Stories

योद्धा

“क्या फिर से लड़की हुई? तीसरी हो गई” रामवती लगभग चीखते हुए बोली।

“हां! रामवचन निराश स्वर में बोला जो रामवती का लड़का था।

“वैद्य जी की दवाई दी, बड़ का दूध नाक में डलवाया, नारियल का बीज भी खिलाया सब बेकार” रामवती बड़बड़ाती हुई बोली।

“सब बे-असर हो गए” रामवचन बोला।

“बहू खुद भी लड़का चाहती थी, कह दे बच्ची को दूध ही ना पिलाये ताकि भूख से ही मर जाय” रामवती मुंह बनाते हुए बोली।

“मैंने उससे कहा था वह तैयार भी थी किन्तु तीन दिनों तक तो अस्पताल में रहना ही पड़ेगा, ऐसे में नर्स हर घंटे में दूध पिलवायेगी ही सही” रामवचन बोला।

“कह रही थी जब घर पर आएगी तो सीढियाँ चढ़ते हुए हाथ से छोड़ देगी, इस तरह से दुर्घटना में मर भी जायगी और किसी को शक भी नहीं होगा” रामवचन ने आगे का प्रोग्राम बताया।

“अरे यह क्या अनर्थ कर रहे हो, एक मासूम बच्ची को बिना कसूर मार डालोगे क्या? गलती तुम लोगों की और सजा उस नवजात को” रामवचन का पिता और रामवती का पति रामसिंह गुस्सा होते हुए बोला।

“छोडो यह दयानतदारी दिखाना, कोई धरम खाता खोल रखा है क्या, दो लड़कियां तो पहले से ही हैं और यह तीसरी आ गई छाती पर मूंग दलने” रामवती बोली।

“अरे सब अपना-अपना नसीब लाते हैं, जैसे दो पल रही हैं वैसे ही तीसरी भी पल जायेगी” रामसिंह ने प्रतिरोध किया।

“खुद तो जिंदगी भर चपरासी रहे, बेटा भी छोटी-मोटी नौकरी ही करता है, मालूम है दहेज में पांच सात लाख रुपये देने पड़ते हैं, तुम तो तब तक मर खप जाओगे, पिसेगा तो मेरा बेटा ना, इसीलिये अभी ही इस मुसीबत को जड़ से खतम कर देते हैं” रामवती बोली।

मोहल्ले में जिसने भी सुना अपना शोक प्रकट करने लगा, दबी जुबान में बढ़ते हुए खर्चो की चर्चा करके रामवती के गुस्से में घी डालने का ही काम किया।

वैसे तो रामसिंह की शिक्षा का स्तर प्राथमिक तक ही था तथा अभी कुछ दिनों पहले ही चपरासी के पद से सेवा निवृत हुआ था, किन्तु वह इस तरह की कन्या हत्या के विरोध में था। रामवचन भी अधिक पढ़ नहीं पाया और इसी कारण से किसी प्राईवेट कम्पनी में कोई छोटा-मोटा काम करता है। रामवचन की पत्नी रामकुंवर पहले ही दो लड़कियों को जन्म दे कर कुंठित है तथा तीसरी के जन्म ने तो तोड़ ही दिया है। यदि वह इस तीसरी लड़की को मारने की स्वीकृति नहीं देती तो उसकी अपनी जान व दोनों लड़कियों को भी खतरा हो सकता था, इसी कारण वह तीसरी लड़की को मारने के षड़यंत्र में शामिल है। रामकुंवर ‘जान है तो जहान है’ के सिद्धांत पर काम कर रही है।

“रामनामी इस परिवार की दोनों कन्याओं का नाम भी राम के नाम पर ही है, पहली का नाम रामश्री तो दूसरी का नाम रामकन्या रखा गया था।

तीसरी देवस्वरूप थी ही नहीं, इसी कारण उसका नाम रखा ही नहीं गया।

रामसिंह उस कन्या को मारने के सख्त खिलाफ था, इसी कारण जैसे ही अस्पताल से घर आयी तो रिक्शे से उतरते ही रामसिंह ने बच्ची को अपनी गोद में ले लिया ताकि सीढ़ियों से गिराई ना जा सके।

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या”? रामवती चिढ़ते हुए बोली।

“मैं बच्ची के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा” रामसिंह बोला।

“उसका जिन्दा रहना हम सब के लिए ठीक नहीं है। इस बच्ची के रहते रामवचन अगले बच्चे के लिये कोशिश भी नहीं कर पाएगा” रामवती चिढ़ कर बोली।

