट जाए नहीं सुनता, शराब सुनता है। तुम और दारु पीने लगते हो। तुम कहते हो मैं बस आज से ड्रग्स नहीं लूंगा, सिगरेट नही पीयूंगा। अवचेतन मन ‘नहीं’ शब्द नहीं सुनता। वह सुनता है सिगरेट पियूंगा। और फिर जितना तुम छोडना चाहते हो, उतना और पीना शुरु कर देते हो।

तुम क्या कहते हो यह बिजनैस मैं कर रहा हुं और इस बिजनैस में कहीं घाटा ना लग जाए। अवचेतन मन सुनता है घाटा लग जाए॥ और फिर बंटाधार हो जाता है तुम्हारा। फिर तुम कहते हो कि घाटा कैसे लग गया? तुम खुद ही भूल गये कि तुमने ही अपने अवचेतन मन को कहा था कि घाटा लग जाए।

जो भी अपने अवचेतन में डालते हो, तुम्हारा अवचेतन बस वही सुनता है और वैसा कर देता है।

दि सीक्रेट

इसी तरह तुम कुछ पॉजीटिविटी अवचेतन में डालो, तो विकास के मार्ग पर चल देते हो। उदहारण के तौर पर—

एक अमरीकी महिला है, उम्र मुश्किल से 35 से 40 वर्ष होगी। उसका नाम डा0 रोंडा बायरन है। उसने एक किताब लिखी है ‘दि सीक्रेट’। इस पर उसने एक फिल्म भी बनायी है। उसने एक दिन सोचा कि मैं एक ऐसी फिल्म बनाउं जिसे देखने के लिए सारी दुनियाँ पागल हो जाए। और मैं उसमें अरबों डॉलर कमाउं। उसने अपनी माँ को बताया, कि माँ मैं एक ऐसी फिल्म बनाने जा रही हुं जिसे लाखों लोग देखेंगे। और जिसको देखकर लाखों लोगों की जिंदगी सुधर जायेगी। और मैं अरबों डॉलर उससे कमाउंगी।

उसकी माँ ने कहा कि बेटा, ख्याली पुलाव तो बडा अच्छा बना लेते हो। उसने कहा कि माँ, यह काम मैं तुम्हे करके दिखाउंगी। उसने अपने दो चार साथियों से इस बात का जिक्र किया। साथियों ने कहा कि तुम्हे इस लाईन का कुछ अनुभव है? कैसे फिल्म बनती है? बोली- ‘वो तो नही है। हो जायेगा। जब एक बार चलोगे तो हो जायेगा’। तो लोगों ने कहा कि कैसे हो जायेगा। उसने कहा कि, ‘चलो एक प्रयोग करते हैं, होगा तो ठीक, नहीं होगा तो कोई बात नहीं’। दोस्त लोग राजी हो गये। उसके साथ-साथ पांच की संख्या दस हो गयी, दस की संख्या बीस हो गयी। और इन बीस लोगों ने सोचा कि एक ऐसी फिल्म बनायेंगे कि जीवन का रहस्य क्या है। यह मन कहां से कंट्रोल होता है। कहां से प्रकृति सुनती है। कहां से परमात्मा सुनता है। बस हम लोग अवचेतन में जाकर भाव करेंगे और एक सपना देखेंगे कि हम अरबपति हो गये। वे बीसों मित्र पांच बार दो-दो मिनट के लिये बैठते थे। यह केवल बीस लोगों की बात नहीं है। उसके बाद लाखों लोगों ने यह प्रयोग किया और लाखों लोगों की जिंदगी उस दिशा में बढ गयी। जो जैसा होना चाह्ते थे, वो हो गए। जो ध्यान में उत्सुक थे वो ध्यान में चले गये। जो जिसमें उत्सुक था वो उसी में सफलता की सीढियां चढता चला गया। क्या करना था? पांच बार वो लोग बैठते थे और संकल्पना करते थे कि हमारी फिल्म बन गयी। खूब चल रही है अमेरीका में। अरबों डॉलर उससे आ रहे हैं और उन लोगों ने वह फिल्म बनायी- दि सीक्रेट। ठीक वैसा ही हुआ जैसा उन्होने संकल्पना किया था। लाखों लोग देखकर उसे लाभांन्वित हुए। आज भी ‘दि सीक्रेट’ फिल्म को डी.वी.डी देखकर लाखों लोग उससे लाभांन्वित हो रहे हैं। क्या हुआ? कैसे हो गया? उसने जो किताब लिखी है, उसे जरूर पढना। ‘दि सीक्रेट’ किताब का नाम है। ज्यादा मोटी नहीं। दो सौ पृष्ठों की किताब है। सब जगह मिलती है। हुआ क्या? जैसा उन्होने अपने अवचेतन को प्रोग्रामिंग किया, वैसा होने लगा।

