Hast Mudra

सुरभि मुद्रा

दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को बाएं हाथ की मध्यम अंगुली से लगाएं और बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली को दाएं हाथ की मध्यम अंगुली से लगाएं। फिर दाएं हाथ की अनामिका को बाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली से लगाएं और बाएं हाथ की अनामिका को दाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली से लगाएं। दोनों हाथों के अंगुठे अलग ही रहेंगे। हथेलियों की दिशा नीचे की ओर रखें।

इस तरह एक हाथ के वायु तत्व दूसरे हाथ के आकाश तत्व का मिलान होता है तथा एक हाथ के पृथ्वी तत्व का दूसरे हाथ के जल तत्व से मिलान होने पर इन सभी तत्वों के लाभ प्राप्त होते हैं। अग्नि शांत रहती है। इस प्रकार ये सुरभि मुद्रा बनती है।

सुरभि का मतलब होता है-कामधेनु गाय। इसलिए इसे धेनु मुद्रा भी कहा जाता है। गाय सात्विकता का प्रतीक है जिससे मन शुद्ध होता है, सात्विक होता है।

  • इस मुद्रा से कुंड़लिनी जागृत होती है।
  • सुरभि मुद्रा लगाने से पेट के सभी रोग ठीक होते हैं।
  • सुरभि मुद्रा लगाने से मूत्र रोग दूर होते हैं।
  • सुरभि मुद्रा लगाने से शरीर स्वस्थ और सबल होता है।
  • सुरभि मुद्रा से मन सात्विक और शुद्ध होता है।
  • जल और पृथ्वी तत्वों के मिलान से ब्रह्मांड-उर्वरा-शक्ति उत्पन्न होती है और आकाश तथा वायु तत्वों के मिलने से ब्रह्मांड का चक्र स्थिर रहता है। नाभि चक्र की स्थिरता से पेट के रोग नहीं होते। इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है।