“यह तो किस्मत की बात है, यदि इस बच्ची को मार दिया गया तो इस बात की क्या गारंटी है कि आने वाला बच्चा लड़का ही होगा। फिर से लड़की हो गई तो क्या उसे भी मारोगे, कितने मासूमों की जान लोगे तुम लोग” रामसिंह गुस्से से बोला।

“मैं कुछ नहीं जानती इसे तो इस दुनिया से जाना ही होगा” रामवती क्रोध में बोली।

“बाबूजी, जाने दीजिये, जब मुझे यह लड़की नहीं चाहिये तो आप क्यों तनाव ले रहे हैं” बहू रामकुंवर जो अब तक चुप थी अपनी सास की तरफदारी करते हुए बोली।

“बहू, एक औरत हो कर एक नासमझ कन्या पर यह अत्याचार कर रही हो” रामसिंह आश्चर्य से बोला।

“औरत होने का दर्द सहा है हमने, इसीलिये चाहते हैं कि दुनिया में एक औरत और ना बढ़े” रामवती तीखे स्वर में बोली।

“मैं उसकी रक्षा करूँगा” रामसिंह ने कहा।

“तो हम सब को मार दो” रामवती बड़बड़ाने लगी।

“पिताजी को समझाने से कोई मतलब नहीं, हमें अपना काम खुद ही करना होगा” रामवचन बोला।

“देखो कितना रो रही है, रात भर में तो परेशान कर देगी” रामवती बोली।

“मुझे दे दो, मैं नीचे वाले कमरे में ले कर सो जाऊंगा” रामसिंह बोला।

“दे दो बहू इन को, मैं इस सर दर्द को और सहन नहीं कर सकती” रामवती बोली।

“रामसिंह बच्ची को ले कर नीचे आ गया, वह जानता था उसकी स्थिति तूफान के सामने दीपक जैसी है, वह बच्ची को नहीं बचा पायेगा। उसने नीचे लेटे-लेटे एक निर्णय लिया और कुछ जरूरी कागज़ व कुछ रुपये ले कर बच्ची के साथ रेलवे स्टेशन पर आ गया। सामने मुम्बई जाने वाली ट्रेन खड़ी थी, वह बच्ची को ले कर ट्रेन में सवार हो गया। संभवतः बच्ची भी अपने आप को सुरक्षित हाथों में पा कर शांति से सो रही थी।

सुबह घर में बच्ची को ना पा कर सभी आश्चर्य में थे। तुरन्त रामवती ने रामवचन को पुलिस में रामसिंह के नाम की रिपोर्ट ड़ालने को कहा ताकि भविष्य में किसी भी संभावित खतरे को टाला जा सके। वैसे तीनों अंदर ही अंदर खुश थे कि जो काम स्वयं करना चाहते थे वह रामसिंह ने कर दिया, इतनी छोटी बच्ची को पालना इतना आसान भी नहीं था।

मुंबई पहुंचने पर रामसिंह बच्ची को गोद में उठाये जा रहा था कि बच्ची रोने लगी, वैसे भी कम से कम दस घंटे तो हो ही चुके थे वह इससे अधिक देर भूखी नहीं रह सकती थी। उसने एक मिल्क पार्लर से दूध का सबसे छोटा टैट्रा पैक लिया, चुंकि दूध ठंड़ा था, इसी कारण थैली को हिला कर व अपने बदन से चिपका कर दूध को सामान्य करने की कोशिश कर रहा था। बच्ची इस दौरान लगातार रोए जा रही थी, लगभग 15 मिनट के बाद दूध जब सामान्य हुआ तो ऑलपिन से छेद कर के पैकेट बच्ची के मुंह पर लगा दिया और बच्ची जल्दी जल्दी दूध गटकने लगी।

दूर बंगले की गैलरी में खड़ी महिला यह सब देख रही थी, वह उतर कर तुरंत नीचे आयी, रामसिंह को डांटते हुए बोली, “इस बच्ची को कहां से चोरी कर के लाये हो? चलो पुलिस स्टेशन अभी पुलिस के हवाले करती हूँ”।

“नहीं मैडम आप गलत समझ रही हैं, मैं इस बच्ची का दादा हूं तथा इसके माता पिता इसे मारना चाहते हैं” कहते हुए रामसिंह ने पूरी कहानी सुना दी। प्रमाण के तौर पर उसने अपने ऑफिस का पुराना परिचय पत्र तथा अस्पताल से मिला बच्ची का जन्म प्रमाण पत्र दिखला दिया।

कागज़ देख कर उस औरत को कुछ भरोसा हुआ उसने पूछा, “इतनी छोटी बच्ची को लेकर कहां जाओगे”?

