Hast Mudra

इन्द्र मुद्रा/वरुण मुद्रा

इन्द्र मुद्रा

हाथों की सबसे छोटी उंगली अर्थात कनिष्ठ उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिला दें और बाकी उंगलियाँ सीधी रखें तो यह मुद्रा इन्द्र मुद्रा कहलाती है।

इन्द्र मुद्रा स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करती है। हाथों की सबसे छोटी उंगली अर्थात कनिष्ठ उंगली शरीर में जल तत्व की धोतक है। शरीर में 70 से 80 प्रतिशत जल होता है। जब शरीर में जल तत्व कम हो जाता है तो इस मुद्रा से शरीर में जल तथा अन्य तत्वों का संतुलन बना रहता है तथा इसके अभ्यास से कई रोगों से बचा जा सकता है। इस मुद्रा को दिन में तीन बार 15-15 मिनट करना चाहिये।

  • ड़ी-हाइड़्रेशन, ड़ायरिया या पतले दस्त में इन्द्र मुद्रा को करने से जल तत्व की कमी नहीं होती।
  • मूत्र रोगों में या गुर्दे के रोगों में इन्द्र मुद्रा लगाने से आराम मिलता है।
  • बुखार की वजह से यदि होंठ सूखते जा रहे हैं या मुंह का स्वाद बिगड़ गया है तो इन्द्र मुद्रा को लगाने से ठीक हो जाता है।
  • गर्मियों में इन्द्र मुद्रा लगाने से शीतलता मिलती है तथा लू से बचे रहते हैं।
  • इन्द्र मुद्रा से त्वचा रोग जैसे दाद, खुजली, रूखापन, फोड़े-फुंसियां, कील-मुहांसें को ठीक होने में मदद मिलती है।
  • इन्द्र मुद्रा से त्वचा मुलायम तथा कोमल बनी रहती है जिससे झुरियां नहीं पड़ती।
  • मधुमेह के रोगियों को मूत्र की समस्या होती है परन्तु इन्द्र मुद्रा को लगाने से आराम मिलता है।
  • यदि शरीर में जल की कमी से मॉसपेशियों में अकड़न आ जाती है या ऐंठन आ जाती है तो इन्द्र मुद्रा को लगाने से मॉसपेशियों में शिथिलता आ जाती है और समस्या से बचा जा सकता है।
  • उच्च रक्तचाप, खराब कोलोस्ट्रॉल, मधुमेह बढ़ जाने के कारण जब रक्त गाढ़ा हो जाता है तो रक्त को सामान्य बनाने के लिए, खराब कोलोस्ट्रॉल से बचने के लिए इन्द्र मुद्रा को लगाना चाहिए। इससे रक्त संचार ठीक रहेगा तथा पूरे शरीर में रक्त द्वारा ऑक्सीजन का संचार ठीक प्रकार से होगा और रक्त सम्बन्धी रोग नही होंगे।
  • अंगुठे के (Tip) आगे वाले भाग को छोटी उंगली के (Tip) आगे वाले भाग को रगड़ने से मूर्छा भी दूर होती है।

नोट—यदि ठंड़ लग रही है, सर्दी-जुकाम है, नाक व आँखों से पानी आ रहा है, साईनस में श्लेष्मा जमा हुआ है तो इन्द्र मुद्रा नहीं करनी चाहिए।

वरुण मुद्रा

हाथों की सबसे छोटी उंगली अर्थात कनिष्ठ उंगली को मोड़कर अंगुठे की जड़ में लगा कर दबाने पर वरुण मुद्रा बनती है। जिसे जलोदरनाशक मुद्रा भी कहते हैं। इस मुद्रा को 30-45 मिनट के लिए करना चाहिए।

  • जब कभी (pleurisy) फेफड़ों में, (dropsy) पेट में या हाथों, पैरों में पानी भर जाये तो वरुण मुद्रा से लाभ होता है।
  • हाथों, पैरों या शरीर में कहीं भी सूजन आने पर वरुण मुद्रा लगानी चाहिए।
  • जुकाम में जब नाक से, आँखों से पानी बह रहा हो, फेफड़ों में बलगम भर जाए या साईनस के रोग हों तो वरुण मुद्रा लगाने से आराम मिलता है।