जैसी मति वैसी गति

आज से दो हजार साल पहले महार्षि पातांजलि एक अदभुत बात कह गये थे- ‘जैसा तुम भाव करते हो, प्रकृति वैसा ही आयोजन करती है, और उसी दिशा में तुम्हारा पुरुषार्थ होता चला जाता है’। ‘जैसी मति वैसी गति’ अगर आज तुम दुखी हो, अगर आज तुम असफल हो, तो इसका बहुत बडा कारण है कि तुम अपने भीतर कहीं ना कहीं असफलता का भाव रखते हो। अगर आज तुम सफल हो तो इसका बहुत कारण है कि तुम अपनी सफलता के बारे में आश्वस्त हो। अवचेतन में जाने की कला क्या होती है? ओशोधारा के सम्मोहन प्रज्ञा कार्यक्रम में बताया जाता है कि अपने अवचेतन में जाकर तुम कैसे प्रोग्रामिंग करो, कैसे रिप्रोग्रामिंग करो। और जिस दिशा में, ध्यान की दिशा में या धन की दिशा में बढना चाहते हो, बढ जाओगे। यहां संकल्पना की बात हो रही है प्रार्थना की बात नही। प्रार्थना में भविष्य है, कि जैसे- हे गोविंद, मुझे परीक्षा में पास कर दो।

इच्छा को उपलब्धि मानकर जीना शुरु करो। तुम क्या करना चाहते हो? उसको तुम उपलब्धि मान कर जियो। होना चाहने की बात नहीं है। कुछ मांगने की बात नहीं है। देखना यह है कि काम हो गया है। तुम अच्छा संगीतकार होना चाहते हो। तुम संकल्पना करो कि मैं अच्छा संगीतकार हो गया हुं। पूरे देश में सब जगह मेरे संगीत की धूम मची हुई है। हो जाओगे। यह संकल्पना है, जो मन को कंट्रोल करती है।

कल्प वृक्ष के नीचे हमेशा तुम खडे हो कहीं ऐसा तो नहीं हो जायेगा। वो एक कहानी है- वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति गया और बोला कि थोडा भोजन मिल जाता और भोजन की थाली आ गयी। आहा, थोडी खीर भी मिल जाती, तो खीर की थाली आ गयी। फिर कहा, थोडा बिस्तर मिल जाता, बिस्तर लग गया। उसने कहा कि क्या बढिया जगह पहुंच गया हुं जरा परिया डांस करती तो स्वर्ग का मजा आ जाता। परियां उतर गयी डांस करने के लिए। फिर घबराया और सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि भूत-प्रेत हैं। बस भूत-प्रेत आ गये। बस ऐसी ही जिंदगी है। तुम हर पल कल्प वृक्ष के नीचे खडे हो। जैसा चाहो, वैसा तुम बन सकते हो। यह है तुम्हारे अवचेतन मन की संकल्पना, मन की संकल्पना की शक्ति।

जहां चाह, वहां राह।

सदगुरू ओशो सिद्धार्थ जी