ये सुन कर बड़ा अजीब लगता है कि नकारात्मक सोच, मन को दूषित व शरीर को रोग-ग्रस्त कर देती है। अब तक यह माना जाता था कि नकारात्मक सोच मन को खराब करती है, पर अब नये सर्वेक्षणों से यह भी साबित हो गया है कि नकारात्मक मन, खून को दूषित करने के साथ सम्पूर्ण शरीर की रासायनिक, हार्मोनिक व उपापचीय क्रियाओं में भी गड़बड़ी पैदा कर देता है।
जन्म के बाद मनुष्य में रक्त का निर्माण अस्थिमज्जा में होता है जो कि एक खोखली गुहा में पाया जाता है। यह मुलायम, चिकना द्रव होता है। इस द्रव में वसा, तंत्रिकाएं व रुधिर कोशिकाएं होती हैं। मज्जा की तन्त्रिकाएं सीधे तौर पर मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं। जब अस्थिमज्जा से रक्त शरीर में जाता है तो यह रक्त सम्पूर्ण शरीर में गति करता रहता है, इस रक्त के साथ तंत्रिकाएं भी गति करती रहती हैं। इन तंत्रिकाओं पर जैसी सूचना होती है, वैसी ही सूचना शरीर को संचारित होती रहती है। जब मन नकारात्मक होता है तब अस्थिमज्जा की तंत्रिकाएं सिकुड़ जाती हैं, इन तंत्रिकाओं के सिकुड़ने से वसा कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है, फलस्वरूप श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ने लगती है और न्युट्रोफिल्स का अनुपात कम हो जाता है तथा अस्थिमज्जा पहले की तुलना में रक्त का निर्माण कम कर देती है। रक्त का निर्माण कम होते ही शरीर के अन्य अंग भी सुस्त पड़ने लगते हैं और व्यक्ति एनिमिक हो जाता है। यदि यही स्थिति लम्बे समय तक रहे तो व्यक्ति सिरोसिस ऑफ लीवर, ब्लड़ कैंसर जैसे रोगों से ग्रसित तक हो जाता है।
जब किसी व्यक्ति की अस्थिमज्जा खून का निर्माण कम करने लगती है तो व्यक्ति की जीवनी-शक्ति भी एकाएक कम होने लगती है, कारण कि मस्तिष्क को खून का प्रवाह धीमा हो जाता है, जिसके कारण मस्तिष्क द्वारा स्त्रावित सेरॉटोनिन की मात्रा में कमी आती है। सेरॉटोनिन वह हार्मोन हैं जो व्यक्ति को प्रसन्न, जोशीला, क्रिएटिव व उर्जावान बनाता है। जब व्यक्ति मानसिक तौर पर खुश रहता है तो एण्ड़ोमार्फिन का स्त्राव भी बढ़ जाता है। एण्ड़ोमार्फिन अनिद्रा, ड़िप्रैशन, ब्लड-प्रैशर, ह्रदय रोग आदि में लाभ पहुंचाता है, अत: जब मन किसी भी प्रकार से गलत सूचनाओं का या गलत सोच का शिकार होता है तो उसमें तेजी से रासायनिक परिवर्तन शुरु हो जाते हैं। यह रासायनिक परिवर्तन सीधे तौर पर अस्थिमज्जा को प्रभावित करते हैं। अस्थिमज्जा इसके प्रभाव से अपने खून के स्वभाव में परिवर्तन शुरु कर देती है और फलस्वरूप रक्त दूषित होने लगता है। जब हम प्रसन्न या खुश होते हैं तो अस्थिमज्जा द्वारा खून का निर्माण तेज गति से व अच्छे तरीके से होता है। फलस्वरूप रक्त स्वच्छ और रोग रहित बनने लगता है।
ड़ॉ. वीरेंद्र अगरवाल