ज्ञान मुद्रा
ज्ञान मुद्रा का विवरण हमनें पहले भी किया है परन्तु एक बार फिर ज्ञान मुद्रा के बारे में बताया जा रहा है।
ज्ञान मुद्रा ह्रदय चक्र से सम्बंधित है। ये मुद्रा शिरोमणि मुद्रा है। मूर्तियों और चित्रों में सभी ऋषि मुनि, भगवान महावीर, भगवान शिव, भगवान बुद्ध, देवी सरस्वती, गुरु नानक देव जी, जीज़स सभी को ज्ञान मुद्रा में दिखाया गया है। यहां तक कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश भी ज्ञान मुद्रा में दिया था।
विधि : ज्ञान मुद्रा अंगुठे के शीर्ष भाग को तर्जनी अंगुली के शीर्ष भाग को आपस में मिला कर और बाकी तीन अंगुलियां सीधी रखकर बनती है। पदमासन या सुख आसन में बैठ कर ज्ञान मुद्रा लगाकर हाथों के पिछले भाग को घुटनों पर रखें। ( हथेलियों को आकाश की ओर) इस मुद्रा को 15 मिनट से 45 मिनट तक करनी चाहिए। परंतु जितनी अधिक ये मुद्रा लगायेंगे उतना ही अधिक फायदेमन्द होगा। इस मुद्रा को चलते-फिरते कभी भी, किसी भी समय किया जा सकता है।
इस मुद्रा को वैराग्य मुद्रा, अभय मुद्रा और चिन मुद्रा भी कहते हैं। इस मुद्रा में यदि दोनों हाथों को उठा कर सिर के आस-पास ले जाया जाए तो इस मुद्रा को अभय मुद्रा कहते हैं। इससे निर्भयता आती है। यदि इस मुद्रा में हथेलियों की दिशा को नीचे की ओर कर लिया जाय तो इसे चिन मुद्रा कहते हैं। दायां हाथ छाती के पास और बायां हाथ घुटनें के ऊपर रख दिया जाय तो इस मुद्रा को पूर्ण ज्ञान मुद्रा कहते हैं।
लाभ :
- ज्ञान मुद्रा आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के लिए बहुत जरूरी है। इसको लगातार करने से ज्ञान तंत्र का विकास होता है, जिससे मानसिक शक्ति का विकास होता है। ध्यान और समाधि में यह मुद्रा ज़रूरी है।
- ज्ञान मुद्रा को करने से नकारात्मक विचार दूर होकर सकारात्मक विचारों की उत्पति होती है।
- स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है जिससे ज्ञान मुद्रा विद्धार्थियों, शिक्षकों, बुद्धिजीवों और चिंतकों के लिए अति उत्तम है।
- मन शांत होता है। तनाव दूर होता है जिससे तनाव से होने वाले रोगों में फायदा होता है। (जैसे—सिर दर्द, माईग्रेन, अनिद्रा, रक्तचाप और मधुमेह इत्यादि।)
- ज्ञान मुद्रा को करने से बेचैनी, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, Depression सभी में शांति मिलती है।
- ज्ञान मुद्रा को करने से दांत का दर्द, त्वचा के रोग, चेहरे से दाग-धब्बे, झाईयां दूर होती हैं तथा चेहरे पर चमक आती है।
ज्ञान मुद्रा चलते-फिरते, उठते-बैठते, एक हाथ से या फिर दोनों हाथों से की जा सकती है। इस मुद्रा को लगातार कुछ दिनों तक करने से नींद न आने की तकलीफ से तथा अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
वायु मुद्रा
ज्ञान मुद्रा के विपरीत तर्जनी अंगुली को अंगूठे की जड़ में लगाएं और अंगूठे से हल्का दबाएं तथा बाकी की तीन उंगलियां सीधी रखें। ये मुद्रा वायु मुद्रा कहलाती है। तर्जनी उंगुली वायु की प्रतीक है इसलिए तर्जनी उंगुली को दबाने से वायु तत्व कम हो जाता है। जिससे सभी वात रोगों को समाप्त किया जा सकता है।
वायु मुद्रा को दिन में 15-15 मिनट तीन बार या एक साथ 45 मिनट से 60 मिनट तक किया जा सकता है।
लाभ :
- गैस के रोगों में वायु मुद्रा काफी लाभदायक है। आयुर्वेद के अनुसार 51 प्रकार के वायु रोग होते हैं। वे सभी रोग वायु मुद्रा से ठीक होते हैं।
- वायु मुद्रा लगाने से रक्तवाहिनियों में सिकुड़न दूर होकर लचीलापन आता है जिससे रक्त संचार ठीक होकर ह्रदय सम्बन्धी रोग ठीक होते हैं। ह्रदय की पीड़ा भी रक्त संचार का दोष है इसलिए वायु मुद्रा से ह्रदय की पीड़ा शांत होती है और ह्रदय रोग ठीक होता है।
- रक्त संचार ठीक न होने से हाथों में सुन्नपन्न, लकवा तथा शरीर में पीड़ा होना ये सभी रोग हो जाते हैं। ये सभी रोग वायु मुद्रा से ठीक हो जाते हैं।
- पोलियो में भी वायु मुद्रा करने से लाभ होता है।
- शरीर में वायु के बढ़ जाने से कमर दर्द, जोड़ों का दर्द, घुटनों का दर्द, ऐड़ी का दर्द, सरवाईकल आदि होने पर वायु मुद्रा लगाने से कूपित वायु शांत होती है और तकलीफ में आराम मिलता है।
- लगातार वायु मुद्रा के अभ्यास से हाथों की कंपन दूर होती है।
लगातार कुछ समय तक वायु मुद्रा करने से अर्थराइटस की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।