Adhyatam

नींद की कमी

दुनियाँ में कठिन से कठिन अगर कोई सजा हो सकती है, तो वह मौत की नहीं है। मौत की सजा तो सरल है, क्षण भर में हो जाती है। सबसे बडी सजाएं जिन लोगों ने इजाद की थी, वे सजाएं थी नींद न आने देने की। किसी व्यक्ति को नींद न आने देना सबसे बडी सजा है।तो आज भी चीन में या रूस में या हिटलर के जर्मनी में निरंतर कैदियों को जगाए रखने का उपाय किया जाता है। पंद्रह दिन किसी कैदी को न सोने दिया जाए, उसकी जो पीडादायक स्थिति हो जाती है, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। वह करीब-करीब विक्षिप्त हो जाता है। और वह वे सब बातें बोलने लगता है जिन्हे उसने रोकने की कोशिश की थी, जिन्हे कि उनके दुश्मन जानना चाहते हैं। वह अपने-आप बोलने लगता है, अर्थात उसके मुंह से सब निकलने लगता है। उसे होश ही नहीं रहता कि अब क्या हो रहा है।चीन में तो वे पूरे व्यवस्थित उपाय बनाएं हुए हैं कि छह-छह महीने तक कैदियों को न सोने देंगे। उसकी स्थिति बिल्कुल विक्षिप्त हो जायेगी। वे भूल ही जायेंगे कि वे कौन हैं, उसका नाम क्या है, उसका धर्म क्या है, उसकी जाति क्या है, वे किस गांव के रहने वाले हैं, किस देश के हैं, वे सब भूल जायेंगे। क्योंकि निंद्रा न आने से अस्तव्यस्त, अराजक उनका चित हो जायेगा। फिर उनको जो भी सिखाना है वह सिखाया जायेगा।

नींद न आने दी जाए, तो व्यक्ति अपने जीवन-स्रोत से असम्बंधित हो जाता है। दुनिया में नास्तिकता बढती जायेगी जिस मात्रा में नींद कम होती जायेगी। जिन मुल्कों में नींद जितनी कम हो जायेगी, उन मुल्कों में नास्तिकता उतनी ही ज्यादा हो जायेगी। जिन मुल्कों में नींद जितनी गहरी होगी, आस्तिकता उतनी ही ज्यादा होगी। लेकिन यह आस्तिकता-नास्तिकता बिल्कुल अंजानी है, परिचित नहीं है, बेहोशी की है। क्योंकि जो आदमी गहरा सोता है, वह दिनभर बैचेन और परेशान जीता है। बैचैन और परेशान मन ईश्वर को स्वीकार करने की किस हालत में व्यवस्था बनाएं? पीडित, अत्रप्त, क्रोध से भरा मन इन्कार करता है, अस्वीकार करता है।

पशिचम में जो निरंतर बढती हुई नास्तिकता है, उसके बुनियाद में विज्ञान नहीं है, उसके बुनियाद में नींद का अस्तव्यस्त हो जाना है। आज न्यूयार्क में तीस प्रतिशत लोग हैं कम से कम, जो बिना दवा लिए नहीं सो सकते हैं। और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि सौ साल अगर ऐसी स्थिति रही, तो न्यूयार्क जैसे नगर में कोई भी व्यक्ति बिना दवा लिए नहीं सो सकेगा।

नींद एकदम खो गई है। और यह हो सकता है कि जो आदमी, जिसकी नींद खो जाती है, वह यह विश्वास न कर सके। अगर वह आपसे पूछे कि आप कैसे सोते हैं? आपके सोने की तरकीब क्या है? और आप कहें कि कोई तरकीब नहीं है। मैं तो बिस्तर पर सिर रखता हूँ और सो जाता हूँ। तरकीब है ही नहीं। सोने की कोई तरकीब है आप के पास! बस सिर रखते हैं और सो जाते हैं। तो वह कहे, ‘क्यों झूठ बोलते हैं! असंभव है यह बात। जरूर कोई तरकीब होगी, जो मुझे पता नहीं। क्योंकि सिर तो मैं भी रखता हूँ तकिए पर, लेकिन सो नही पाता हूँ। तो झूठ कहते हैं आप’ ।

