जल ही जीवन है। जल के बिना शायद जीवन की कल्पना सम्भव नहीं है। जहाँ भी जीवन है, वहाँ जल का होना अनिवार्य है। किसी भी प्रकार के जीवन की सम्भावना जल के बिना अधूरी है, चाहे वो प्राणी हो, जानवर हों, कीड़े-मकोड़े हों या पेड़-पोधे। इसी प्रकार मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में जल है। मानव शरीर के वजन का लगभग 60 से 62 प्रतिशत हिस्सा जल ही है। जिस व्यक्ति में जल की मात्रा जितनी अधिक होती है, वह उतना ही स्वस्थ होता है। शरीर में जल की एक प्रतिशत मात्रा का कम होना भी हानिकारक है।
जिसे इस प्रकार समझा जा सकता है।
पानी का प्रतिशत……….स्वस्थ या रोग
62 प्रतिशत———-शरीर लचीला, त्वचा स्वच्छ, चेहरा चमकीला व जोशीला।
60 प्रतिशत———-शरीर स्वस्थ, त्वचा में कड़ापन, चेहरे पर हल्का सांवलापन।
58 प्रतिशत———-खांसी, जुकाम, आँखें कमजोर, मुहांसे, त्वचा सूखी, घुटनों व जोड़ों में दर्द, रीढ़ का दर्द, रक्त की कमी।
56 प्रतिशत———–एसिड़िटी, कब्ज, पाईल्स, दाद, खाज-खुजली, बाल सफेद, गठिया, रक्तालपता।
54 प्रतिशत————मोटापा, अल्सर, कैंसर, ब्लड़प्रेशर, स्किन सोरासिस, एग्ज़िमा, किड़नी फेलियर।
अंग———–जल का अनुपात
दाँत—————10 प्रतिशत
वसीय तंतु———20 प्रतिशत
हड्डी—————25 प्रतिशत
रक्त—————-80 प्रतिशत
मांस—————40 प्रतिशत
शरीर को अपनी कैलोरी खपत के अनुसार पानी की मात्रा चाहिए होती है।
1 कैलोरी पर 1.2 मिली. पानी
जो व्यक्ति जितनी कैलोरी का भोजन ग्रहण करता है, उसी अनुपात में उसे पानी भी चाहिए होता है। जैसे :-
2000 कैलोरी वाले व्यक्ति को 2400 मिली. पानी चाहिए।
शरीर में निरंतर पानी का तालमेल बनाए रखना अनिवार्य है। शरीर में ली गई जल की मात्रा व निकाली गई जल की मात्रा का 60-70 प्रतिशत होना चाहिए।
जब शरीर से ज्यादा या कम मात्रा में पानी निकलता है तो शरीर पर सूजन आना, जोड़ों में दर्द, रक्तदाब का बढ़ना आदि समस्याएं आने लगती हैं।
शरीर में रक्त की प्रकृति क्षारीय होती है, रक्त का ph 7.4 होता है और पानी का ph 7.0 होता है। जब पानी 7.0 पीया जाता है तो यह शरीर के क्षारीय अनुपात को संतुलित कर निरोग रखता है और जब जल 7.0 ph से नीचे का पीया जाता है तो शरीर का धर्म अमलीय बनता हुआ रोग ग्रस्त कर देता है।
Ph वैल्यु——–अवयव——-रोग
Ph 7.0————-शुद्ध पानी———स्वस्थ
Ph 6.8————-फिल्टर————-एसिड़िटी
Ph 3.4————कोल्ड़ ड़्रिंक———अल्सर, कब्ज, गैस, मोटापा, कैंसर, नपुसंकता।
Ph 5.0————शर्बत, काफी——–एसिड़िटी, भूख मरना।
Ph 5.2————चाय—————-एसिड़िटी, अफरा।
Ph 7.4————फलों का रस——–शरीर लचीला, स्वस्थ व चमकदार।
Ph4.5————-एल्कोहल————कैंसर, गुर्दे खराब, पित्त की थैली में खराबी।
जब शरीर किसी स्थान पर आग से जल जाता है तो कहते हैं कि वह जल गया यानि कि उस स्थान में उपस्थित जल चला गया। जहाँ से जल चला जाता है, वह हिस्सा मृत हो जाता है और जहाँ जल आ जाता है, वह हिस्सा जीवित हो उठता है। यानि कि जल जीवन दायनी भी है। जल की उपलब्धता ऐसे रोगों को भी ठीक करने की ताकत रखती है जहाँ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान रोगी को करीब-करीब मृत मान लेता है। जैसे—अल्सर, कैंसर आदि।
1-जल भीतरी अंगों, जोड़ों के मध्य स्नेहक के रूप में काम करता है, कोषों को यहाँ गीला रखता है, जिससे कईं आवश्यक पदार्थ रुधिर नलिकाओं के अन्दर एवं बाहर सुगमतापूर्वक आ जा सकते हैं।
2-शरीर के तापमान को समान रखने हेतु जल महत्वपूर्ण है। जल की कमी शरीर के तापमान को बढ़ा देती है, अत: बुखार की स्थिति में अधिक जल पीना लाभदायक है।
3-पानी शरीर में सफाई का कार्यकर्ता है। शरीर में जब पानी अधिक रहता है तो यह पसीना, मल-मूत्र, थूक आदि द्वारा शरीर की सफाई का कार्य बखूबी करता रहता है।
4-शरीर के प्रत्येक तरल पदार्थ का निर्माण पानी के द्वारा ही होता है, जैसे रक्त, प्लाज्मा, पाचक रस, पित्त रक्त, हार्मोन आदि।