गणेश मुद्रा

जिस प्रकार हम जो कार्य गणेश जी की पूजा/अर्चना से करते हैं वही कार्य गणेश मुद्रा से भी कर सकते हैं। हिन्दु हमेश कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी की पूजा करते हैं ताकि कार्य में विध्न न पड़े।
बाएं हाथ की हथेली बाहर की ओर, दाएं हाथ की हथेली ह्रदय की ओर करके दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में ग्रिप बनाएं। सांस भरते हुए दोनों हाथों को ह्रदय के सामने तानें और सांस छोड़ते हुए ढ़ीला छोड़ दें। अंगुठे भी अंगुलियों के साथ जुड़े रहें। पाँच/छ: बार करें।
गणेश मुद्रा से अनाहत चक्र (ह्रदय चक्र) प्रभावित होता है।
लाभ
- ह्रदय चक्र मणिपुर चक्र और स्वाधिष्ठान चक्र तीनों ही गणेश मुद्रा से प्रभावित होते हैं।
- हमारे हाथों की अंगुलियों के आगे के भाग में साईनस के बिन्दु होते हैं जिनके दबने से सारे बिन्दु सक्रिय हो जाते हैं। जिससे साईनस, जुकाम, नज़ला ठीक रहता है और जमा हुआ श्लेष्मा बाहर निकलता है और श्वास नलिकाएं भी साफ हो जाती हैं।
- गणेश मुद्रा से अग्नि तत्व बढ़ता है जिससे शरीर में गर्मी बढ़ती है और हम उदारवादी बनते हैं।
- हाथों को दाएं/बाएं खींचने से फेफड़ों का विस्तार होता है और हाथों, भुजाओं और कन्धों की मॉसपेशियां मजबूत होती हैं तथा रक्त संचार बढ़ता है।
- ह्रदय की मॉसपेशियां मजबूत होने से ह्रदय के रोग नहीं होते।
- गणेश मुद्रा करने से आत्मविश्वास बढ़ता है।
शिवलिंग मुद्रा

बाएं हाथ को पेट के पास लाकर सीधा रखें। दाएं हाथ की मुठ्ठी बना कर बाईं हथेली पर रखें और दाएं हाथ का अंगूठा सीधा ऊपर की ओर रखें। नीचे वाले बाएं हाथ की अंगुलियाँ और अंगूठा मिला कर रखें। दोनों बाजुओं की कोहनियाँ सीधी रखें। इस मुद्रा को शिवलिंग मुद्रा कहते हैं।
शिवलिंग मुद्रा दिन में दो बार पाँच मिनट के लिए लगाएं।
लाभ
1. शिवलिंग मुद्रा लगाने से सुस्ती, थकावट दूर हो नयी शक्ति का विकास होता है।
2. शिवलिंग मुद्रा लगाते हुए लम्बे व गहरे सांस लेने चाहिये।
3. शिवलिंग मुद्रा लगाने से मानसिक थकान व चिंता दूर होती है।
लिंग मुद्रा

दोनों हाथों की सभी उंगलियों को आपस में फंसा कर मुट्ठी बंद कर बाएं हाथ के अंगूठे को खड़ा रखें। ये लिंग मुद्रा बनती है।
इस मुद्रा से शरीर में गर्मी पैदा होती है इसलिए लिंग मुद्रा को अधिक गर्मी में नहीं करना चाहिए।
लाभ
- लिंग मुद्रा से चर्बी और मोटापा भी कम होता है।
- जिन लोगों को सर्दी लगती है उन्हे लिंग मुद्रा रोज लगानी चाहिए। इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है और सर्दी, जुकाम में भी लाभ प्राप्त होता है।
- लिंग मुद्रा से गर्मी पैदा होने से कफ पिघल कर निकल जाता है। जिससे खांसी, अस्थमा, फेफड़ों के रोग समाप्त होते हैं। परंतु अधिक गर्मियों में लिंग मुद्रा न लगाएं।
- निम्न रक्त चाप में लिंग मुद्रा काफी लाभदायक होती है। उच्च रक्त चाप में लिंग मुद्रा न लगाएं।
- लिंग मुद्रा से इंफैक्शन भी दूर होते हैं।
- विशेष—पेट में फोड़ा हो या अल्सर हो तब लिंग मुद्रा न लगाएं।
- उच्च रक्तचाप में लिंग मुद्रा नहीं लगानी चाहिए।
- अधिक गर्मी में लिंग मुद्रा नहीं करनी चाहिए।