Adhyatam

ध्यानी का भोजन

एक बहुत बडे डॉक्टर केनेथ वाकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ‘मैं अपने जीवन-भर के अनुभव से यह कहता हूं कि जो लोग जो भोजन करते हैं, उसमे से आधे भोजन से उनका पेट भरते हैं और आधे भोजन से हम डॉक्टरों का पेट भरता है। अगर वे आधा भोजन करें तो वे बिमार ही नहीं पडेंगे, और हम डॉक्टरों की कोई जरूरत न रह जायेगी’।

भोजन के प्रति गलत नजरिए हमारे लिए खतरनाक बनते जा रहे हैं। ये बहुत महंगे साबित हो रहे हैं। ये हमें ऐसी स्थिति में ले जा चुके हैं जहां हम बस किसी तरह जीवित हैं। हमारा भोजन शरीर को स्वास्थ्य देने की बजाय बिमारियां देता जान पडता है। यह ऐसा हुआ जैसे सुबह उगता सूरज अंधकार पैदा करे। यह भी उतनी ही आश्चर्यजनक और अजीब बात होगी। परंतु दुनियाँ के सभी चिकित्सकों की यह आम राय है कि मनुष्य की ज्यादातर बिमारियां गलत खानपान के कारण हैं।

तो पहली बात ये है कि हर मनुष्य अपने भोजन के प्रति जागरूक और सचेत हो। और यह बात ध्यानी के लिए बहुत आवश्यक है कि वह अपने भोजन के प्रति जागरूक रहे, कि वह क्या खा रहा है, कितना खा रहा है और इसका शरीर पर क्या प्रभाव पडेगा। अगर कोई व्यक्ति जागरूकता से कुछ महीने प्रयोग करे तो वह निश्चित रूप से पता लगा लेगा कि कोंसा भोजन उसे स्थिरता, शान्ति और स्वास्थय प्रदान करता है। इसमें कोई मुश्किल नहीं है, परंतु यदि हम अपने भोजन के प्रति जागरूक नहीं हैं, तो हम कभी अपने लिए सही भोजन नहीं तलाश पाएंगे।

दूसरी बात—भोजन के सम्बंध में, जो हम खाते हैं, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते हैं। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप क्या खाते हैं। यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप किस भाव-दशा में खाते हैं। आप आनंदित खाते हैं या दुखी, उदास और चिंता से भरे हुए खाते है। अगर आप चिंता से खा रहे हैं, तो श्रेष्ठतम भोजन के परिणाम भी पॉयजनस होंगे, जहरीले होंगे। अगर आप आनंद से खा रहे हैं तो कईं बार सम्भावना भी है कि जहर भी आप पर पूरे परिणाम न ला पाए। निर्भर करता है, आप कैसे खाते हैं, किस चित दशा में?

रूस में एक बहुत बडा मनोवैज्ञानिक था पीछे-पावलव। उसने जानवरों पर कुछ प्रयोग किए और वह उस नतीजे पर पहुंचा जो बडी हैरानी का था। उसने एक बिल्ली को भोजन दिया और सामने उसके एक्स-रे-मशीन लगा रखी थी, जिससे वह देख रहा था कि बिल्ली के पेट में क्या हो रहा है भोजन के बाद। भोजन पेट में गया और भोजन जाते ही पेट ने उस भोजन को पचाने वाले रस छोडे। तभी एक कुत्ते को भी खिडकी के भीतर ले आया गया। कुत्ता भौंका, बिल्ली देखकर डर गई और एक्स-रे-मशीन ने बताया कि उसके रस भीतर छूटने बंद हो गए। पेट बंद हो गया और सिकुड गया।

फिर कुत्ते को बाहर निकाल दिया गया, लेकिन छ: घंटे तक पेट उसी हालत में पडा रहा। फिर भोजन को पचाने की क्रिया शुरु नहीं हुई और छ: घंटों में भोजन सब ठंडा हो गया। छ: घंटों के बाद जब रस छूटना शुरु हुए तो वह भोजन सब ठंडा हो चुका था। उस भोजन को पचाना कठिन हो गया। बिल्ली के मन में चिंता पकड गई, कुत्ते की मौजूदगी से पेट ने अपना काम बंद कर दिया।

हमारी हालत क्या होगी? हम तो चिंता में ही चौबीस घंटे जीते हैं तो हम जो भोजन करते हैं, वह कैसे पच जाता है यह मिरैकल है , यह बिल्कुल चमत्कार है। यह भगवान कैसे करता है, यह कैसे पच जाता है, यह बिल्कुल आश्चर्य है। और हम कैसे जिंदा रह लेते हैं, यह भी एक आश्चर्य है। भावदशा-आनंदपूर्ण और प्रसादपूर्ण निश्चित ही होनी चाहिए।

जितने आनंद की जितनी निश्चिंतता और जितने उल्लास से भरी भावदशा में कोई भोजन ले सकता है, उतना ही उसका भोजन सम्यक होता चला जाता है।

हिंसक भोजन यही नहीं है कि कोई आदमी मांसाहार करता हो। हिंसक भोजन यह भी है कि कोई आदमी क्रोध से आहार करता हो। ये दोनों ही वॉयलैंट हैं, ये दोनों ही हिंसक हैं। क्रोध से भोजन करते वक्त भी आदमी हिंसक आहार ही कर रहा है। क्योंकि उसे इस बात का पता ही नहीं है कि वो जब किसी ओर का मास लाकर खा लेता है, तब तो हिंसक होता ही है, लेकिन जब क्रोध और चिंता में उसका अपना मांस भीतर जलता हो, तब वो जो भोजन कर रहा है, वह भी अहिंसक नहीं हो सकता। वहाँ भी हिंसा मौजूद है।

सम्यक आहार का दूसरा हिस्सा है कि आप अत्यंत शांत, अत्यंत आनंदपूर्ण अवस्था में भोजन करें। अगर ऐसी अवस्था न मिल पाए, तो उचित है कि थोडी देर भूखे रह जाएं, उस अवस्था की प्रतीक्षा करें। जब मन पूरा तैयार हो, तभी भोजन पर उपस्थित होना जरूरी है। कितनी देर मन तैयार नहीं होगा? मन के तैयार होने का अगर ख्याल हो तो एक दिन मन भूखा रहेगा, कितनी देर भूखा रहेगा, मन को तैयार होना पडेगा। मन तैयार हो जाता है, लेकिन हमने कभी उसकी फिक्र नहीं की है। हमने भोजन को डाल लेने को बिल्कुल मैकेनिकल, एक यांत्रिक क्रिया बना रखी है कि शरीर में भोजन डाल देना है और उठ जाना है। वह कोई साइकोलॉजिकल प्रोसैस, वह कोई मानसिक प्रक्रिया नहीं रही है, यह घातक बात है।

शरीर के तल पर सम्यक आहार स्वास्थ्यपूर्ण हो, अनूत्तेजनापूर्ण हो, अहिंसक हो और चित की आधार पर आनंदपूर्ण चित की दशा हो, प्रसादपूर्ण मन हो, प्रसन्न हो और आत्मा के तल पर कृतज्ञता का बोध हो, धन्यवाद का भाव हो। ये तीन बातें भोजन को सम्यक बनाती है।

ओशो