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नारी और समाज

नारी को देवी माँ कहकर हमेशा पुष्प ही अर्पित किए हैं। नारी तो जन्मदात्री है। नारी के बिना तो समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती, नारी ही तो सृष्टि का प्रमुख उदगम स्त्रोत है। जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। पुरातन काल से ही नारी को गृह लक्ष्मी कहा जाता है।

बिना स्त्री के पुरुष अधूरा है। ईंटों से बना मकान, घर नहीं होता। एक स्त्री ही मकान को घर बनाती है। स्त्री और पुरुष गाडी के दो पहियों की तरह हैं जिनसे संसार चलता है। इतना सब कुछ मानने पर भी पुरुष को शक्तिशाली और स्त्री को अबला नारी कहा जाता है। इसी वजह से स्त्री को अबला कहकर पीछे छोड दिया जाता है। जो महत्ता स्त्री को समाज में मिलनी चाहिए, वह नही मिलती।

कितनी खुश, कितनी पीडित औरत का इतिहास जानने पर हम पाते हैं कि औरत को कितना पीडित किया गया है। औरत माँ, बहन, बेटी चाहे किसी भी रूप में हो, उसे और उसकी भावनाओं को समझने की चेष्टा कम ही की गयी है। कभी सीता के रूप में तो कभी द्रोपदी के रूप में, नारी पुरुषों के हाथों प्रताड़ित होती आयी है।

भारतीय नारी अपने गुणो के कारण सर्वश्रेष्ठ नारी मानी गई है। लज्जा, त्याग, ममता, सहन शीलता और मर्यादा भारतीय नारी के आभुषण हैं। देखा जाये तो औरत का जीवन अपने लिए नहीं होता। जब वह कुवांरी होती है तो अपने माँ-पिता और भाई-बहनों के लिए भगवान से लम्बी उम्र की कामना करती है। शादी के बाद सास-ससुर और पति एवं बच्चों के लिए उपवास रखती है। अपने लिए मांगने के लिए उसे कभी फुर्सत ही नहीं होती।

एक तरफ हिन्दु समाज में नारी को देवी का रूप माना है। उसे बाल्यावस्था में कन्या के रूप में पूजा जाता है और दूसरी तरफ वही समाज जहाँ कन्या को पैदा होने से पहले ही गर्भ में ही मार दिया जाता है।

किसी परिवार में यदि तीन या चार लडकियां हैं तो लडका पाने की लालसा में उपाय किए जाते हैं फिर भले ही लडकियों की संख्या आठ से दस ही क्यों न हो जाए। एक लडके को देख बाकी सभी लडकियों को अनदेखा किया जाता है। क्या कभी किसी ने इस कदर लडकी का इंतजार किया है?

औरत जुल्म सहने की आदी तो बचपन से ही हो जाती है। अपने ही परिवार में लडकी को जीरो और लडके को हीरो समझा जाता है। फिर चाहे लडका नालायक ही क्यों न हो। लडकी स्वेच्छा से बाहर नहीं आ-जा सकती। उस पर पाबन्दियाँ लगा दी जाती हैं।

औरत अपना सब कुछ अपने परिवार पर न्योच्छावर कर देती है। बदले में कुछ चाहती है तो केवल प्यार के दो शब्द।

यदि कोई पुरष अपनी पत्नी का सहयोग और प्यार के दो बोल बोल देता है तो समाज उसे “बीवी का गुलाम” की उपाधि देकर व्यंग कसता है। परंतु औरत को कोई कुछ नहीं कहता, चाहे वह पति के लिए जान भी गवां दे और ये उसका फर्ज मान लिया जाता है।

अगर ध्यान दें तो कुछ अदभुत करने वाली नारी तो हर काल में रही है। परन्तु नारी की स्थिति में कितना परिवर्तन आया? वैसे तो समाज में नारी के प्रति काफी परिवर्तन आए हैं। इंदिरा गाँधी भारत की पहली प्रधान मंत्री और किरन बेदी भारत की पहली महिला आई पी एस (IPS Officer) बनी लेकिन साधारण महिलाओं ने परिवर्तन को किस तरह देखा। जरुरत है आम लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने की, उनकी सोच में परिवर्तन लाने की, समाज में सुरक्षा लाने की।

सबसे पहले तो हर नारी को शिक्षा देना अति आवश्यक। है यदि माता शिक्षित होगी तो उसकी संतान भी शिक्षित होगी अर्थात पूरा घर शिक्षित होगा। स्त्री अपने पति के कार्यों में हाथ बंटा सकेगी और स्वयं भी आत्मनिर्भर बनेगी।

नारी को मान-सम्मान, उसक हक भी उसे मिलना चाहिए। हर नारी को अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता, बाहर आने-जाने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

इस सोच को आगे बढ़ाने की जरुरत है ताकि समय आने पर वे कुछ कर सकें अपने परिवार को सम्भाल सकें। 

परंतु अब भारत में नारी की स्थिति में काफी बदलाव हुआ है। आज की नारी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक दिखाई दे रही है। आज नारी का कार्यक्षेत्र भी घर की चार दिवारी के बाहर जा पहुंचा है और आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र हो रही हैं। अब अनकी अपनी पहचान है और काफी क्षेत्रों में पुरुषों को पीछे छोड कर परिवार की कर्ता बन रही हैं।   

यदि पुरुष इन प्रश्नो पर ध्यान दें और हल ढ़ूढ़ने की कोशिश करें तो शायद उनका रवैया औरतों के प्रति प्यार का होगा।

  • क्या सारी पाबन्दियां नारी के लिए ही बनाई गई हैं?
  • क्या नारी के बिना पुरुषों का जीवन अधुरा नही है?
  • क्या पुरुष अपना जीवन अकेला व्यतीत कर सकता है?
  • क्या नारी का अपमान पुरुष का अपमान नही है?

जिस दिन इस पुरुष प्रधान समाज को ये प्रश्न सकारात्मक रूप से समझ आ जायेंगे शायद उसी दिन नारी का सही मायने में उद्धार होगा।