Adhyatam

ध्यानी का आहार

मनुष्य अकेली प्रजाति है जिसका आहार अनिश्चित है। अन्य सभी जानवरों का आहार निश्चित है। उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरतें और उनका स्वभाव फैंसला करता है कि वे क्या खाते हैं और क्या नहीं, कब वे खाते हैं और कब उन्हे नहीं खाना चाहिए।

किंतु मनुष्य का व्यवहार बिल्कुल अप्रत्याशित है, वह बिल्कुल अनिश्चतता में जीता है। न ही तो उसकी प्रकृति उसे बताती है कि उसे कब खाना चाहिए, न उसकी जागरुकता बताती है कि कितना खाना चाहिए और न ही उसकी समझ फैंसला कर पाती है कि उसे कब खाना बंद करना है।

अब जब इनमें से कोई भी गुण निश्चित नहीं है तो मनुष्य का जीवन बडी अनिश्चित दिशा में चला गया है। लेकिन अगर मनुष्य थोडी सी भी समझदारी दिखाए, अगर थोडी सी बुद्धि से जीने लगे, थोडी सी विचारशीलता के साथ, थोडी सी अपनी आँखें खोल ले, तो सही आहार का निर्णय लेना बिल्कुल कठिन नहीं होगा, यह बहुत आसान है इससे आसान कुछ हो भी नहीं सकता। सही आहार को समझने के लिए दो हिस्सों में बांट सकते हैं।

मनुष्य क्या खाए और क्या न खाए?

मनुष्य का शरीर रासायनिक तत्वों से बना है, शरीर की पूरी प्रक्रिया रासायनिक है। अगर मनुष्य के शरीर में शराब डाल दी जाए, तो उसका पूरा शरीर पूरी तरह से उस रासायन के प्रभाव में आ जायेगा, वह नशे के प्रभाव में आकर बेहोश हो जायेगा। कितना भी स्वस्थ, कितना भी शांत मनुष्य क्युं न हो, नशे का रसायन उसके शरीर को प्रभावित करेगा। कोई मनुष्य कितना भी पुण्यात्मा क्यों न हो, अगर उसे जहर दिया जाए तो वह मारा जायेगा।

कोई भी भोजन जो मनुष्य को किसी तरह की बेहोशी, उत्तेजना, चरम अवस्था, या किसी भी तरह की अशांति में ले जाए, हानिकारक है। सबसे गहरी, परम हानि तब होती है जब ये चीजें नाभि तक पहुंचने लगती हैं।

शायद तुम नहीं जानते कि पूरी दुनिया की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में शरीर को स्वस्थ करने के लिए गीली मिट्टी, शाकाहारी भोजन, हल्के भोजन, गीली पट्टियों और बडे टब में स्नान का प्रयोग किया जाता है। लेकिन अब तक कोई प्राकृतिक चिकित्सक यह नहीं समझ पाया है कि गीली पट्टियों, गीली मिट्टी , टब में स्नान का जो इतना लाभ मिलता है, वह इनके विशेष गुणों के कारण नहीं बल्कि नाभि केंद्र पर इनके प्रभाव के कारण है। नाभि केंद्र पूरे शरीर पर प्रभाव डालता है। ये सारी चीजे जैसे मिट्टी, पानी, टब स्नान नाभि केंद्र की निष्क्रिय उर्जा पर प्रभाव डालती है और जब ये उर्जा सक्रिय होनी शुरु होती है तो मनुष्य स्वस्थ होने लगता है।

लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा अभी यह बात नहीं जान पाई है। प्राकृतिक चिकित्सक यह सोचते हैं कि शायद वो स्वास्थ्य लाभ गीली मिट्टी, टब में स्नान, या गीली पट्टियों को पेट पर रखने के कारण हैं। इन सब से भी लाभ होता है, परंतु वास्तविक लाभ नाभि केंद्र की निष्क्रिय उर्जा के सक्रिय होने से होता है।

अगर नाभि के साथ गलत व्यवहार किया जाए, अगर गलत आहार, गलत भोजन किया जाए तो धीरे-धीरे नाभि केंद्र निष्क्रिय पड जाता है और उसकी उर्जा घटने लगती है। धीरे-धीरे नाभि केंद्र सुस्त पडने लगता है, आखिर में ये लगभग सो जाता है। तब हम इसे एक केंद्र की तरह देखना भी बंद कर देते हैं।

तब हमे सिर्फ दो केंद्र दिखाई पडते हैं- एक मस्तिष्क जहां निरंतर विचार चलते रहते हैं और थोडा बहुत ह्रदय जहां भावों का प्रवाह रहता है। इससे गहराई में हमारा किसी चीज से संपर्क नहीं बन पाता। तो जितना हल्का खाना

होगा, उतना वह शरीर में कम भारीपन बनायेगा, और अंतर्यात्रा शुरु करने के लिए वह ज्यादा मुल्यवान और महत्वपूर्ण बन जायेगा।

सम्यक आहार के बारे में ये याद रखना चाहिए कि ये उत्तेजना न पैदा करे, ये नशीला न हो और भारी न लगे। सही आहार लेने के बाद आपको भारीपन और तंद्रा महसूस नहीं होनी चाहिए। लेकिन शायद हम सभी भोजन के बाद भारीपन और तंद्रा महसूस करते हैं, तब हमे जानना चाहिए कि हम सही भोजन नहीं कर रहे हैं।

कुछ लोग इसलिए बीमार पडते हैं कि उन्हे भरपेट भोजन नहीं मिलता और कुछ ज्यादा खाने के कारण रोगग्रस्त रहते हैं। कुछ लोग भूख से मरते हैं तो कुछ जरूरत से ज्यादा खाने से और जरूरत से ज्यादा खाने के कारण मरने वालों की संख्या हमेशा भूख से मरने वालों से ज्यादा रही है। भूख से बडे कम लोग मरते हैं। अगर एक आदमी भूखा भी रहना चाहे तो 3 महीने से पहले उसके भूख से मरने की कोई सम्भावना नहीं है। कोई भी व्यक्ति 3 महीने तक भूखा रह सकता है। लेकिन अगर कोई 3 महीने तक जरूरत से ज्यादा खाना खाता रहे तो उसके बचने की कोई सम्भावना नहीं है।

ओशो