Hast Mudra

आकाश मुद्रा/ शुन्य मुद्रा

आकाश मुद्रा

आकाश तत्व की प्रतीक मध्यम अंगुली (Middle Finger) का अग्रभाग (Tip) अंगुठे (Thumb) के अग्र भाग से मिलाएं और बाकी की अंगुलियां साधी रखें। इस मुद्रा को आकाश मुद्रा कहते हैं। आकाश मुद्रा एक घंटे तक लगाई जा सकती है।

जैसा कि पहले बताया गया है कि अंगुठा अग्नि तत्व का प्रतीक है और मध्यम अंगुली आकाश तत्व की प्रतीक है। इस प्रकार आकाश तत्व और अग्नि तत्व मिलते हैं। माला के मनकों को अंगुठे तथा मध्यम अंगुली से ही फेरा जाता है जिससे ऐश्वर्य तथा भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। ध्यान लगाने की अवस्था में यदि आकाश मुद्रा लगाई जाय तो दिव्य शक्तियों का आभास होता है और आँतरिक शक्तियों का विकास होता है।

  • आकाश मुद्रा लगाने से कानों के रोग दूर होते हैं तथा कानों की सुनने की क्षमता बढ़ती है।
  • आकाश मुद्रा से जबड़े की अकड़न (Jaw Lock) दूर होती है।
  • आकाश मुद्रा से खालीपन तथा मूर्खता दूर होती है।
  • आकाश मुद्रा से अस्थियों की कमजोरी दूर हो हड्डियां मजबूत होती हैं।
  • आकाश मुद्रा से ह्रदय सम्बन्धी रोग दूर होते हैं तथा उच्च रक्तचाप (HBP) ठीक होता है।
  • यदि दाएं हाथ (Right Hand) से पृथ्वी मुद्रा तथा बाएं हाथ (Left Hand) से आकाश मुद्रा लगाई जाय तो जोड़ों का दर्द दूर होता है।

शुन्य मुद्रा

मध्यम अंगुली को अंगुठे की जड़ में लगा कर अंगुठे की सहायता से हल्का सा दबा लें और बाकी अंगुलियां सीधी रखें तो शुन्य मुद्रा बनती है। आकाश मुद्रा की तरह शुन्य मुद्रा से भी कानों का बहरापन तथा कान से सम्बंधित सारी बिमारियां दूर हो जाती हैं। शुन्य मुद्रा 45 मिनट से 60 मिनट तक लगायी जा सकती है।

  • शुन्य मुद्रा से गले के रोग दूर हो जाते हैं, थायरायड़ के रोग समाप्त होते हैं तथा आवाज़ साफ होती है।
  • शुन्य मुद्रा से रक्त संचार बढ़ता है जिससे शरीर का कोई भी भाग सुन्न हो जाय तो रक्त संचार ठीक होकर सुन्नपन दूर होता है।
  • शुन्य मुद्रा से किसी भी प्रकार का रोग जैसे कानों का दर्द, कानों का बहना, कानों का बजना, कानों का बहरापन आदि सभी रोग दूर हो जाते हैं। इन में से किसी भी तरह की परेशानी हो तो आकाश मुद्रा या शुन्य मुद्रा लगाई जा सकती है।

इस अवस्था में मुद्रा एक घंटे तक या कुछ लम्बे समय तक के लिए प्रतिदिन लगानी चाहिए।