“सुना है मुंबई में हर उम्र के लोगों को कोई ना कोई काम अवश्य मिल जाता हैं, मैं भी काम करूंगा पर इस बच्ची को मरने नहीं दूंगा” कहते हुए रामसिंह की आंखों में आंसू आ गये।

चौकीदारी करोगे? इस बंगले के लिये हमें एक चौकीदार चाहिये, रहने के लिये कमरा बना हुआ है, वहां रह सकते हो, दोनों समय खाने व वर्दी के अलावा पांच हज़ार रुपये महीना मिलेंगे” उस औरत ने कहा।

“आप देवी हैं, भगवान हैं, आपकी इतनी कृपा बच्ची को जीवन दे देगी” कहते हुए रामसिंह उस औरत के पैरों में गिर गया।

“अरे-अरे तुम क्या कर रहे हो, मैं देवी नहीं हूं, मेरा नाम रमोला है, इस बंगले में मैं, मेरे पति व दो साल का लड़का रहता है, काम में किसी तरह की शिकायत नहीं आनी चाहिए” रमोला बोली।

“जी मैडम” रामसिंह बोला।

“तुम्हारे घर में सभी के नाम से पहले राम है इसलिये इसका भी नाम ऐसा ही रखेंगे, रामरक्षा नाम कैसा रहेगा”? रमोला ने पूछा।

“बहुत सुन्दर नाम है” रामसिंह बोला।

रामसिंह को बंगले पर काम करते-करते तीन साल गुजर गए, अब रामरक्षा काफी कुछ समझने लगी थी।

एक दिन रमोला अपने लड़के रजत को अल्फाबैट्स पढ़ा रही थी, रमोला ने रजत से पूछा “ए फॉर”।

“एप्पल” रामरक्षा दूर से खेलते हुए बोली।

रमोला को आश्चर्य हुआ, उसने अपने पास बुला कर रामरक्षा से पूछा तो उसने अल्फाबैट्स के साथ-साथ नंबर व पॉयम्स भी सुना दी।

“अरे रामसिंह इसने यह सब कहां से सीखा”? रमोला ने पूछा।

“आप बाबा को जो पढ़ाती हैं, वहीं सुनकर याद कर लेती है” रामसिंह ने बताया।

“बड़ी होशियार है, इसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी मेरी” रमोला बोली।

सचमुच रामरक्षा काफी होशियार निकली और राष्ट्रिय स्तर की प्रतियोगी परीक्षा अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण कर कलेक्टर पद के लिये चयनित हो गई। अपने चयन की सूचना दे कर रामरक्षा रमोला के यहां जमीन पर बैठ गई।

“अरे रामरक्षा तू यह क्या कर रही है, तू अब कलैक्टर बन गई है” रमोला बोली।

“जो कुछ है आपकी मेहरबानी से है, पर मैं चाहती हूं कि एक बार दादाजी को ले कर उनके परिवार से मिलवा दें, उन्होंने मेरे प्रति अपना कर्तव्य पूरा किया, अब मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं उनको उनके परिवार से मिलवा दूं” रामरक्षा रमोला के हाथ जोड़ कर बोली।

“क्या तुमने अपने माता पिता को माफ़ कर दिया? रमोला ने पूछा।

मुझे तो उन्होंने उसी दिन मार दिया था जिस दिन मैंने जन्म लिया था, उनके हिसाब से तो मैं एक लाश हूं और लाश कैसे किसी को माफ़ कर सकती है, पर मैंने दादाजी को उनके परिवार के प्रति बहुत टूटते हुए देखा है, पता नहीं कितने समय जिन्दा रहेंगे, इसीलिए कम से कम उनके परिवार से मिलकर उनको संतोष हो जाय”।

“ठीक है, कल ही चलते हैं” रमोला बोली।

रामसिंह को बताए बिना सभी गाड़ी से चल दिये, जैसे ही शहर के समीप पहुंचे रामसिंह समझ गया कि उसके परिवार के पास जा रहे हैं।

“आप कृपया मुझे उस घर में ना ले जाएं, यदि उन्होंने ने मुझे माफ़ कर भी दिया तो मैं अपने जीते जी उन्हें माफ़ नहीं करूंगा” कह कर रामसिंह ने हाथ जोड़ कर आँखों को बंद कर लिया, रामसिंह दुनिया से दूर जा चुका था।

आज एक साथ कई मौतें हो गई, एक व्यक्ति, एक योद्धा, एक आदर्श और वास्तव में एक नवजात बच्ची की” कह कर रमोला फफक कर रो पड़ी और रामरक्षा को गले से लगा लिया।

हरीश