चक्रासन वह आसन है जिसके बारे में कहा जाता है कि जिसने चक्रासन का अभ्यास किया, उसने अपने मस्तिष्क पर काम किया अर्थात चक्रासन के अभ्यास से शरीर व रीढ़ लचीले होने के साथ यह कईं क्रियाओं में मदद भी करता है।
रीढ़ वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की सम्पूर्ण सूचनाएं मस्तिष्क को व मस्तिष्क के सभी आदेश शरीर को पहुंचाये जाते हैं। रीढ़ की तंत्रिकाएं सीधे तौर पर केंद्रिय तंत्रिका तंत्र से जुड़ी होती हैं तथा केंद्रिय तंत्रिका तंत्र ही सभी प्रकार की क्रियाओं का समंवय व नियंत्रण करता है।
चक्रासन जब भी करें, पूर्ण रूप से खाली पेट, कपड़े ढ़ीले व कम से कम हों तथा अभ्यास करते समय प्राकृतिक चिकित्सक से सलाह लें।
विधि
पैर सटा कर पीठ के बल सीधे लेट जाएं, श्वास को सामन्य चलने दें, अब पाँव को घुटने से मोड़ें व पाँव का तलुवा पूरा जमीन पर रखें। अब कोहनी को अंदर की तरफ मोड़ते हुए हथेली को कंधे के पास जमीन पर रखें, अब कमर पर ऊपर की तरफ दबाव बनाते हुए व श्वास भरते हुए रीढ़ व कमर को ऊपर उठा लें। पहले अर्ध चक्रासन की स्थिति में आयें, फिर धीरे-धीरे गर्दन को अंदर की ओर झुकाते हुए हाथों से पैरों के तलवे पकड़ने का प्रयास करें। पैर व हाथ लगी हुई स्थिति में रहें, अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथ व पैरों की दूरी बढ़ाते जायें व धीरे से शव आसन में आकर विश्राम करें।
चक्रासन निम्न रोगों में आशातीत लाभ पहुँचाता है।
रोग | रुकने का समय | कितनी बार करें |
थायरॉयड | 15 से 25 सेकंड | 5 बार |
लम्बाई बढाने के लिये | 10 से 20 सेकंड | 11 बार |
मोटापा | 6 से 10 सेकंड | 21 बार |
सर्वाईकल स्पॉण्डोलाईटिस | 5 से 7 सेकंड | 2 बार |
कमर दर्द | 5 से 10 सेकंड | 5 बार |
वास्तव में यह आसन धनुरासन, उष्ट्रासन व भुजंगासन का लाभ एक साथ पहुँचाता है चक्रासन का नियमित अभ्यास ‘न्यूरोग्लिया’ कोशिकाओं की वृद्धि करता है। ‘न्यूरोग्लिया’ वह कोशिकाएं हैं जो रक्षात्मक व सहायता कोशिकाएं होती हैं तथा मेरुरज्जु व मस्तिषक का 40 प्रतिशत हिस्सा होती है। ये कोशिकाएं केंद्रिय तंत्रिका को बिमारियों से बचाती हैं। ट्युमर जैसे रोग न पनपें, इसके लिए ‘न्युरोग्लिया’ अपनी जिम्मेदारी निभाता है। ड़िप्रेशन, मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि जैसे आवेगों में ‘न्युरोग्लिया’ कम होने लगते हैं। जब अधिक मात्रा में ‘न्युरोग्लिया’ कोशिकायें मौजूद होती हैं तो मानसिक रोग मस्तिष्क व तंत्रिका कोशिकाओं को क्षति नहीं पहुँचा पाते हैं।
न्युरोग्लिया की अपनी क्लीनीकल महत्ता है, जब चक्रासन किया जाता है तो ‘न्युरोग्लिया’ कोशिकाओं की तादाद बढ़ने लगती है।
इसी कारण चक्रासन चुस्ती-फुर्ती के साथ-साथ जोश व उमंग भी पैदा करता है।
वीरेंद्र अग्रवाल
Swasthya Mandir, Naturopathy Center
www.swasthyamandir.com