और एक वक्त आ सकता है आज से हजार, दो हजार वर्ष बाद – भगवान ना करे ऐसा वक्त आए, लेकिन लगता है ऐसा वक्त आ जायेगा – जब कि स्वभाविक नींद सभी की खो गई होगी। और तब लोग यह विश्वास न कर सकेंगे कि आज से ह्ज़ार, दो हज़ार साल पहले लोग बस रात को बिस्तर पर सिर रखते थे और सो जाते थे”। और वे कहेंगे कि ये कपोलकल्पित पुराण की बातें मालुम पडती हैं। ये बातें सच नहीं है। यह हो ही नही सकता। क्योंकि जो हमें नहीं होता है, वह किसी को कैसे हो सकता है? यही कठिनाई है।

आपको यह इसलिए कहा जा रहा है कि आज से तीन या चार हजार वर्ष पहले लोग इसी तरह आँख बंद करते थे और ध्यान में चले जाते थे, जितनी सरलता से आज आप सो जाते हैं। और दो हजार वर्ष बाद या आज भी न्यूयार्क में सोना मुश्किल है। मुंबई में भी मुश्किल होता चला जा रहा है। आज नहीं कल द्वारका में भी मुश्किल होगा। यह वक्त के फासले की बात है, और कोई कठिनाई नहीं है इसमें। तो आज हम विश्वास नहीं कर सकते हैं कि एक जमाना ऐसा भी रहा होगा कि आदमी ने सोचा कि ध्यान में जाऊं, बैठा, आंख बंद की और ध्यान में चला गया। हम कहेंगे, यह कैसे हो सकता है! क्योंकि हम भी तो आंख बंद करके बैठते हैं, कहीं नहीं जाते। विचार तो चक्कर ही लगाए रहते हैं। हम तो जा ही नहीं पाते।

ध्यान भी प्रकृति के निकट आदमी के लिए इतना ही सरल था, जितनी नींद। प्रकृति के निकट जो आदमी है, उसको सरल है। पहले ध्यान गया, अब नींद जायेगी। क्योंकि पहले वे चीजे जाती हैं जो चेतन हैं, फिर वे चीजे जाती हैं जो अचेतन हैं। और ध्यान चला गया तो दुनियां करीब-करीब अधार्मिक हो गई है और नींद चली जायेगी तो दुनियां पूरी तरह अधार्मिक हो जायेगी। नींद से रिक्त पृथ्वी पर धर्म की कोई संभावना नहीं रह जाने वाली है।

लेकिन आप कभी सोच ही नहीं सकते कि नींद से इतना सम्बंध हो सकता है!

नींद से इतने गहरे सम्बंध हैं, जिनका हिसाब लगाना मुश्किल है। व्यक्ति कैसा सोता है, इस पर पूरा निर्भर है कि वह कैसा जीएगा, सारे जीवन के सम्बंध उलझ जायेंगे, सब विषाक्त हो जायेगा, सब क्रोध से भर जायेगा।

और अगर व्यक्ति गहरा सोता है, तो उसके जीवन में एक ताजगी, एक शांति, एक आनंद का भाव बहता रहेगा। उसके सम्बंध में, उसके प्रेम में, उसकी सारी चीज़ों में एक शांति बनी रहेगी। लेकिन अगर नींद खो गई, तो उसका परिवार, उसकी पत्नी, उसका पति, उसका बेटा, उसकी माँ, उसका पिता, उसका शिक्षक, विद्धार्थी, सब अस्तव्यस्त हो जायेगें। क्योंकि नींद हमे अचेतन में वहां ले जाती है, जहां हम परमात्मा के भीतर डूब जाते हैं। ज्यादा देर को नहीं डूबते। स्वस्थ से स्वस्थ आदमी भी सिर्फ गहरे में दस मिनट के लिए पहुंचता है, पूरी रात की आठ घंटे की नींद में। दस मिनट के लिए ऐसा क्षण आता है, जब आप पूरी तरह डूब जाते हैं, जब सपना भी नहीं होता।