Shayari

नैनों की भाषा

मरूभूमि सी वीरान कभी,
कभी उपवन सी सुंदर दिखती है।
कल-कल बहता झरना कभी,
कभी चट्टानो सी तपती है।

कभी ममता की मूरत बन,
ये प्रेम सुधा बरसाती है।
इसके आँचल की छाव तले,
धरती स्वर्ग बन जाती है।

मूक भी खाशी का रूप धर,
हर बात बयाँ कर जाती है।
बिन कहे एक भी शब्द,
मन की मनसा दर्शाती है।

जब रुद्रा रूप धारण करती,
ये अग्नि कुंड बन जाती है।
दुश्मन पर तीखे वार कर,
ये महाकाल कहलाती है।

कभी प्रेम रस की वाणी बन,
मधुर मिलन करवाती है।
इज़हारे मोहब्बत कर देती जब
जुबां शिथिल पड़ जाती है।
कभी लज्जा की चादर ओढ़े,
ये मंद मंद मुस्काती है।
कुंदन की काया धरी रहे,
जब शर्म से ये झुक जाती है।

यहाँ भाषाओं की भीड़ है,
हर मोड़ पे बदल जाती है।
हम प्रेम सूत्र में बँधे है,
क्योकि नैनो की भाषा होती है।
‘डॉक्टर राजीव श्रीवास्तव’