जीवन प्रतिपल चुनौती है जो उसे स्वीकार नहीं करता वह जीते-जी मर जाता है। बहुत लोग जीते-जी मर जाते हैं मगर चार्ली चैपलियन हमेशा जिया तथा ओरों को भी जीने का सम्बल दिया।
चार्ली चैपलियन अपने बीते हुए वर्षों को याद करके कहते थे कि पता नहीं कौन सी ताकत थी जो मुझे यहां तक पहुंचाया। शायद जीवन के संघर्षों ने चमका-चमका कर चार्ली चैपलियन बनाया हो। चार्ली चैपलियन का शुरुआत का जीवन बहुत संघर्षों भरा रहा। पग-पग पर उसे अपनों से यातनाएं मिली। यहां तक कि उसकी पत्नी ने भी उसे किसी तरीके से सहायता नहीं पहुंचाई।
वर्नाड़ शा कहते थे कि, “लोग मरते तो बहुत पहले हैं पर दफनाएं बहुत बाद में जाते हैं”। मरने और दफनाने में कोई 30 साल का फर्क हो जाता है। जिस क्षण से व्यक्ति जीवन की चुनौती को स्वीकारना बन्द कर देता है, वह उसी क्षण से मर जाता है। हम जितने-जितने ऊपर उठने का प्रयास करते हैं उसी अनुपात में चुनौती भी सामने आती हैं। हमारी मन की ताकत पर निर्भर करता है कि हम उस चुनौती को स्वीकार करें या नहीं। यदि चुनौती स्वीकार हुई तो मन को चुनौती स्वीकार करने की व उससे लड़ने की क्षमता अपने आप विकसित होती जायेगी और यदि चुनौती से घबरा कर पलायन कर लिया तो छोटी से छोटी चुनौती भी आक्रमण कर तनाव देगी। जो व्यक्ति स्वयं की चुनौती से संघर्ष के लिए तत्पर नहीं हैं, उससे मानसिक ताकत की आशा करना व्यर्थ है।
एक बार स्वीकार कर चुनौती में उतरना बस शुरुआत है अपने को मानसिक स्तर पर मजबूत बनाने की।